दोगली नीति

मात्र दो वर्ष की अवधि में ही पहले से निराश चल रहे पंजाब के लोग अब स्वयं को ठगा-ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने बड़े उत्साह के साथ बड़ी ईमानदार कहलाती पार्टी के लिए बड़ा समर्थन देकर उसे प्रदेश की सत्ता के सिंहासन पर बैठाया था। अन्य बड़ी पार्टियों की लम्बी अवधि की कारगुज़ारी से उनका मोह भंग हो चुका था। पिछले कई दशकों से पंजाब अवसान की ओर जा रहा था। आर्थिक रूप से कभी बेहद सक्षम यह प्रदेश पूरी तरह से पीला पड़ गया लगता था। उन्हें प्रतीत हो रहा था कि नई पार्टी शायद इसमें नए प्राण डाल दे, शायद प्रदेश पुन: अपने पांवों पर खड़ा हो जाए, नई सरकार शायद इसके सिर पर  चढ़े ऋण को कुछ सीमा तक उतारने में सफल हो जाए, परन्तु उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं और यह निराशा में बदल गईं।
बात यहीं समाप्त नहीं होती, ईमानदारी तथा सादगी भरा जीवन जीने वाली बातें करने वाली पार्टी की ओर से पहना गया सादगी का चोला भी उतर गया है। चाहे स्वयं को सच्चा और ईमानदार साबित करने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान प्रतिदिन अपने विरोधियों को पुलिस के विजीलैंस विभाग द्वारा परेशान करने में लगे हुए हैं, आए दिन उन्हें समन जारी किए जाते हैं, कई-कई घंटे बिठा कर उन्हें अपमानित किया जाता है तथा कई केस डाल कर उन्हें लम्बी अवधि के लिए नज़रबंद भी किया जाता रहा है, परन्तु जब इस पार्टी के अपने मंत्रियों, विधायकों या अन्य नेताओं के अनेक तरह के घोटाले सामने आते हैं तो उन्हें अ़फवाह कह कर आंखों में धूल डालने का यत्न ही नहीं किया जाता, अपितु उन्हें हर ढंग-तरीके से बचाने के लिए पूरा ज़ोर लगाया जाता है।
दिल्ली में भी अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में इस पार्टी की सरकार है परन्तु वहां अधिकार सीमित होने के कारण जब इसके मंत्रियों तथा संतरियों के किस्से सामने आते हैं तो उन्हें कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। इस पार्टी के कई बड़े नेताओं की नज़रबंदी तो महीनों से वर्षों तक पहुंच गई है। इनमें दिल्ली के महत्त्वपूर्ण मंत्री सत्येन्द्र जैन भी शामिल हैं, जो लम्बी नज़रबंदी के बाद अब स्वास्थ्य खराब होने के आधार पर ज़मानत पर बाहर हैं तथा स्थायी ज़मानत लेने के लिए यत्नशील हैं। बात यहीं नहीं रुकी, अपितु उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी आबकारी घोटाले में महीनों से जेल में हैं। इनके संबंध में प्रमाण इतने पुख्ता हैं कि अदालतें भी उनकी तथा अन्य नेताओं की कोई सहायता नहीं कर सकीं, अपितु तथ्यों के आधार पर ज्यादातर को तो ज़मानतें तक भी नहीं दी गईं। इसी पंक्ति में मुख्यमंत्री तथा आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल भी आ खड़े हुए हैं। पंजाब में तो भगवंत मान एवं उसके सभी साथी कानून की बात करते हुए विरोधी नेताओं को विजीलैंस के समक्ष पेश होने के लिए कहते हैं परन्तु दिल्ली में मुख्यमंत्री चौथी बार भी इन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) द्वारा भेजे गए सम्मनों को दृष्टिविगत करते हुए पेश नहीं हुए। इसकी बजाय वह स्वयं को कानून से ऊपर समझते हुए ई.डी. से सवाल पूछने में लगे हुए हैं तथा यह भी कह रहे हैं कि ये समन राजनीति से प्रेरित हैं। कभी ‘विपासना’ का बहाना बना कर समनों से इन्कार करते हैं तथा कभी कोई अन्य बहाना बनाते हैं। अब वह आगामी चुनावों के लिए लामबंदी करने के लिए अपने साथ पंजाब के मुख्यमंत्री एवं अन्य बड़े नेताओं को लेकर गोवा के दौरे पर चले गए हैं।
विगत अवधि में कई राज्यों के हुए विधानसभा चुनावों में भी पंजाब के मुख्यमंत्री को साथ ले जाकर उन राज्यों में व्यापक स्तर पर विज्ञापन देकर तथा लगातार विमानों की उडारियां भर कर, पहले ही ऋणी हुए पंजाब के खज़ाने को लगातार करोड़ों रुपए का चूना लगाते रहे थे, परन्तु उन राज्यों में उनकी पार्टी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ था। आम आदमी पार्टी के इन राज्यों में उतारे गए सभी के सभी उम्मीदवारों की निराशाजनक हार हुई थी तथा उन्हें ‘नोटा’ से भी कम वोट मिले थे। अब शायद ‘आप’ के ये दोनों मुख्यमंत्री बड़ी पलटन एवं शानो-शौकत के साथ चुनाव प्रचार के नाम पर गोवा की सैर पर निकले हुए हैं, जिससे एक बार फिर इन्हें कुछ भी हासिल होने वाला नहीं। प्रत्येक पक्ष से इन नेताओं द्वारा धारण की जा रही ऐसी दोगली नीति ने भारी ऋण के बोझ के नीचे दबे प्रदेश का और भी क्षरण करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। ऐसी परिस्थितियों में पंजाब का भगवान ही रक्षक है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द