गर्मियों में ज़हर-मुक्त सब्ज़ियां कैसे प्राप्त की जाएं ?

स्वास्थ्य के पक्ष से सब्ज़ियों का सेवन करना बहुत ज़रूरी है। इनके इस्तेमाल से इन्सान बीमारियों पर होने वाले खर्च से बचता है। नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूट्रीशन हैदराबाद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 300 ग्राम सब्ज़ी का उपयोग प्रतिदिन करना चाहिए, जिसमें प्राथमिकता के आधार पर 120 ग्राम पत्ते वाली सब्ज़ियों, 90 ग्राम जड़ वाली तथा 90 ग्राम अन्य सब्ज़ियां खानी चाहिएं। गर्मियों में खाये जाने वाली सब्ज़ियां लगाने का अब उचित समय है। इन्हें फरवरी-मार्च के दौरान ही लगाना चाहिए। लौकी, चप्पन कद्दू तथा काली तोरी की बैडों पर बिजाई करने हेतु प्रति मरला (25 वर्ग मीटर) रकबे के लिए 12-12 ग्राम बीज की ज़रूरत है। प्रत्येक किसान एवं उपभोक्ता, जिसके पास स्थान उपलब्ध है, इन सब्ज़ियों को अब लगा सकते हैं। करेला, लोबिया, भिन्डी आदि लगाने के लिए बीज की मात्रा 60 ग्राम प्रति मरला चाहिए। तर तथा खीरा 6 ग्राम बीज के साथ भी एक मरले में बैडों पर लगाए जा सकते हैं। मिर्च तथा शिमला मिर्च को मुंडेर पर लगाने के लिए 1.25 ग्राम प्रति मरला बीज आवश्यक है। वैसे इनकी पौध मुंडेरों पर लगाई जाती है। खरबूजा भी आजकल लगाया जा सकता है। इसलिए 10 ग्राम प्रति मरला बीज का प्रबंध करना चाहिए, जो किसान व्यापारिक स्तर पर सब्ज़ियों की काश्त करते हैं, उनका सम्पर्क तो आम तौर पर विशेषज्ञों से होता है और वे समय-समय पर बीमारियों की रोकथाम संबंधी जानकारी लेते रहते हैं। 
अधिकतर उत्पादक दुकानदारों पर विश्वास रखते हैं। जो किसान तथा उपभोक्ता घरों में इस्तेमाल के लिए सब्ज़ियां उगाते हैं, उनके पास पूरी जानकारी नहीं होती। उन्हें बागबानी की प्रसार सेवा या सब्ज़ियों के विशेषज्ञों से जानकारी लेनी चाहिए ताकि उनकी यह शिकायत कि सब्ज़ियां उगती नहीं, न रहे। तीन मरले में लगाई गई सब्ज़ी परिवार के लिए काफी होती है और बाज़ार से सब्ज़ी खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती। बाज़ार में सब्ज़ियां बहुत महंगी मिलती हैं, क्योंकि कभी बारिश तथा कभी मौसम के प्रकोप के कारण ये नष्ट हो जाती हैं और इनकी पैदावार कम हो जाती है।
सब्ज़ियों के बीज प्रमाणित संस्थानों जैसे बागबानी विभाग के ज़िलों तथा ब्लाकों के विकास अधिकारियों से या पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के केन्द्रों या कृषि विज्ञान केन्द्रों से लेने चाहिएं। इसके अतिरिक्त आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीच्यूट भी शुद्ध बीज की किटें बनाकर किसानों एवं उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराता है। सब्ज़ियां लगाने के लिए कतारों तथा पौधों के बीच अंतर सही रखना चाहिए और मरले में 400 किलोग्राम गली-सड़ी रूढ़ी खाद या 100 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट डाल कर मिला कर देनी चाहिए। जिन सब्ज़ियों की पौध लगती है, उनकी पौध किसी प्रमाणित नर्सरी या सैंटर ऑफ एक्सीलैंस (सब्ज़ियां), करतारपुर (जिला जालन्धर) से लेनी चाहिए। किसान सब्ज़ियों में कीटनाशकों का इस्तेमाल अन्य फसलों से अधिक करते हैं, क्योंकि सब्ज़ियों में बीमारियां भी बहुत आती हैं। सब्ज़ियों की काश्त के अधीन रकबा थोड़ा-थोड़ा करके ही बढ़ रहा है। पंजाब में लगभग तीन लाख हैक्टेयर पर सब्ज़ियों की काश्त की जाती है, जिसमें लगभग आधे से कम रकबा अकेले आलू की काश्त के अधीन है। आलू की खपत के अतिरिक्त पंजाब में आलू का बीज पैदा करके भी दूसरे राज्यों को भेजा जाता है। किसानों को प्राथमिकता के आधार पर पी.ए.यू. तथा आई.ए.आर.आई द्वारा विकसित ऐसी किस्मों की काश्त करनी चाहिए, जिनमें बीमारियों तथा कीड़े-मकौड़ों का मुकाबला करने की समर्था हो। आम उपभोक्ताओं को भी किस्मों का चयन इन प्रमाणित संस्थाओं से बीज लेकर ही करना चाहिए। 
सब्ज़ियों की अच्छी पैदावार पौध की गुणवत्ता अच्छी होने पर निर्भर है। टमाटर, शिमला मिर्च, बैंगन, मिर्च आदि सब्ज़ियां पौध से ही पैदा की जाती हैं। व्यापारिक स्तर पर सब्ज़ियां उगाने वाले किसान पौध पॉली हाऊस, नैट हाऊस, निम्न सुरंग प्रणाली आदि विधियों से तैयार कर सकते हैं। छोटे सब्ज़ी उत्पादकों के लिए निम्न सुरंग प्रणाली बड़ी उचित है, क्योंकि इसमें दूसरी विधियों से पैदा पौध के मुकाबले लागत कम आती है और इस तकनीक से उगाई गई पौध की देखभाल भी आसान है। 
उपभोक्ताओं के पास आम सब्ज़ियां कीटनाशकों के प्रभाव वाली ही पहुंचती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। उत्पादक कीटनाशकों का छिड़काव करके जल्दी ही सब्ज़ियां तोड़ कर मंडीकरण के लिए ले जाते हैं। बागबानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर (सेवामुक्त) डा. स्वर्ण सिंह मान देसी इलाज की सिफारिश करते हैं, जिससे कीटनाशकों के प्रभाव वाली सब्ज़ियों की रोकथाम की जा सकती है। फफूंद की बीमारियों से बचाव के लिए वह 4 दिन पुरानी लस्सी 15 लीटर पानी में डाल कर इसका छिड़काव करने की सिफारिश करते हैं। कीड़े-मकौड़ों से बचाव के लिए 2 किलो लसहुन, एक किलो अदरक तथा एक किलो हरी मिर्च पीस कर तथा कपड़-छान करके 15 लीटर पानी में डाल कर इसका छिड़काव करने की सिफारिश करते हैं। वायरस की बीमारियों से बचाव हेतु एक लीटर गौ-मूत्र, एक लीटर दूध, 15 लीटर पानी में डाल कर इसका छिड़काव किया जा सकता है। अन्य कीड़ों-मकौड़ों से बचाव के लिए एक किलो नीम के पत्ते 20 लीटर पानी में उबाल कर फिर पानी ठंडा होने के बाद 200 ग्राम शक्कर डाल कर छिड़काव किया जा सकता है। दीमक से बचाव के लिए 20 ग्राम हींग का टुकड़ा कपड़े में लपेट कर पानी के खाल में रख देना चाहिए।