नरेन्द्र मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन ?

आगामी कुछ दिनों में चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर देगा। राजनीतिक दल चुनाव मैदान में कूद चुके हैं। देश का राजनीतिक तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का प्रधानमंत्री चेहरा नरेंद्र मोदी हैं। ऐसे में अहम प्रश्न है कि मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा? क्या विपक्ष चुनाव मैदान में उतरने से पहले किसी एक चेहरे पर सहमति बना पाएगा या फिर विपक्ष बिना चेहरे के ही मोदी को चुनौती देगा? विपक्ष अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि मोदी के सामने कौन विपक्ष को चेहरा कौन होगा।
भाजपा ने पिछले चुनाव में भी इस बात को खूब प्रचारित किया था कि विपक्ष के पास मोदी का कोई विकल्प नहीं है। सोशल मीडिया पर आज भी इस बात की चर्चा होती है कि आम चुनाव में विपक्ष के पास प्रधानमंत्री के लिए कौन ऐसा उम्मीदवार है, जो मोदी की बराबरी करता दिखे? इसका कोई जवाब विपक्ष के पास नहीं है। विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अनेक हैं। दलों में क्षेत्रीय स्तर पर तालमेल नहीं है। इस कारण विपक्ष चुनाव मैदान , संसद के भीतर या सड़क पर सरकार के खिलाफ पुरी तरह एकजुट नहीं दिखाई दे रहा है। नितीश कुमार ने विपक्षी एकता का प्रयास किया था, लेकिन कांग्रेस के रवैये से रुष्ट होकर वो दोबारा राजग में शामिल हो चुके हैं। 
विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ पिछले दस महीने में आधा दर्जन बैठकों के बाद भी किसी एक चेहरे के नाम पर सहमति नहीं बना पाया। विपक्ष का हर नेता स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार समझता है। 2014 के बाद जब से नरेंद्र मोदी की अगुवाई में नई भाजपा सामने आई है, तब से देश में चेहरा आधारित चुनाव का नया दौर शुरू हुआ है। विपक्ष के पास नरेंद्र मोदी का विकल्प कौन है? यह विपक्ष का सबसे अनसुलझा सवाल रहा।  वहीं अगर पिछले कुछ सालों का रिकार्ड देखें तो जिस राज्य में विपक्ष ने विधानसभा चुनाव में मज़बूत चेहरा रखा, वहां उसे विजय हासिल हुई। लेकिन केंद्र में आकर वह ऐसा करने में विफल रहा। 
गत 19 दिसम्बर को ‘इंडिया’ की बैठक में यह मसला उठा और कुछ नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे किया लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ज़ोर देकर कहा कि विपक्षी दलों के लिए पहली प्राथमिकता आम चुनाव जीतना और फिर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम तय करना होगा। उन्होंने कहा, ‘आवश्यक सदस्यों के बिना प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार के बारे में चर्चा निरर्थक है।’ खड़गे के गैर-प्रतिबद्ध रुख ने संकेत दिया कि गठबंधन का चेहरा नामित करने का मुद्दा विवादास्पद बना हुआ है जबकि तमाम आंकड़े और सर्वेक्षण बताते हैं कि आजकल मतदाता चुनाव में नेतृत्व की स्पष्टता वाले दल की ओर अधिक जाना पसंद करते हैं।
ऐसे में विपक्ष के लिए इस अनसुलझे प्रश्न की तलाश सबसे अधिक है। मुकाबला तो साफ तौर पर घोषित उम्मीदवारों के बीच होता है। जब विपक्ष प्रधानमंत्री पद हेतु कोई चेहरा घोषित ही नहीं कर पाया तो ऐसे में आमजन में यह संदेश गया कि विपक्ष के पास मोदी का मुकाबला करने वाला कोई नाम और चेहरा नहीं है। 
बिना किसी चेहरे के विपक्ष अपनी आधी लड़ाई शुरू होने से पहले ही हार चुका है।  वास्तव में कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से नितीश कुमार के बनाए मंच पर अपना वर्चस्व और प्रभुत्व स्थापित कर लिया और रणनीति के तहत वह संयोजक के नाम की घोषणा जैसे अहम मुद्दे को बैठक दर बैठक टालती रही। गठबंधन में संयोजक ही प्रधानमंत्री पद का चेहरा होता। कांग्रेस यह नहीं चाहती थी कि राहुल गांधी के अलावा कोई दूसरा चेहरा गठबंधन की ओर से घोषित किया जाए। हालांकि कांग्रेस की चालाकी को नितीश, केजरीवाल और ममता भांप गए। इसलिए इन तीन नेताओं ने कांग्रेस के रवैये की आलोचना करने से परहेज नहीं किया था। 
नितीश तो गठबंधन से अलग हो गए। ममता ने मल्लिकार्जुन का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाकर राहुल और अन्य संभावित प्रत्याशियों का रास्ता रोकने का काम किया। केजरीवाल कांग्रेस के साथ आए भी तो अपनी शर्तों पर। कांग्रेस ने झुक कर ‘आप’ से सीटों का बंटवारा किया। ममता अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। मतलब साफ है कि गठबंधन में कोई किसी को आगे बढ़ता देखना नहीं चाहता।  प्रधानमंत्री मोदी पिछले दो महीने में कई अवसरों पर अपने तीसरे कार्यकाल का ज़िक्र कर चुके हैं। बीती 3 मार्च को  मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। मौजूदा सरकार की यह आखिरी बैठक थी। करीब 11 घंटे चली बैठक में विजन डॉक्यूमेंट विकसित भारत 2047, अगले 5 साल की योजनाओं और सरकार के तीसरे कार्यकाल के दौरान पहले 100 दिन की रणनीति पर चर्चा हुई। जहां एक ओर विपक्ष के कई बड़े नेता अपने लिए सुरक्षित सीटें और गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर उलझे हुए हैं, वहीं मोदी तीसरे कार्यकाल की रणनीति तय कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के आत्म-विश्वास से अंदर ही अंदर समूचे विपक्ष में घबराहट है।  पिछले वर्ष पांच राज्यों के चुनाव में मोदी की गारंटी विपक्ष के वायदों पर भारी पड़ी थी। देशवासियों ने मोदी की गारंटी पर भरोसा किया। ‘इंडिया’ भी मोदी को हराने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा। कांग्रेस तो अपना स्तर गिराकर समझौते और गठबंधन करने से भी परहेज नहीं कर रही है। अहम सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की छवि, कद और नेतृत्व के सामने विपक्ष की बिना चेहरे वाली रणनीति कामयाब हो पाएगी?
यदि विपक्ष सत्ता विरोधी लहर को भुनाने में कामयाब होता है और सरकार की नाकामियों को जनता के बीच ले जाने में सफल रहता है तो फिर उसे फायदा हो सकता, लेकिन यदि सत्ता विरोधी लहर नज़र नहीं आती है तो फिर मोदी के चेहरे का फायदा फिर भाजपा को मिलेगा।