क्या पंजाब के गम्भीर मामलों पर विचार करने के लिए विधानसभा समुचित मंच है ?

इस बार एक मार्च से 12 मार्च तक पंजाब विधानसभा का बजट सत्र आयोजित हुआ है। इस बजट सत्र के दौरान जिस तरह का विपक्षी पार्टियों तथा सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेताओं के बीच टकराव देखने को मिला तथा दोनों पक्षों ने और विशेषकर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जिस प्रकार की भाषा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा, सुखपाल सिंह खैहरा तथा अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग संबंधी इस्तेमाल की, उसने पंजाब के संजीदा लोगों के मन को गहरी ठेस पहुंचाई है। वैसे भी यह बजट सत्र पंजाब के ज्वलंत मामलों के संबंध में गम्भीर विचार-विमर्श करने तथा लोगों के सामने कोई ठोस समाधान रखने में बुरी तरह विफल रहा। और तो और, इस बजट सत्र की शुरुआत भी ठीक ढंग से नहीं हो सकी।
विपक्ष ने पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को अपना भाषण भी पढ़ने नहीं दिया। आम परम्परा यह है कि विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल के भाषण से होती है। वैसे चाहे राज्यपाल द्वारा पढ़ा जाने वाला भाषण मौजूदा सरकार द्वारा ही तैयार किया गया होता है, परन्तु फिर भी इस भाषण से सरकार ने पिछले समय में क्या उपलब्धियां प्राप्त की हैं, और भविष्य में सरकार राज्य के लोगों के विकास के लिए क्या-क्या कदम उठाने वाली है, इसकी एक झलक अवश्य मिल जाती है। राज्यपाल के भाषण के बाद विधानसभा में विपक्षी पार्टियों के नेताओं द्वारा तथा सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की ओर से राज्यपाल के भाषण को आधार बना कर विचार-विमर्श भी किया जाता है और राज्यपाल के धन्यवाद के लिए औपचारिक तौर पर प्रस्ताव भी पारित किया जाता है, परन्तु इस बार जब एक फरवरी को राज्यपाल ने विधानसभा में अपना भाषण पढ़ने का यत्न किया तो विपक्ष विशेष तौर पर कांग्रेसी विधायकों ने काफी शोर-शराबा किया। इस पर राज्यपाल द्वारा विपक्ष के नेताओं को यह कहा गया कि वे उन्हें भाषण पढ़ने दें, यदि वे अपनी कोई बात रखना चाहते हैं तो वे बाद में रख सकते हैं। उन्हें आगामी दिनों में भी बोलने का अवसर मिल सकता है, परन्तु विपक्ष पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप राज्यपाल ने कुछ मिनटों में ही अपना भाषण समेट दिया और यह कह कर विधानसभा से बाहर चले गए कि उनके शेष भाषण को पढ़ा हुआ समझा जाए। 
इससे अगले दिनों में मुख्यमंत्री भगवंत मान तथा विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा, सुखपाल सिंह खैहरा तथा अन्य कांग्रेस विधायकों के बीच तीव्र विवाद हुआ। एक-दूसरे को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कोई भी मर्यादा नहीं रहने दी। विशेषकर मुख्यमंत्री की ओर से विधानसभा में दो ताले लेकर जाना, और उनमें से एक ताला स्पीकर को यह कह कर देना कि इससे विधानसभा को भीतर से बंद कर दें, ताकि विपक्ष के नेता बाहर न जा सकें, यह बेहद आपत्तिजनक व हास्यस्पद बात थी। इसके अतिरिक्त भी मुख्यमंत्री विपक्षी पार्टी के नेताओं को बेहद घटिया किस्म की शब्दावली से सीधा सम्बोधित करते रहे। यह बहस इतने निम्न स्तर पर चली गई कि शायद गांवों की चौपालों में आम लोग भी एक-दूसरे के लिए इस प्रकार के शब्द इस्तेमाल नहीं करते होंगे। दुख की बात यह भी है कि पंजाब विधानसभा के स्पीकर कुलतार सिंह संधवां जिन पर माहौल को सुखद रख कर सदन चलाने की ज़िम्मेदारी होती है, वह भी मुख्यमंत्री को स्पष्ट रूप में यह नहीं कह सके कि वह विपक्षी नेताओं के प्रति इस प्रकार की घटिया शब्दावली इस्तेमान न करें। टेढ़े-मेढ़े ढंग से वह मुख्यमंत्री का समर्थन करते ही दिखाई दिये। 
