आधुनिकता में ढलते हरिद्वार के गंगा घाट

चहलकदमी करते हुए हरिद्वार के गंगा घाट आपको जो अपनी कहानियां सुनाते हैं, वे कहानियां प्रेमचंद और सआदत हसन मंटो के अफसानों जैसी भिन्न व विविध होती हैं। एक सिरे पर आप उत्सुक, प्रसन्न परिवार के पास से गुज़रते हैं, जो अपने सबसे छोटे सदस्य के मुंडन की सोच और कल्पना में डूबा होता है, दूसरे सिरे पर आपको आंसू भरे उदास चेहरे मिलते हैं, जो अपने परिवार के सबसे बड़े सदस्य के जाने पर विलाप कर रहे होते हैं। इससे अधिक गहरा अंतर कहीं नहीं हो सकता। जीवन व मृत्यु के इस चक्र के बावजूद यह प्राचीन शहर तीर्थयात्रा से भी अधिक आपको ऑफर करता है। हरिद्वार की पावन नगरी में अधिकतर पारिवारिक बंगले अब लक्ज़री होटलों में तब्दील हो गये हैं। शायद यही वजह है कि अब यहां बुजुर्गों की तुलना में युवा पर्यटक अधिक देखने को मिल रहे हैं।
इस शहर की उत्पत्ति व गंगा नदी से इसके संबंध का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। गौतम बुद्ध से लेकर ब्रिटिशकाल तक इसकी कहानी इतिहास व पौराणिक कथाओं का मिश्रण है। माना जाता है कि हर राजवंश, रियासत और समुदाय की उपस्थिति इस शहर में रही है। यहां विशाल हवेलियां व धर्मशालाएं हैं। आर्थिक स्थिति में स्पष्ट अंतर के बावजूद हरिद्वार समता ऑफर करता है— हर आत्मा को गंगा किनारे अपनी जगह मिल जाती है। हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री से सहयोग करने वाले परिवारों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। जो कभी हेरिटेज घर हुआ करते थे, उन्हें बुटीक लक्ज़री होटलों में बदला जा रहा है। मसलन पीलीभीत हाउस को ही लें। यह बुटीक प्रॉपर्टी पतली सी गली में स्थित है, जहां मकानों व दुकानों की भरमार है। इसका रुख गंगा घाटों की ओर है और इसका कोर्टयार्ड इसके शांत नज़ारे को स्पष्ट कर देता है। 
इस प्रॉपर्टी का मूलत: निर्माण लगभग सौ वर्ष पहले 1925 व 1930 के बीच में हुआ था। इसे देश की आज़ादी से पहले लाहौर के एक व्यापारी परिवार ने बनवाया था। जब तक 2006 में इसे प्रसाद परिवार ने नहीं खरीदा था, तब तक यह लाहौर हाउस के नाम से ही पुकारा जाता था। चूंकि प्रसाद परिवार का पैतृक शहर उत्तर प्रदेश में पीलीभीत था, इसलिए इसे पीलीभीत हाउस नाम दिया गया। पीलीभीत हाउस का माथा सफेद है और इसके असबाब या फर्निशिंग में आसमानी नीले व गोल्ड का टच है, जोकि इस शहर और उसके बीच से बहती नदी से मेल खाता है। युवा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पीलीभीत हाउस आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराता है जैसे स्पा, स्विमिंग पूल और अपने रेस्तरां में कॉन्टिनेंटल फूड। अपने इस प्रयास से प्रसाद परिवार ने अन्य लोगों को भी प्रेरित किया है।
इनमें एक अमृत भवन भी है। यह हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित है। पचास वर्ष पुराना यह आर्ट डेको होम बजाज परिवार का है। परिवार के वंशज वरुण बजाज ने इस एक मंजिला इमारत को नया जीवन दिया है, इसके पुराने मूल व आकर्षण को बरकरार रखते हुए। पुराने व नये टच में शामिल हैं पुराने स्कूल की मोज़ेक फ्लोरिंग व टाइल्स, आश्रम थीम के कमरे, बालकनी पर चिक पर्दे और जकूज़ी। ये सब चीजें न केवल लक्ज़री प्रॉपर्टीज ही युवा शहरी पर्यटकों को हरिद्वार से जुड़ने का अवसर प्रदान नहीं कर रही हैं बल्कि इनका संबंध अनुभव से भी है। बजाज यह शानदार अनुभव अपनी यादों व शोध के ज़रिये लेकर आये हैं। इनमें से एक है कनखल गांव में सुबह सवेरे चहलकदमी करना, जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।
़कदम बाहर निकालते ही हरिद्वार की पतली गलियों में आपको पंडित मिल जायेंगे जो अपने लाल बही खातों के ज़रिये शताब्दियों पुरानी आपके परिवार की जड़ों को बता देंगे। यह एक ऐसी तस्वीर है, जो आज पुराने शहरों में मुश्किल से ही देखने को मिलती है। लेकिन यही जड़ों से जुड़ा रहना आखिरकार हरिद्वार के नये लक्ज़री प्रयासों की विशिष्ट पहचान बनाने में सहयोग किये हुए है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर