आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती 

स्वामी दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक, महान चिंतक, समाज सुधारक और देशभक्त थे। स्वामी जी का जन्म 12 फरवरी, 1824 को हुआ थी। उन्नीसवीं शताब्दी के महान समाज सुधारकों में स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम अत्यंत श्रद्धा के साथ लिया जाता है। जिस समय भारत में चारों ओर कुरीतियों का बोल-बाला था। स्वामी जी ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने भारत में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए 1876 में हरिद्वार के कुंभ मेले के अवसर पर पाखण्ड-खंडिनी पताका फहराकर पोंगा-पंथियों को चुनौती दी। उन्होंने फिर से वेद की महिमा की स्थापना की। उन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना की जिसके विचार सुधारवादी और प्रगतिशील थे।  
 हिंदू पंचांग के अनुसार स्वामी दयानंद सरवती का जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था। स्वामी जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में दयानंद सरस्वती जयंती मनाई जाती है। उन्होंने अपने समय में समाज में फैली बाल विवाह, सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों के प्रति न केवल समाज को जागरूक किया बल्कि इन्हें दूर करने में भी काफी योगदान दिया। अपने परिवार से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह एक महान वैदिक विद्वान के रूप में उभरे। उन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग दिया और ज्ञान व सत्य की खोज में भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में चले गए। 
स्वामी दयानंद ने अपना सर्वस्व जीवन राष्ट्रहित के उत्थान, समाज में प्रचलित अंधविश्वासों और बुराइयों को दूर करने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने ओजस्वी विचारों से समाज में नव चेतना का संचार किया। उन्होंने वेदों को सर्वोच्च माना और वेदों का प्रमाण देते हुए समाज में फैली बुराइयों का विरोध किया। उन्होंने सन् 1874 में अपने कालजयी ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना की। वर्ष 1908 में इस ग्रन्थ का अंग्रेज़ी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इसके अलावा उन्होंने कुल मिलाकर 60 पुस्तकें, 14 संग्रह, 6 वेदांग, अष्टाध्यायी टीका व अनके लेख लिखे जिनमें ‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’, ‘संस्कार-विधि’, आर्याभिविनय’ आदि अनेक विशिष्ट ग्रन्थों की रचना की।
अपने 59 वर्ष के जीवन में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने ज्ञान-प्रकाश को देश में फैलाया। उन्होंने अपने कार्यों से समाज को नयी दिशा एवं ऊर्जा दी। महात्मा गांधी जैसे अनेक महापुरुष स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों से प्रभावित थे। धर्म सुधार हेतु अग्रणी रहे दयानंद सरस्वती जी ने 1875 में मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की थी। वेदों का प्रचार करने के लिए उन्होंने पूरे देश का दौरा करके पंडित और विद्वानों को वेदों की महत्ता के बारे में समझाया। 
 दयानंद सरस्वती जी ने अंग्रेज़ों के खिलाफ भी कई अभियान चलाए, जिससे अंग्रेज़ी सरकार स्वामी दयानंद से बुरी तरह तिलमिला गयी और स्वामी जी से छुटकारा पाने के लिए उन्हें समाप्त करने के लिए तरह-तरह के षड्यंत्र रचे। 1857 की क्रांति में भी स्वामी जी ने अपना अमूल्य योगदान दिया। अंग्रेज़ हुकूमत से जमकर लोहा लिया। स्वामी दयानंद सरस्वती वैदिक धर्म में विश्वास रखते थे। दयानन्द सरस्वती ने विधवा नारियों के पुनर्विवाह के लिये अपना मत दिया और लोगों को इस ओर जागरूक किया। स्वामी जी ने सदैव नारी शक्ति का समर्थन किया। उनका मानना था कि नारी शिक्षा से ही समाज का विकास है।  उन्होंने नारी को समाज का आधार माना और कहा कि उनका शिक्षित होना ज़रुरी है।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों के प्रचार के लिए हिन्दी भाषा को अपनाया। उनकी सभी रचनाएं और सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश मूल रूप में हिन्दी भाषा में लिखा गया। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस 30 अक्तूबर को होता है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने ‘ईश्वर तेरी इच्छा पूर्ण हो’ कह कर अपनी नश्वर देह  30 अक्तूबर, 1883 को अमावस के दिन भिनाय कोठी आगरा में त्याग दी थी।

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