चाहे इस बार विधानसभा का सत्र एक मार्च से 15 मार्च तक पिछले सत्रों के मुकाबले थोड़ा लम्बे समय के लिए रखा गया था, और यह आशा की जाती थी कि इस लम्बे सत्र के दौरान विधानसभा में पंजाब के अनेक ज्वलंत मामलों बारे खुला विचार-विमर्श होगा तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर सत्तारूढ़ और विपक्ष के बीच कुछ सहमति बनेगी, परन्तु ऐसा कुछ नहीं हो सका। मुकाबलतन इस लम्बे सत्र का अधिकतर समय आपसी टकराव या छुट्टियों में निकल गया। कामकाजी दिन बेहद कम ही रहे। विधानसभा के सत्रों के दौरान कुल 7 ही बैठकें हुईं। पिछले समय में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान 40 से 45 तक भी बैठकें होती रही हैं, परन्तु धीरे-धीरे इन बैठकों का सिलसिला कम होता गया और अब हालत यह हो गई है कि चाहे एक मार्च से 15 मार्च तक बजट सत्र चलाने की घोषणा की गई थी, परन्तु इसे तीन दिन पहले 12 मार्च को ही समेट दिया गया। इस पर विपक्ष द्वारा कोई अधिक आपत्ति भी नहीं की गई। पहले समय में राज्यपाल के भाषण पर कई-कई बैठकों में चर्चा होती थी। यहां तक कि आतंकवाद के दौर में भी राज्यपाल के भाषण पर चर्चा करने के लिए अनेक  बैठकें होती रही हैं। इस बार एक बैठक में ही राज्यपाल के भाषण पर चर्चा पूरी करवा ली गई। इसी प्रकार राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा द्वारा जो 2 लाख करोड़ से अधिक का बजट पेश किया गया था, उस पर भी सिर्फ एक बैठक में ही बहस करवाई गई। विपक्षी पार्टियों के कई नेताओं को बजट पर बोलने के लिए विधानसभा के स्पीकर कुलतार सिंह संधवां ने दो-दो तीन-तीन मिनट ही दिये। दो लाख करोड़ का बजट हो और राज्य के लोगों के अनेक मामले दरपेश हों और स्पीकर उन्हें यह कहे कि विधानसभा में आपके विधायकों की संख्या कम है, इस कारण आप दो-दो, तीन-तीन मिनट में ही अपनी बात रख सकते हो, राज्य के लोगों के चुने हुए विधायकों का इससे अधिक तिरस्कार और क्या हो सकता है? कोई विधायक दो-तीन मिनट में अपनी बात कैसे कह सकता है? किसी पार्टी के सदन में कितने विधायक हैं, चाहे बोलने के लिए समय देते वक्त इस चीज़ का भी ध्यान रखा जाता है, पन्तु यदि अहम मामले हों और अहम मामलों पर विधायक बोलने के लिए दिलचस्पी भी दिखा रहे हों तो ऐसे नियमों को नर्म भी किया जा सकता है। यदि राज्यपाल के भाषण पर चर्चा करवाने के लिए दो-तीन बैठकें की जातीं, इसी प्रकार बजट पर होने वाली चर्चा के लिए भी 2-3 बैठकें करवाई जातीं तो विधानसभा में पंजाब के सरकारी तथा गैर-सरकारी पक्ष के विधायकों को लोगों के अधिक मुद्दे उठाने की अवसर मिल सकता था। सरकार की उपलब्धियों पर भी खुल कर चर्चा हो सकती थी। विशेषकर शम्भू तथा खनौरी की सीमाओं पर जिस प्रकार हरियाणा की पुलिस तथा अर्ध-सुरक्षा बलों ने किसान आन्दोलनकारियों पर आंसू गैस के गोले दागे, ड्रोनों से निशानदेही करके किसानों पर गोलियां चलाई गईं। खनौरी सीमा पर पंजाब के क्षेत्र में दाखिल होकर किसानों के वाहन तोड़े गये, प्रीतपाल सिंह तथा कई अन्य युवकों को पुलिस उठा कर ले गई और उनकी निर्मम मारपीट की गई। जिस प्रकार एक किसान शुभकरण सिंह की गोली लगने से मौत हुई और इस पूरे घटनाक्रम के दौरान जिस प्रकार पंजाब सरकार भी तथा पंजाब पुलिस भी तमाशबीन बनी रही। पुलिस पंजाब के किसानों को पंजाब के क्षेत्र में भी सुरक्षा उपलब्ध न करवा सकी। इस संबंधी विस्तार से चर्चा की ज़रूरत थी तथा केन्द्र और हरियाणा सरकार को सख्त संदेश देने की भी ज़रूरत थी। परन्तु सरकार ने और सदन के स्पीकर ने सुचेत यत्न करके ऐसी चर्चा न होने दी। शुभकरण सिंह की मौत होने संबंधी एफ.आई.आर. दर्ज करवाने के लिए भी किसानों को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा। यदि विधानसभा में ज्वलंत मुद्दे विधायकों को सदन में रखने दिए जाते और 92 विधायकों वाली सरकार पूरे विश्वास के साथ इस संबंधी अपना पक्ष रखती तो विधानसभा का सैशन तीन दिन पहले उठाने की भी कोई ज़रूरत नहीं रहनी थी और लोगों ने भी सरकार और विपक्ष दोनों की प्रशंसा करनी थी।
