दिल्ली की रैली का संदेश

नई दिल्ली में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की रैली कई पक्षों से इसलिए भावपूर्ण मानी जा सकती है कि इसमें अलग-अलग विपक्षी दलों के नेताओं ने अपने भाषणों में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना निशाना बनाते हुए देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और लोकसभा चुनावों के समय विपक्षी दलों को परेशान करने के लिए उनकी सख्त आलोचना की। जैसे-जैसे चुनाव निकट आ रहे हैं, वैसे-वैसे इस पक्ष से सक्रियता बढ़ रही है। सभी संबंधित पार्टियां अपनी-अपनी नीति बना रही हैं। ऐसे समय में दर्जन भर विपक्षी दलों के नेताओं के एक मंच से बोलने से चाहे यह प्रभाव तो मिलता है कि चुनावों के दौरान ये पार्टियां भाजपा विरुद्ध एकजुट होने की ज़रूरत को लेकर चिंतित नज़र आ रही हैं, लेकिन वास्तविक रूप में इस संबंधी उनको वह कामयाबी हासिल नहीं हुई, जिसकी इस गठबंधन के बनते ही उम्मीद की जाने लगी थी।
इसके अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन मुख्य कारण आपस में सीटों के विभाजन को लेकर पैदा हुई तकरार को ही माना जा सकता है। आपस में सीटों के लेन-देन में एक-दूसरे के प्रति उदारता की कमी होने के कारण ये अपने निशाने में सफल नहीं हुईं। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की अन्य पार्टियों में अनुपाततया एक समरसता में नज़र आती है। इसका बड़ा कारण विगत समय में भाजपा के हुए उभार को माना जा सकता है। आज देश भर में नरेन्द्र मोदी के नाम की चर्चा है क्योंकि उनके मुकाबले में किसी भी अन्य पार्टी के नेता का नाम उभर कर सामने नहीं आया। भाजपा शुरू से ही एक सिद्धांतक पार्टी रही है। देश में बड़ी और महत्वपूर्ण तबदीलियों के लिए उसने कभी अपनी बात छुपा कर नहीं रखी। इसीलिए ही आज यह बात उभर कर सामने आई है कि यदि इस पार्टी या एन.डी.ए. गठबंधन को दोबारा बहुमत प्राप्त हो जाता है तो अगली सरकार द्वारा भारतीय संविधान में भी बड़ी तबदीलियां किए जाने की संभावना बन सकती है। इस बात को लेकर आज विपक्षी पार्टियों में बड़ी बेचैनी तथा चिन्ता पाई जा रही है। इसी भावना से दिल्ली की रैली में अधिकतर नेताओं ने आपसी एकता की बात पर ज़ोर दिया, जिसे समय की ज़रूरत भी कहा जा सकता है, परन्तु क्रियात्मक रूप में एकता में सफलता नहीं मिल सकी। उदाहरण के तौर पर पश्चिम बंगाल में तृण मूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने स्पष्ट रूप में ऐसे गठबंधन से इन्कार कर दिया है। केरल में भी मार्क्सी पार्टी अपने बल-बूते पर ही चुनाव लड़ने की इच्छुक है। पंजाब में कांग्रेस की इकाई पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री भगवंत मान की नीतियों तथा कार्रवाइयों के कारण बेहद नाराज़ चल रही है। उसने नेताओं ने स्पष्ट रूप में प्रदेश में आम आदमी पार्टी के साथ कोई भी समझौता करने से इन्कार कर दिया है। ऐसी स्थिति को देखते हुए भाजपा सरकार ने विरोधियों को निरुत्साहित करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए दबाव डालने वाली नीतियों पर भी चलना शुरू कर दिया है। 
आज बहुत-से विपक्षी नेताओं को केन्द्रीय एजेंसियां अपने निशाने पर ले रही हैं। देश में इन भिन्न-भिन्न एजेंसियों ने एक भय तथा सहम का माहौल पैदा कर दिया है। यहां तक कि चुनावों के दौरान आयकर विभाग ने देश की दूसरी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के बहुत-से खातों को सील कर दिया है। भाजपा ने चिरकाल से यह नीति भी अपनाई हुई है कि चुनिंदा विपक्षी नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर ले। चाहे कि पहले उन नेताओं पर केन्द्रीय एजेंसियां कई प्रकार के आरोप लगा रही थीं, परन्तु भाजपा में शामिल होने के बाद उन पर ऐसे आरोपों के अधीन कोई भी कार्रवाई नहीं की जाती। भ्रष्टाचार के आरोप लगने भी बंद हो जाते हैं। हम समझते हैं कि देश में लोकतांत्रिक परम्पराओं को कायम रखने के लिए किसी भी बड़ी तथा प्रभावशाली पार्टी द्वारा ऐसी नीतियों पर चलना देश में निर्मित लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरे की निशानी माना जा सकता है। भाजपा केन्द्र की सत्ता में बड़ी भागीदार पार्टी है। उसे अपनी धारण की गई ऐसी नीतियों को देश के व्यापक हितों के दृष्टिगत छोड़ देना चाहिए, ताकि यह निर्मित हुआ लोकतांत्रिक ढांचा मज़बूत बना रह सके। 
       —बरजिन्दर सिंह हमदर्द