वर्चस्व की जंग में जान गंवा रहे बाघ-बघेरे 

देश के जंगलों में वर्चस्व को लेकर बाघ-बघेरों में जंग छिड़ी हुई है। जंग भी ऐसी कि जिसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ रही है। जिस गति से जंगलों में बाघ-बघेरों का कुनबा बढ़ता जा रहा है, उसे देख कर लगता है कि आने वाले वर्षों में वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम नहीं होने वाला। वन्यजीव अभयारण्यों में बाघों के शावक अठखेलियां करते दिखाई देते हैं। ऐसे में वन्य पर्यटन भी तेज़ी से बढ़ रहा है। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक 38 बाघों की मौत चौंकाने वाली है जबकि इसी अवधि में देश भर में यह आंकड़ा 168 जा पहुंचा है। इन मौतों का कारण बाघों के बीच खूनी संघर्ष ही माना जा रहा है। ऐसे में यह स्थिति गंभीर खतरे की ओर संकेत करती दिख रही है। दुनिया के सर्वाधिक बाघों वाले देश में अब बाघ-बघेरों का बढ़ता कुनबा वन्यजीव प्रेमियों से लेकर सरकार और समाज के लिए चुनौती बनता जा रहा है। जंगलों में पहले से ही मानवीय हस्तक्षेप और जीवों के प्रति संवेदनहीनता भी कोढ़ में खाज के हालात पैदा करने वाली है। बाघों की मौत के आंकड़ों पर नज़र डालें तो टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में बाघों के सर्वाधिक घनत्व के लिए पहचान रखने वाले बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में सबसे ज्यादा 11 बाघों की मौत हुई। कान्हा टाइगर रिज़र्व में 8, पन्ना टाइगर रिजर्व में 5, सतपुड़ा में दो और पेंच में एक बाध की मौत हुई। इनमें पन्ना की लकवाग्रस्त बाघिन के दो शावक भी शामिल थे। दोनों शावकों का एक नर बाघ ने शिकार कर लिया था। 
केन्द्र सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल 29 जुलाई को जारी देशव्यापी बाघों की गिनती में सबसे अधिक  785 बाघों की संख्या वाले राज्य का गौरव मध्य प्रदेश को मिला था। बाघों का कुनबा बढ़ने के साथ ही उनके बीच आपसी लड़ाई की घटनाएं भी आम हो गई हैं। इसमें पन्ना व बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के मामले सर्वाधिक सामने आते रहते हैं। यहां शिकारियों की आवाजाही के प्रमाण भी मिलते रहे हैं।
राजस्थान के वन्यजीव अभयारण्य या टाइगर रिजर्वों में भी बाघ-बघेरों के बीच खूनी संघर्ष की स्थिति भी कोई ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती। रणथम्भौर नेशनल पार्क, सरिस्का टाइगर रिज़र्व और राजधानी जयपुर का झालाना लेपर्ड रिज़र्व में इन दिनों बाघ-बघेरों के बीच खूनी संघर्ष चलता रहता रहा है। यहां अपना वर्चस्व जमाने के लिए एक ही परिवार के बाघों के बीच संघर्ष चल रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो ये हालात अभी थमने वाले नहीं हैं। इसका कारण प्रदेश में बाघ-बघेरों की संख्या में निरन्तर बढ़ोतरी होना है और इनका आवास निरन्तर सिकुड़ते जाना है। यही नहीं रणथम्भौर, सरिस्का और झालाना में नए शावक भी जन्म ले रहे हैं। ऐसे में संबंधित विभागों को ठोस कदम उठाने ही होंगे।
करीब 1213 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरिस्का टाइगर रिज़र्व में वर्चस्व की लड़ाई में बाघ की जान जा चुकी है। लेकिन कम चिंता की बात यह है कि यहां वर्तमान में युवा बाघों में टकराव के हालात ज्यादा सामने नहीं आ रहे हैं। इसका कारण यहां जंगल का क्षेत्र बड़ा होने से बाघ-बघेरों में टकराव की स्थिति कम ही है। फिर भी यहां से बाघ-बघेरे आसपास के जंगलों में अपना वर्चस्व स्थापित करने को आतुर रहते हैं। जयपुर के समीप करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैले झालाना लेपर्ड रिज़र्व में वर्तमान में 40 से ज्यादा बघेरों का आवास है। इनमें करीब 15 युवा बाघ अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए समीप के जंगलों में घूमते देखे जा रहे हैं। गौरतलब है कि रणथम्भौर में वर्तमान में बाघों की संख्या करीब 75 है। इनमें आठ से दस शावक भी शामिल बताए जाते हैं। इस नेशनल पार्क से आए दिन संघर्ष की खबरें आती हैं और कई बार यहां घूमने आने वाले पर्यटकों को भी रोमांचित करने वाले नज़ाने देखने को मिल जाते हैं।
 बाघ के हमले में जंगल में लोगों की जान भी चली जाती है।एक तरफ  तेंदुए के संरक्षण की योजना शुरू करने वाला राजस्थान देश में पहला स्थान हासिल कर चुका है, वहीं दूसरी तरफ  तेंदुओं के आबादी वाले क्षेत्र में पहुंच कर इन्सानों पर हमलों की खबरें विचलित करने वाली हैं।  यूं तो प्रदेश भर में इन दिनों बाघ-बघेरे व तेंदुओं के हमलों से इन्सानों को जीवन को खतरे के समाचार मिलते रहते हैं लेकिन बीते साल 2023 में झालावाड़ और करौली ज़िलों की घटनाएं चिंताजनक हैं। (अदिति)