क्या कृत्रिम बौद्धिकता का खतरा समझते हैं नेतागण ?

कृत्रिम बौद्धिकता के कारनामे आप से छुपे हुए नहीं रह गये। वे तमाम विशेषज्ञ जो इसके विस्तार और इसकी क्षमता को समझ पा रहे हैं, बता रहे हैं कि शिक्षा, ग्राहक सेवा, कला, शोध, मैडीकल जांच या फिर मनोरंजन में कृत्रिम बौद्धिकता (ए.आई.) इन्सान के करने,सोचने, पढ़ पाने से काफी आगे निकल सकता है। निकल जाएगा। बताया जा रहा है कि इसमें बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल की भी वाजिब क्षमता रहेगी। यह मानवीय भावनाओं से सम्पन्न आदमी की तरह व्यवहार कर सकता है। बिल गेट्स बेवजह ही नहीं कह रहे कि दुनिया अगले पांच साल में पूरी तरह से बदल जाएगी। जिसकी वजह उन्हें लग रही है कि सस्ती दर पर रोबोट एजेंट बाज़ार में हावी रहने वाले हैं और निजी सहायक की तरह इन्सान की सहायता के लिए उपलब्ध रहेंगे। यदि इसके इतिहास की एक झलक देखें तो सात ह्यूमनाइड रोबोट आ चुके हैं, जिन्हें इन प्रचलित नामों से पुकारा जाता है। सोफिया, एटलस, अमेका, नार्डन, एसियो, इरिक ा और ओसिना इनमें ए.आई. संचालित अनेक भाषाओं की ज्ञाता सोफिया सऊदी अरब के रोबोट है। चमत्कार के तौर पर विश्व भर में प्रतीक्षा है ओपन ए.आई. चैट जी.पी.टी. माइक्रोसाफ्ट विंग, गूगल बार्ड और एलन मस्क के नये प्लेटफार्म की। यदि कम्प्यूटर और रोबोट विशेषज्ञों के आकलन के आम अनुपात को समझें तो 9 से 21 महीनों के बीच या 2 से 5 वर्ष तक कृत्रिम बौद्धिकता का दौर होगा। यह औसत इन्सान से कहीं अधिक स्मार्ट होने वाला है। वैज्ञानिकों की मानें तो इन आने वाले दो-तीन सालों में पांच-छह चैट जी.पी.टी. आने वाले हैं जिनमें आदमी से तीन हज़ार से पांच हज़ार गुना अधिक बुद्धिमता होने वाली है।
हम अभी-अभी प्रांतीय चुनावों के दौर से गुज़र रहे हैं। इन चुनावों में जनता से वोट मांगने के लिए वायदों की झड़ी लगा दी गई। एक पार्टी के नेता ने दूसरी विपक्षी पार्टी पर आरोपों की धुआंधार तकरीरें कीं। तर्क जुटाये, वायदे किये। लेकिन अगले आने वाले पांच वर्षों में कौन-कौन सी बड़ी चुनौतियां सामने आने वाली हैं। इस पर न तो खुद बोले न अपनी जनता को बताया। भारत में पिछले कुछ समय से नि:संदेह काफी विकास का कार्य हुआ है। कई क्षेत्रों में तकनीक आधारित कार्यक्रमों में विश्व भर को चकित किया है। परिणाम स्वरूप देश में तीन हज़ार से अधिक ‘डीप तकनीकी स्टार्ट-अप’ अपना कार्य कर रहे हैं। यह सम्भावना जाहिर की जा रही है कि 2025 तक इस क्षेत्र में भारत की अर्थ-व्यवस्था में चार सौ पचास से पांच सौ अरब डॉलर योगदान करने की क्षमता होगी। सोचने वाला सवाल है कि भारत की क्षेत्रीय राजनीति में यह सब कितनी अहमियत रखता है? राज्य को उच्च स्तर पर ले जाने वाली राजनीतिक शक्तियां इस आने वाली बौद्धिक बुद्धिमता (ए.आई.) को कितना समझ पा रही है? वे कितने गम्भीर हैं इस आने वाले बहुत बड़े बदलाव को लेकर? क्या उन्हें यह महसूस हो रहा है कि समाज किसी हद तक निराधार आरोपों, उग्र भाषणों, ये सहुलियत देंगे, ये फ्री देंगे। कर्ज माफ करेंगे बगैरा-बगैरा के उत्तेजक भाषणों से बदल सकता है या कि तकनीक में आये किसी क्रांतिकारी बदलाव से? तकनीकी बदलाव ने जिस तरह से दुनिया को बदला है या बदलने वाला है इसका थोड़ा-सा अहसास भी है उनको? कृत्रिम बौद्धिकता का उपयोग देश-प्रदेश में लाखों नौकरियां खा जाएगा जिससे भयानक बेरोज़गारी का सामना करना पड़ सकता है। 
इस समय समाज में बदलाव का कारण कृत्रिम बौद्धिकता ही होने वाली है। यह एक सुनामी की तरह होगी। हमारी सोच, जीवनशैली, प्रशासन, व्यवस्था सहित हर चीज को प्रभावित करने वाली है। इसका कितना उपयोग होना चाहिए और कितना नहीं, इस पर बहस होनी चाहिए, लेकिन करेगा कौन?