चुनावी बांड संबंधी उचित फैसला

केन्द्र में मोदी सरकार के सत्ता सम्भालने के बाद 2018 में उस समय के वित्त मंत्री, अरुण जेतली ने जो ‘चुनावी बैंक बांड योजना’ संबंधी कानून बनवाया था, उस पर उसी समय अंगुली उठना शुरू हो गई थी। चुनाव आयोग का भी लगातार यह यत्न रहा है कि देश में लोकतांत्रिक भावना को परिपक्व करने के लिए चुनावों को अधिक से अधिक पारदर्शी ढंग से पूर्ण किया जाये। इसके लिए समय-समय पर चुनाव करवाने की प्रणाली में अनेक तरह के सुधार भी लाये गये। ये भी यत्न किये गये कि इस प्रक्रिया में किसी तरह के सन्देह की ज्यादा सम्भावना न रह सके, परन्तु इसके बावजूद चुनावों के दौरान अनेक तरह के संशय भी प्रकट किये जाते रहे एवं इस प्रक्रिया पर अंगुलियां भी उठती रहीं।
चुनावों के दौरान अधिक से अधिक काले धन का उपयोग किये जाने के दृष्टिगत यह नियम भी बनाया गया कि उम्मीदवार चुनावी खर्चों संबंधी विवरण चुनाव आयोग को ज़रूर दे, परन्तु इसके बावजूद अब तक इसमें और बड़े सुधार न हो सके तथा इस व्यवस्था को पूरी तरह पारदर्शी न बनाया जा सका। केन्द्र सरकार की राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनाव फंड का प्रबन्ध करने वाली इस बैंक बांड योजना ने इस क्षेत्र में पारदर्शिता के स्थान पर जटिलताओं को और बढ़ा दिया। चुनावों के दौरान निश्चित समय में भारतीय स्टेट बैंक से कम्पनियों या अन्य समर्थ व्यक्तियों की ओर से ये बैंक बांड खरीदे जाते थे और उनकी ओर से अपनी इच्छा के अनुसार इन्हें चुनावी खर्चों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न पार्टियों को दे दिया जाता था। यह प्रबन्ध इस ढंग से किया गया था कि पैसे देने एवं लेने वालों के संबंध में कोई विस्तार लोगों के समक्ष न आये तथा इन्हें पूरी तरह गुप्त रखा जाये। विगत दिवस इस संबंध में भिन्न-भिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुये सर्वोच्च न्यायालय ने जहां इन चुनावी बांडों के प्रचलन पर ही पाबन्दी लगाने का बड़ा फैसला किया था, वहीं इस फैसले द्वारा विगत अवधि में भिन्न-भिन्न पार्टियों को दिये गये इन बांडों संबंधी भी स्टेट बैंक को विवरण सौंपने के लिए कहा था, परन्तु ऐसा करने से बैंकों ने लगातार आना-कानी की थी, जिसके संबंध में उच्च अदालत ने कड़ा रवैया धारण किया तथा इन समूचे बांडों के विवरण को चुनाव आयोग को सौंपने का पुन: निर्देश दिया। इससे इस बात की जानकारी मिल सकेगी कि प्रशासन चला रही पार्टियों या विपक्षी पार्टियों को कितनी राशि दी गई थी? सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश अनुसार अब स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग को यह विवरण दे दिया है। आगे अब चुनाव आयोग को यह विस्तार 15 मार्च तक अपनी वैब साइट पर डालना होगा। इन बांडों का अधिकतर लाभ सत्तारूढ़ पार्टी को इसलिए हो सकता है, क्योंकि दान देने वालों की ओर से यह आशा की जाती है कि वे ज़रूरत पड़ने पर सरकार की भिन्न-भिन्न योजनाओं के तहत प्रोजैक्ट या ठेके हासिल करके लाभ उठा सकते हैं। 
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाये गये इस फैसले की व्यापक स्तर पर प्रशंसा हुई है। भारतीय लोकतंत्र की मज़बूती के लिए अभी इस दिशा में और भी बहुत काम किये जाने एवं कदम उठाये जाने की ज़रूरत है। आज हर तरह की चुनाव प्रक्रिया इस सीमा तक महंगी हो गई है कि इसमें आम आदमी का भाग लेना बेहद कठिन हो गया है। वही पार्टी या व्यक्ति क्रियात्मक रूप में चुनाव मैदान में उतर सकता है जो बड़ा पूंजीपति हो या जो आर्थिक पक्ष से स्रोत एकत्रित करने की कोई सबील बना सकता हो। भारत में किसी न किसी स्तर पर लगातार चुनावी सिलसिला चलता रहता है। इस प्रक्रिया के जारी रहने के लिए इसे अधिक से अधिक सरल एवं सस्ता बनाये जाने की ज़रूरत है, तभी देश में सही अर्थों में लोकतंत्र की स्थापना की जा सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द