सदन का गिरता स्तर

पंजाब विधानसभा के शुरू हुये बजट सत्र के दूसरे दिन जिस तरह सदन में मछली मंडी का नज़ारा देखा गया, वह बेहद दुखद एवं चिन्ताजनक था। प्रदेश के इतिहास में शायद ही विधानसभा में कभी ऐसा दृश्य देखा गया हो। एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप एवं तानेबाजी की बातें गलियों-बाज़ारों में तो देखी-सुनी जा सकती हैं परन्तु लोगों के द्वारा चुन कर आये प्रतिनिधियों की ओर से विधानसभा में ऐसा कुछ करना शोभा नहीं देता। हम इसके लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान को बड़ा ज़िम्मेदार समझते हैं, क्योंकि इस उच्च पद पर बैठे जिस व्यक्ति से सदन की ऊंची संवैधानिक ज़िम्मेदारियां समुचित ढंग से निभाने की आशा की जाती थी, वह उस म्यार पर पूरा नहीं उतरे। यदि कोई बहस या विचार-विमर्श के स्थान पर निजी तानेबाजी पर उतर आये तो उसकी लोगों में प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। दूसरों को भ्रष्ट बता कर स्वयं को साफ-स्वच्छ बताना इसलिए शोभा नहीं देता क्योंकि आज प्रदेश में जो कुछ घटित हो रहा है, उससे लोग पूरी तरह अवगत हैं। आज जिस तरह प्रदेश के खज़ाने को लुटाया जा रहा है, उससे भी लोग अनजान नहीं हैं। खज़ाना लुटा कर लोगों को कुछ समय के लिए तो भम्रित किया जा सकता है परन्तु लम्बी अवधि के लिए उन्हें मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।
पंजाब के लोग जागरूक हैं। वे हर बात एवं हर क्रियान्वयन की प्रतिक्रिया को समझने में समर्थ हैं। ज़रूरत यह थी कि सदन में पंजाब के ऐसे मामलों पर गम्भीर विचार-विमर्श होता, जिनसे आज लोग जूझ रहे हैं, परन्तु सदन में ऐसा नहीं हुआ, जिस कारण लोगों को भारी निराशा हुई है। विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने से पहले भी मुख्यमंत्री भगवंत मान एवं ‘आप’ के संयोजक अरविन्द केजरीवाल पंजाब में सरकार की ओर से रखे गये भिन्न-भिन्न समाराहों में विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर निशाने साध कर निजी हमले करते रहे हैं। सरकार की ओर से विज्ञापनबाज़ी करके अपनी खोखली उपलब्धियों को वास्तविक एवं उचित दर्शाने का यत्न किया जा रहा है। उनकी इन कार्रवाइयों से लोगों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ने के स्थान पर बेचैनी बढ़ रही है। जिस ढंग से सरकार की ओर से किसानों के मामलों से निपटा जा रहा है, उसने भी सरकार की दोगली नीतियों का भेद खोल दिया है।
लोकसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री स्थान-स्थान पर जाकर लोगों को लॉलीपाप भी बांट रहे हैं एवं अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा कर लोगों को भ्रमित करने का यत्न कर रहे हैं, उद्योगपतियों को उत्साहित करने के नाम पर निरर्थक भेंटवार्ताएं की जा रही हैं, जबकि सच्चाई यह है कि आज प्रदेश का उद्योग डूबता जा रहा है तथा आखिरी श्वास पर है। उद्योग पहले स्थान से 24वें स्थान पर आ गया है। कोई भी उद्योगपति या बड़ी कम्पनी यहां आकर एक ईंट तक लगाने के लिए तैयार नहीं है। राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति यह है कि सरकार ने दो वर्ष में 67 हज़ार करोड़ का ऋण ले लिया है एवं कोई न कोई तरीका ढूंढ कर पंजाब के सिर पर और ऋण की भार डालने से भी इसकी ओर से संकोच नहीं किया जा रहा। उद्देश्य एक ही है कि चुनाव जीतने के लिए लोगों को भरमाने हेतु मुफ्तखोरी पर आधारित नई से नई योजनाओं की घोषणा की जाये।
आज जिस सीमा तक प्रदेश के समक्ष बेहद गम्भीर चुनौतियां खड़ी दिखाई दे रही हैं, प्रदेश सरकार उनका मुकाबला करने के लिए बेहद बौना दिखाई देती है। केन्द्र सरकार की योजनाएं यहां इस कारण आधी-अधूरी पड़ी हैं, क्योंकि पंजाब सरकार उनमें निर्धारित अपना कुछ प्रतिशत हिस्सा डालने में भी असमर्थ रही है। केन्द्र सरकार से पहले आये विकास फंडों का अपने ढंग-तरीकों से उपयोग करने के कारण आगे और फंडों से भी सरकार वंचित हो गई है। पंजाब में भू-जल की प्रत्येक पक्ष से गम्भीर होती समस्या से निपटने के लिए दो वर्ष में इसकी ओर से की गई कोई भी गम्भीर तैयारी सामने नहीं आई, क्रियान्वयन तो इसके बाद ही किये जाने होते हैं। न ही सरकार अपना कोई स्पष्ट दृष्टिकोण बना कर उस पर चलने को प्राथमिकता देती दिखाई दे रही है। उसकी लड़खड़ाती चाल ने समूचे रूप में ऐसे ही बिखराव को जन्म दिया है, जिसके चलते उचित लक्ष्य पर नहीं पहुंचा जा सकता। इसलिए आज प्रदेश भर में निराशा का आलम है, जो इसे और भी अवसान की ओर धकेल रहा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द