जेल से ही सरकार चलाने की ज़िद पर अड़े केजरीवाल

जब कोई जीव मकड़ी के जाल में फंस जाता है तो वह अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल करके उसमें से निकल जाना चाहता है। जाल से बाहर निकलने के चक्कर में वह और भी ज्यादा मजबूती से उसमें फंसता चला जाता है। कुछ यही हाल केजरीवाल का हो रहा है। वह ईडी और सीबीआई के जाल से बाहर निकलने के चक्कर में और भी बुरी तरह से फंसते जा रहे हैं। न केवल कानूनी शिकंजे की जकड़ मज़बूत हो रही है बल्कि उनकी राजनीतिक पकड़ भी ढीली पड़ रही है। केजरीवाल अच्छी तरह से जानते थे कि वह अब बचने वाले नहीं हैं क्योंकि मामले से सम्बन्धित मंत्री, अफसर और व्यापारी ईडी के शिकंजे में पहले ही फंस चुके हैं। इनमें से कई सरकारी गवाह बन चुके हैं। ईडी उनको नौ बार समन दे चुकी थी लेकिन वह जा नहीं रहे थे क्योंकि उन्हें पता था कि ईडी उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। कई बहाने बनाकर वह ईडी के सामने जाने से बचते रहे और इसके साथ ही वह बार-बार ईडी के समन को गैर-कानूनी घोषित कर देते थे। वह हर समन के बाद ईडी से सवाल पूछते थे कि उन्हें किस हैसियत से बुलाया जा रहा है ।  20 मार्च को केजरीवाल के वकील दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गए कि केजरीवाल को गिरफ्तारी से छूट मिल जाये तो वह ईडी के सामने पेश हो सकते हैं लेकिन हाईकोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया। 21 मार्च को इस मामले पर फिर सुनवाई हुई लेकिन अदालत से फिर उन्हें निराशा मिली। 21 मार्च को ही शाम को ईडी केजरीवाल के घर पहुंच गई और पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वास्तव में हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने केजरीवाल के खिलाफ सबूतों को देख लिया था और ईडी को कहा था कि अभी तक इन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है । 
 जैसे हेमंत सोरेन को 9 समन देने के बाद ईडी उनके घर पहुंच गई थी, वैसे ही केजरीवाल के साथ हुआ है। दोनों मामलों में एक अंतर यह है कि हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से पहले मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाने की जिद पर अड़ गये हैं। वास्तव में केजरीवाल कानूनी और राजनीतिक दोनों लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन दोनों जगहों पर वह फंसते जा रहे हैं।  
देखा जाये तो वह राजनीतिक रूप से बड़ी मात खा गए हैं। न तो उन्हें जनता की सहानुभूति मिली और न ही मोदी सरकार में उनकी गिरफ्तारी को लेकर कोई डर है। अगर वह पहले ही समन पर पूछताछ के लिए पहुंच जाते तो ईडी के लिए उनको गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल हो जाता। जनता में भी संदेश चला जाता कि केजरीवाल ने कुछ नहीं किया है, इसलिए पहले ही बुलावे पर पहुंच गये । अगर ईडी उन्हें पहली पूछताछ के बाद ही गिरफ्तार कर लेती तो जनता में सहानुभूति पैदा हो सकती थी। नौ बार समन मिलने के बावजूद ईडी के सामने न जाने से जनता में जांच से दूर भागने का संदेश गया। जो केजरीवाल कहते थे कि मैं किसी से नहीं डरता, जनता ने उनमें ईडी का डर देखा। वो बार-बार अदालत से उनको गिरफ्तार न करने का आदेश मांग रहे थे।  उनकी इस हरकत ने उनकी आम आदमी की छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया है क्योंकि इतने समन के बाद उनके खिलाफ कार्यवाही हुई है। ऐसा लगता है कि जैसे जनता ही इंतज़ार कर रही थी कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाये। दूसरी तरफ उन्होंने समन की अनदेखी करके अदालत की नज़र में भी खुद को अपराधी घोषित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि अगर ईडी बुलाती है तो उसके सामने जाना ज़रूरी है। स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि केजरीवाल कानून से बचने की कोशिश कर रहे थे। वहजांच से भाग रहे थे । 
 देश के इतिहास में पहली बार है कि एक मुख्यमंत्री जेल में बंद है । इससे पहले जयललिता, येदियुरप्पा, लालू यादव और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गिरफ्तार हुए हैं, लेकिन सभी ने गिरफ्तारी से पहले अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसलिए जब वह जेल गये तो वह मुख्यमंत्री नहीं थे। केजरीवाल जिद पर अड़ गये हैं कि वो मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा नहीं देंगे और जेल से ही सरकार चलाएंगे। उनके नेताओं का कहना है कि संविधान में कहीं कोई प्रावधान नहीं है कि जेल जाने पर इस्तीफा दिया जाये। उनकी यह बात सही है, शायद हमारे संविधान निर्माताओं को यह एहसास नहीं था कि कोई ऐसा भी नेता आ सकता है, जो जेल जाने पर भी पद पर बना रहे  लेकिन संविधान यह भी कहता है कि सरकार सुचारू रूप से चलनी चाहिए। जेल मैनुअल इसकी इजाज़त नहीं देता कि जेल से सरकार चलाई जा सके। न तो जेल में कैबिनेट की बैठक हो सकती है और न ही दूसरों के साथ कोई सलाह मशवरा हो सकता है । ईडी की हिरासत में तो जेल जैसी भी सुविधा नहीं है लेकिन केजरीवाल ने पांच दिन में ही दो आदेश जारी कर दिए हैं । अगर जेल से सरकार चलाने की ज़िद केजरीवाल नहीं छोड़ते हैं तो दिल्ली के उप-राज्यपाल सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश कर सकते हैं। शायद केजरीवाल भी चाहते हैं कि किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की जगह सरकार को ही बर्खास्त करवा दिया जाये। उन्हें लगता है कि जनता की सहानुभूति इससे मिल सकती है और यह संदेश जायेगा कि उनकी सरकार गिराने के लिए ही उन्हें जेल भेजा गया है। जेल से सरकार चलाने की ज़िद से संदेश जा रहा है कि केजरीवाल मुख्यमंत्री को मिलने वाली सुविधाएं नहीं छोड़ना चाहते। (युवराज)