भारत माता के अनमोल रत्न-नेताजी सुभाष चंद्र बोस

23 जनवरी को 1897 में जन्मे देश में सबसे पहले ‘नेताजी’ का संबोधन पाने वाले सुभाष चंद्र बोस की आज 126वीं जयंती है। तथाकथित हवाई दुर्घटना में तथाकथित मृत्यु के 78 साल बाद भी देश में आज भी सुभाष वह नेता हैं जो आम भारतीय के मन में महानायक का सम्मान रखते हैं। आज भी आम भारतीय इस बात से खफा हैं कि जिसे इस देश की आजादी का सबसे ज्यादा श्रेय मिलना चाहिए था जो देश का सच्चा रत्न था उसे ही भारत रत्न मिलने में दुनिया भर की बाधाएं खड़ी की गईं। आज़ादी के बाद भी एक लंबे कालखंड में सरकारी आयोजनों में सुभाष चंद्र बोस विस्मृत से रहे। कुछ तो ऐसा है सुभाष के व्यक्तित्व में कि वह भारतीय जनमानस के मन की उस तह तक जा बसा कि वह वहां उसकी अमिट छाप आज भी मौजूद है। सुभाष चंद्र बोस उस शख्स का नाम है जो सचमुच ही ‘नेताजी’ यानि नेतृत्व करने वाले सम्मान के हकदार हैं ।
सुभाष विलक्षण व्यक्तित्व के मालिक थे। प्रतिभा उनमें कूट-कूट कर भरी थी। आई.सी.एस. परीक्षा पास करने वाले वे पहले भारतीय थे पर गुलामी मंजूर नहीं थी सो नौकरी नहीं की। फिर नया लक्ष्य बनाया भारत को आज़ाद कराने का और तन मन धन से जुट गए। राजनीति में कूद गांधी जी के अनुयायी हो गए।
सुभाष चंद्र बोस की कुशाग्रता ने उन्हें गांधी का प्रिय तो बनाया पर गांधी केवल अहिंसा से ही आज़ादी पाने के हामी थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजो की नीति ‘बांटो व राज करो’ को समझ रहे थे। अंग्रेज एक-एक करके भगत सिंह, बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर  आजाद, अशफाख उल्ला खान आदि सैंकडों आजादी के दीवानों को खत्म कर चुके थे और गांधी एक कदम आगे व एक पीछे की नीति पर चल रहे थे, उन पर कांगेस में भी बस नेहरु का ही प्रभाव था। 1939 में उनकी कांगेस अध्यक्ष पद पर हासिल की गई जीत को अपनी हार बताना  सुभाष चंद्र बोस का दिल तोड़ने को काफी था जिसकी परिणिति उनके कांग्रेस छोड़ने के रूप में हुई। सुभाष चंद्र बोस व गांधी के रास्ते अलग हो गए और वे उस रास्ते पर बढ़ गए जिस पर चलकर आज़ादी या मौत में से किसी एक को चुनना था। सुभाष चंद्र बोस, द्वितीय विश्व युद्ध में आज के अंडमान को, ‘शहीद दीप’ के नाम से आज़ाद कराने में सफल हुए, पर 1945 के अणु बम के प्रहार ने जापान की कमर व बोस का आज़ाद भारत का सपना भी तोड़ दिया। उसके बाद से वे कहां गए? उनका क्या हुआ? यह आज भी रहस्य बना हुआ है। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के बारे में कई कयास हैं। इनमें सबसे ज्यादा 18 अगस्त, 1945 को ताईवान के ताइपेह में ताईहोकू हवाई अड्डे पर हुई विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु की थ्योरी शक के दायरे में है। कहा जाता है कि वे टोकियो से उस विमान में सवार हुए थे जो लैंडिंग करते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो गया और नेताजी उस दुर्घटना में मारे गए पर मुखर्जी आयोग को ताइवान के अधिकारियों ने बताया कि इस तरीख को ताइवान के इतिहास में किसी विमान दुर्घटना का उल्लेख ही नहीं है। मुखर्जी आयोग का तो कहना था कि उसकी जांच में जापान ने सहयोग ही नहीं किया जिसकी तरफ से सुभाष चंद्र बोस ने अपनी आज़ाद हिन्द फौज के साथ युद्ध में हिस्सा लिया था और जहां अंतिम बार उन्हें देखा गया था। मृत्यु की ये थ्योरी संदेह पैदा करती है।
वहीं अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए की रिपोर्ट में 1946 में भी सुभाष चंद्र बोस के जिंदा होने व रूस में देखे जाने का उल्लेख करती है। एक तथ्य और भी इस रिपोर्ट के झुठलाता है। नेताजी के निकट सहयोगी कैप्टन शाहनवाज का कहना था कि नेताजी उस विमान में सवार हुए नहीं थे। एक अफवाह यह रही कि नेताजी को ब्रिटेन की सरकार ने युद्ध अपराधी घोषित किया था, इसलिए वे स्वयं ही भूमिगत हो गए और उनके सहयोगियों ने उनकी मौत की खबर फैलाई जिससे वें सुरक्षित रह सकें।
खोसला आयोग समेत कोई भी आयोग नेताजी की मृत्यु के बारे में किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया। 1999 से 2005 तक तक सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर जांच कर रही मुखर्जी कमेटी की रिपोर्ट में 1945 में नेताजी की मृत्यु को संदिग्ध माना था। वहीं बहुत बाद तक भी उनके फैजाबाद में रह रहे गुमनामी बाबा के रूप में जिंदा होने की बातें कही जाती रही जो 1985 में दिवंगत हुए। अब सच क्या है कोई कुछ नहीं कह सकता है। सरकारी स्तर पर सुभाष भले ही भारत रत्न न हों पर भारत माता के वे आज भी अनमोल रत्न हैं।