असमय निकाली यात्रा कांग्रेस को कोई लाभ नहीं देगी

पंजाबी में कहावत है,  ‘बूहे आई जन्न, विन्नो कुड़ी दे कन्न’। साधारण शब्दों में कहें तो असमय कार्य करना। कांग्रेस के साथ आजकल यही कुछ होता दिख रहा है। आम चुनाव सिर पर हैं और पार्टी जुटी है न्याय यात्रा में। स्कूली भाषा में बोलें तो फाइनल परीक्षा के समय एजुकेशनल टूर पर निकलना। देखने में आ रहा है कि इस यात्रा में न केवल कांग्रेस बल्कि वह ‘इंडिया’  गठबंधन भी भटकता और झटके खाता नज़र आ रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई थी और 20 मार्च को मुम्बई में सम्पन्न होगी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रही यह यात्रा 67 दिन में 6713 किलोमीटर लम्बा सफर तय करने के लिए देश के 15 राज्यों के 110 जिलों और 100 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। यह राहुल गांधी की दूसरी यात्रा है। इससे पहले उन्होंने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाली थी जो 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से शुरू हो कर 30 जनवरी, 2023 को कश्मीर में सम्पन्न हुई थी। 136 दिन की उस यात्रा में 12 राज्यों और दो केन्द्र शासित प्रदेशों के 75 ज़िलों और 76 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरते हुए चार हज़ार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय किया गया था। पहली यात्रा पदयात्रा ही थी, जबकि इस यात्रा में हर दिन आठ से दस किलोमीटर पैदल चल कर शेष सफर विशेष वाहनों से तय किया जाएगा। राहुल की इस दूसरी यात्रा का राजनीतिक आकलन तो लोकसभा चुनाव के बाद ही हो पाएगा, लेकिन पहली यात्रा को एक नज़रिए से देखें तो उसका परिणाम मिलाजुला रहा। कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जीत गई तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसे करारी हार झेलनी पड़ी। कांग्रेस को विश्वास है कि अब की बार न्याय यात्रा परिवर्तनकारी साबित होगी। 
राहुल गांधी की पहली यात्रा के बाद एक बड़ी घटना यह हुई कि दो दर्जन से भी ज्यादा विपक्षी दलों ने मिल कर ‘इंडिया’ गठबंधन बनाया, लेकिन इस बार की यात्रा में सबसे बड़ी चूक साबित हो सकती है इसका समय। पहली यात्रा के समय देश के कुछ राज्यों में ही विधानसभा चुनाव होने थे, परन्तु अब इस यात्रा के समय आम चुनाव होने हैं, जो हर राजनीतिक दल के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। अभी सबसे बड़ा सवाल न्याय यात्रा के समय को लेकर ही उठ रहा है। मार्च के दूसरे पखवाड़े में जब यह यात्रा सम्पन् होगी, तब तक शायद देश में लोकसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित हो चुका होगा या होने वाला होगा। ऐसे में फरवरी और मार्च कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव की तैयारी के हिसाब से महत्वपूर्ण समय है। ऐसे समय में यदि पार्टी की पूरी ऊर्जा केवल यात्रा के आयोजन और उससे जुड़े विवादों से जूझने में लग जाए, यह पार्टी के पक्ष में नहीं होगा।
यात्रा में केवल कांग्रेस ही भटकी नहीं लगती, अपितु ‘इंडिया’ गठबंधन भी भटका हुआ और झटके खाता दिखाई रहा है। सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एकला चलो का राग अलाप चुकी हैं तो आम आदमी पार्टी पंजाब, हरियाणा व दिल्ली में कांग्रेस के साथ समझौते से लगभग इन्कार कर चुकी है। ‘इंडिया’ गठबंधन को सबसे करारा झटका दिया है बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने, जो कहां तो कल तक खुद को इस गठबंधन का संयोजक मान कर चल रहे थे और अब वे भाजपा के पाले में जा चुके हैं। केवल इतना ही नहीं गठबंधन के अन्य दलों में भी इसके भविष्य को लेकर संदेह पैदा होने लगा है।
फरवरी का महीना चल रहा है। अब तक ‘इंडिया’ गठबंधन में सीटों के बंटवारे का काम पूरा हो जाना चाहिए था, परन्तु कांग्रेस के लिए यह कार्य अभी बहुत दूर की कौड़ी लगती है। गठबंधन के ही सहयोगी माने जाने वाले दल तृणमूल कांग्रेस के शासन वाले बंगाल में राहुल गांधी की यात्रा पर हुए पथराव से ऐसा प्रतीत होता है कि इस यात्रा के लिए गठबंधन के सहयोगी दलों को न तो विश्वास में लिया गया और न ही उनका सहयोग मांगा गया। इतनी दयनीय स्थिति में भी कांग्रेस का अहं अभी गया नहीं लगता।
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि न्याय यात्रा कांग्रेस के लिए गले की फांस बन चुकी है। पार्टी की सारी शक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी के हाथों में सीमित हैं तो यात्रा का नेतृत्व भी वही कर रहे हैं। राहुल की अनुमति के बिना पार्टी के अन्य नेता न तो संगठन को लेकर कोई निर्णय कर पा रहे हैं और न ही राहुल गांधी को इसके लिए समय मिल रहा है। यही दुविधा कांग्रेस को भटका रही है। (युवराज)