लेकिन जब राजनीतिक पार्टियां सत्ता से बाहर होती हैं, या विपक्ष में होती हैं, तो राज्य के ज्वलंत मामलों और लोकतांत्रिक नैतिक मूल्यों संबंधी उनकी पहुंच और सोच और होती है लेकिन जब वे सत्तापक्ष हो जाती हैं तो उनका यत्न यह होता है कि विधानसभा में विपक्ष के नेता विस्तार में अपनी बात न कह सकें, उन्हें लोगों के ज्वलंत मुद्दे उठाने या सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अवसर ही न दिया जाए। सरकारों की इस पहुंच ने विधानसभा को पंजाब के मामलों पर विचार के लिए एक समुचित मंच नहीं रहने दिया। पंजाब विधानसभा के बारे लोगों की यह आम धारणा बन गई है कि इसके सैशन सिर्फ रस्म पूरी करने के लिए ही होते हैं, इन सैशनों को सत्ताधारी पार्टियां गम्भीरता के साथ नहीं लेतीं। इसके सैशन बेहद छोटे होते हैं और अधिकतर समय शोर शराबे में ही गुज़र जाता है। अहम विधेयक भी बिना सार्थक चर्चा के पास करवा लिए जाते हैं। विपक्ष के नेताओं को लोगों की बात रखने के लिए अधिक समय नहीं दिया जाता। सरकारें अपनी कमियों, कमज़ोरियों, भ्रष्टाचार और स्वार्थी हितों से प्रेरित होकर किए गये फैसलों को छुपाए रखने के लिए विधानमभा के हर सैशन को जल्द से जल्द समेटने का यत्न करती हैं। पंजाब की तत्कालीन सरकारों के इस नज़रिये के कारण राज्य में लोकतंत्र बहुत कमजोर हुआ है। सरकारें और यहां तक कि अफसरशाही को जवाबदेय बनाने में भी विधानसभा बुरी तरह असफल हुई है। इसके साथ राज्य में अफसरशाही की लूट-खसूट और भ्रष्टाचार भी बढ़ा है। इसी कारण राज्य की पुलिस लोगों की सुरक्षा करने, लोगों को अच्छी पुलिस सेवाएं देने के लिए कोई विशेष चिंता करते नज़र नहीं आती, बल्कि वह सत्ताधारियों के आस-पास ही अधिक घूमती रहती है। इस समय राज्य में बड़े स्तर पर नशीले पदार्थों की तस्करी हो रही है। गैंगस्टरों की समस्या बहुत गम्भीर हो चुकी है। अमन-कानून की हालत इतनी बुरी है कि लोग घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं। एक तरफ राज्य सरकार देश-विदेश के व्यापारियों और उद्योगपतियों को राज्य में पूंजी निवेश करने के लिए प्रेरित करने की कोशिश करती है, लेकिन दूसरी तरफ गैंगस्टरों और अपराधियों द्वारा व्यापारियों और उद्योगतियों से फिरौती मांगे जाने के कारण और उन पर गोलियां चलाए जाने के कारण, यहां पहले से स्थापित उद्योग या बने हुए व्यापारिक संस्थान भी दूसरे राज्यों को पलायन करते जा रहे हैं। ये घटनाएं भी दर्शाती हैं कि पंजाब पुलिस न तो राज्य के अंदर आम लोगों को सुरक्षा उपलब्ध करने के समर्थ है, और न ही दूसरे राज्य द्वारा राज्य के लोगों पर किसी भी तरह के होने वाले हमलों को रोकने के समर्थ है। ये सभी मामले विधानसभा का विशेष ध्यान मांगते थे।
पंजाब विधानसभा का यह बजट सैशन जिस तरह सत्ताधारी पार्टी द्वारा चलाया गया, और जिस प्रकार का व्यवहार उसके द्वारा विपक्ष के साथ किया गया, वह बेहद चिंताजनक है। समूचे तौर पर विधानसभा के भीतर के सभी घटनाक्रम और इसमें सत्ताधारी पक्ष और विपक्ष दोनों द्वारा जो रोल निभाया गया है, उस बारे दोनों पक्षों को चिंतन-मंथन करके आने वाले समय में विधानसभा को सार्थक ढंग के साथ चलाने के लिए यत्नशील होना चाहिए। चाहे सैशन के अंतिम दिन मुख्यमंत्री ने थोड़ा पश्चाताप करते हुए यह कहा कि हमें यहां स्थाई दुश्मनी नहीं डालनी चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री का पिछले दो वर्ष का व्यवहार तो विपक्षी नेताओं और आलोचनात्मक मीडिया के साथ दुश्मनी डालने वाला ही रहा है। आने वाला समय ही बताएगा कि मुख्यमंत्री अपने आप को कितना बदलते हैं।