दुश्मन की बर्बादी का ब्रह्मास्त्र है ब्रह्मोस

भारतीय सेना ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण कर अपनी लंबी दूरी की लक्ष्यीकरण क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा के लिए मजबूत ताकत के रूप में अपनी क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया। ब्रह्मोस मिसाइल के इस परीक्षण के सफल होते ही भारतीय सेना की पूर्वी कमान ने एक्स पर लिखा, ‘भारतीय सेना की प्रतिरोधक क्षमता की सटीकता और ताकत के एक लुभावने प्रदर्शन में राइजिंग सन मिसाइल विशेषज्ञों ने अपनी लंबी दूरी की लक्ष्यीकरण क्षमताओं का प्रदर्शन किया। ब्रह्मोस मिसाइल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के ऊपर उड़ गई और प्रभावी ढ़ंग से आकाश को प्रज्वलित कर दिया।’ भारत और रूस के संयुक्त उद्यम से बनी ब्रह्मोस के विस्तारित संस्करणों के सभी तीनों वेरिएंट का जमीन, हवा, जहाज और पनडुब्बियों से सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है और 30 मार्च को किए गए ब्रह्मोस मिसाइल प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने साबित कर दिया कि वह अपनी सम्प्रभुता की रक्षा करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के प्रति अपने समर्पण पर संकल्पबद्ध है। ब्रह्मोस मिसाइल भारतीय नौसेना के युद्धपोतों पर जहाज-रोधी और हमले के संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार के रूप में कार्य करती है। भारत और रूस के संयुक्त प्रयासों से बनाई गई शक्तिशाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों ‘ब्रह्मोस’ को भारत अब और ज्यादा शक्तिशाली बनाते हुए पूरी दुनिया को अपनी स्वदेशी ताकत का अहसास कराने का सफल प्रयास कर रहा है।
ब्रह्मोस अपनी श्रेणी में दुनिया की सबसे तेज परिचालन प्रणाली है और डीआरडीओ द्वारा इस मिसाइल प्रणाली की सीमा को अब मौजूदा 290 किलोमीटर से बढ़ाकर करीब 450 किलोमीटर किया जा चुका है। इससे पहले ब्रह्मोस मिसाइल के नौसेना संस्करण अरब सागर में सफल परीक्षण किया जा चुका है। परीक्षण के दौरान ब्रह्मोस ने 400 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद लक्ष्य पर अचूक प्रहार करने की अपनी क्षमता को बखूबी प्रदर्शित किया था। उसके बाद अंडमान निकोबार में सतह से सतह पर अचूक निशाना लगाने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ के ‘लैंड अटैक वर्जन’ का भी सफल परीक्षण किया गया था। परीक्षण के दौरान एक अन्य द्वीप पर मौजूद लक्ष्य को ब्रह्मोस द्वारा सफलतापूर्वक नष्ट किया गया था। उस परीक्षण की खास बात यह थी कि ब्रह्मोस मिसाइल के उस संस्करण की मारक क्षमता 290 से बढ़कर 400 किलोमीटर हो गई थी, जिसकी रफ्तार ध्वनि की गति से तीन गुना ज्यादा थी। भारत के लिए अब गर्व की बात यह है कि विस्तारित रेंज वाली ब्रह्मोस अब 450 किलोमीटर तक लक्ष्य को भेदने की विलक्षण क्षमता रखती है।
ब्रह्मोस अब न केवल भारत के तीनों सशस्त्र बलों के लिए एक बेहद शक्तिशाली हथियार बन गई है बल्कि गर्व का विषय यह भी है कि अभी तक जहां भारत अमरीका, फ्रांस, रूस इत्यादि दूसरे देशों से मिसाइलें व अन्य सैन्य साजोसामान खरीदता रहा है, वहीं भारत अपनी इस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को दूसरे देशों को निर्यात करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। ब्रह्मोस मिसाइल को पनडुब्बियों, विमानों और जमीन से अर्थात् तीनों ही स्थानों से सफलतापूर्वक लांच किया जा सकता है, जो भारतीय वायुसेना को समुद्र अथवा जमीन के किसी भी लक्ष्य पर हर मौसम में सटीक हमला करने के लिए सक्षम बनाती है। बेहद ताकतवर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें भारतीय वायुसेना के 40 से भी अधिक सुखोई लड़ाकू विमानों पर लगाई जा चुकी हैं, जिससे सुखोई लड़ाकू विमान पहले से कई गुना ज्यादा खतरनाक हो गए हैं। सुखोई विमान की दूर तक पहुंच के कारण इस विमान को ‘हिंद महासागर क्षेत्र का शासक’ कहा जाता है और ब्रह्मोस से लैस सुखोई अब दुश्मनों के लिए बेहद घातक हो गए हैं।
मिसाइलें प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती हैं, क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल। क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों में अंतर यही है कि क्रूज मिसाइल बहुत छोटी होती हैं, जिन पर ले जाने वाले बम का वजन भी ज्यादा नहीं होता और अपने छोटे आकार के कारण उन्हें छोड़े जाने से पहले बहुत आसानी से छिपाया जा सकता है जबकि बैलिस्टिक मिसाइलों का आकार काफी बड़ा होता है और वे काफी भारी वजन के बम ले जाने में सक्षम होती हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों को छिपाया नहीं जा सकता, इसलिए उन्हें छोड़े जाने से पहले दुश्मन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। क्रूज मिसाइल वे मिसाइलें होती हैं, जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरती हैं और रडार की आंख से भी आसानी से बच जाती हैं। बैलिस्टिक मिसाइल उर्ध्वाकार मार्ग से लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं जबकि क्रूज मिसाइल पृथ्वी के समानांतर अपना मार्ग चुनती हैं। छोड़े जाने के बाद बैलिस्टिक मिसाइल के लक्ष्य पर नियंत्रण नहीं रहता जबकि क्रूज मिसाइल का निशाना एकदम सटीक होता है। ब्रह्मोस मिसाइल मध्यम रेंज की रेमजेट सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बियों, युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और जमीन से दागा जा सकता है। यह दस मीटर की ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है और किसी भी मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा देने में भी सक्षम है, इसीलिए इसे मार गिराना लगभग असंभव माना जाता रहा है। इस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी तथा रूस की मस्कवा नदी को मिलाकर रखा गया है और इसका 12 जून 2001 को पहली बार सफल लांच किया गया था। यह मिसाइल दुनिया में किसी भी वायुसेना के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है।

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