देश में तीसरे मोर्चे का कोई वज़ूद नहीं

लोकसभा चुनाव की तिथि ज्यों-ज्यों नज़दीक आती जा रही है त्यों-त्यों राजनीतिक पार्टियां अपने वज़ूद को तलाश रही है। देश में दो मुख्य गठबंधनों के मोर्चों के अलावा तीसरे मोर्चे का कहीं कोई भविष्य या वज़ूद दिखाई नहीं दे रहा है। एन.डी.ए. और ‘इंडिया’ गठबंधन में सीधे संघर्ष के आसार भी कम दिखाई दे रहे है। कई बड़े राज्यों में कुछ क्षेत्रीय पार्टियां ऐसी भी है जो दोनों मुख्य गठबंधनों में नहीं है, मगर इन पार्टियों ने तीसरा मोर्चा बनाने में कोई रूचि नहीं दिखाई है। इनमें एक पार्टी बहुजन समाज पार्टी भी है जिसने अकेले चलो का नारा बुलंद किया है मगर तीसरा मोर्चा बनाने की कोई पहल नहीं की है। तेलंगाना में सत्ता गंवाने वाली क्षेत्रीय पार्टी बी.आर.एस. के नेता के. चंद्रशेखर राव ने कभी तीसरा मोर्चा बनाने की वकालत जोर शोर से की थी, मगर करारी हार के बाद वे भी अब अलग-थलग पड़े है। एन.डी.ए. और ‘इंडिया’ गठबंधन से दूरी बनाकर चल रही निर्गुट पार्टियां अपना वज़ूद बनाये रखने के लिए लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जोर शोर से जुट गई है। निर्गुट पार्टियों में से एक बसपा सुप्रीमो मायावती का कहना है राजनीतिक पार्टियां उनकी पार्टी के बारे में कोई बेवजह बयानबाजी न करें। पता नहीं भविष्य में कब किसको किसी की ज़रुरत पड़ जाये, तब उन्हें किसी शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़े। 
 देश की लगभग 64 राजनीतिक पार्टियों ने दोनों गठबंधनों में शिरकत की है। इनमें 26 पार्टियां ‘इंडिया’ और 38 पार्टियों ने एन.डी.ए. के झंडे के नीचे आने का फैसला किया है। देश में एन.डी.ए. और ‘इंडिया’ गठबंधन के अलावा एक दर्जन ऐसी पार्टियां है जिनका लगभग एक सौ लोकसभा सीटों पर खासा दबदबा है। ये पार्टिया किसी गुट विशेष में नहीं है और स्वयं की अलग पहचान बनाये हुए है।  उड़ीसा में बीजू जनता दल, आंध्रा में वाई.एस.आर. कांग्रेस अपने-अपने राज्य में सत्ता पर काबिज है। बी.आर.एस. तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हारकर सत्ताच्युत हो चुकी है। उड़ीसा में 21, आंध्र में 25 और तेलंगाना में 17 लोकसभा की सीटें है। जिनमें अधिकांश सीटों पर इन पार्टियों का कब्ज़ा है।  इसके अलावा आंध्र में तेलगु देशम, यूपी में मायावती की बसपा, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, हरियाणा में चौटाला का इनेलो, ओवेसी की ए.आई.एम.आई.एम., राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की रालोपा ऐसी पार्टियों में शुमार की जाती है जो किसी गठबंधन में नहीं है। इन पार्टियों का लगभग एक सौ लोकसभा सीटों पर प्रभाव है। इसके अलावा विभिन्न प्रदेशों में कुछ छोटी पार्टियों का अस्तित्व भी है। निर्गुट पार्टियों में आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना की बीआरएस और उड़ीसा की बीजद के पिछले प्रदर्शन को देखें तो ये राजनीतिक दल दोनों ही गठबंधन के लिए खतरा हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा से कुल मिलाकर 63 सांसद लोकसभा में जाते हैं। इन राज्यों में बहुकोणीय संघर्ष की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। 
निर्गुट पार्टियां किसी गठबंधन में नहीं है मगर अपने-अपने राज्य में इनका दबदबा है। विशेष रूप से उड़ीसा, आंध्र और तेलंगाना की पार्टियां इनमें शामिल है। अन्य प्रदेशों की निर्गुट पार्टिया भी कभी न कभी सत्ता पर काबिज़ रही है। अकाली दल और इनेलो के नेता मुख्यमंत्री के पद पर रहे है। इनमें कई पार्टिया कभी एन.डी.ए. की सहयोगी रही है। इनका कोई मोर्चा भी नहीं है। ये पार्टियां अपने-अपने राज्य में ही रहना चाहती है। यदि इन पार्टियों ने तीसरा मोर्चा बना लिया तो दोनों बड़े गठबंधनों के सामने मुसीबत खड़ी हो सकती है। यह भी कहा जा सकता है कि यदि दोनों गठबंधनों को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिले तो निर्गुट पार्टियां की सरकार बनाने में किसी बड़ी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है देश में लोकसभा चुनाव के महाजंग का ऐलान हो गया है। यह जंग ‘इंडिया’ और एन.डी.ए. के बीच होंगी। देश के आधा दर्जन राज्यों में निर्गुट पार्टियों के प्रभुत्व को देखते हुए बहु कोणीय संघर्ष की पूरी-पूरी सम्भावना है। देश में वर्तमान में 17 राज्यों में एन.डी.ए. और 9 में ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकारें है। जबकि तीन राज्यों में निर्गुट पार्टियों की सरकारें है। एन.डी.ए. के पास मौजूदा लोकसभा में 350 से ज्यादा सांसद हैं जबकि विपक्षी पार्टियों में शामिल ‘इंडिया’ के पास करीब 140 सांसद हैं। निर्गुट पार्टियों के पास लगभग 60 से अधिक सीटें है। 

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