घोषणा-पत्रों की तर्कसंगिकता

आगामी लोकसभा चुनावों के लिए देश की सबसे पुरानी तथा राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की ओर से जो चुनाव घोषणा-पत्र जारी किया गया है, उसे कुछ विशेष कारणों के दृष्टिगत दिलचस्पी से देखा जा रहा है। इस चुनाव घोषणा पत्र, जिसे न्याय पत्र कहा गया है, में लोगों के साथ कुछ विशेष वायदे किये गये हैं, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं—फसलों के लाभदायक मूल्य की किसानों को कानूनी गारंटी देना, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाना, देश में जाति जनगणना करवाना, सेना में भर्ती की विवादित अग्निवीर योजना को रद्द करना, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एक्ट 1991 में संशोधन करके दिल्ली सरकार को अधिक अधिकार देना, जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देना, केन्द्र सरकार में रिक्त 30 लाख पदों को भरना, वी.वी. पैट मशीनों की सभी पर्चियों का मिलान ई.वी.एम. की गिनती के साथ करवाना, मगनरेगा मज़दूरों की दिहाड़ी 400 रुपये करना, देश में लोकतांत्रिक संस्थानों को शक्तिशाली बना कर लोकतंत्र को मज़बूत करना आदि। 
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि लोग कांग्रेस के इस चुनावी घोषणा-पत्र पर कितना विश्वास करते हैं एवं इस पार्टी को चुनावों में कितना समर्थन देते हैं।  आम तौर पर लोगों में यह प्रभाव पाया जाता है जो  बड़ी सीमा तक ठीक भी होता है, कि पार्टियों की ओर से तैयार किये जाते चुनावी घोषणा-पत्रों में मतदाताओं को भरमाने के लिए इतने ज्यादा वायदे एवं दावे किये जाते हैं, जिन्हें क्रियात्मक रूप में पूरा किया जाना कठिन होता है। इसका एक बड़ा कारण यह होता है कि किये गये वायदों को पूरा करने के लिए देश या संबंधित प्रदेश के पास उतने वित्तीय स्रोत नहीं होते। इसके अतिरिक्त बनाई गई योजनाओं को क्रियात्मक रूप दे पाना इसलिए भी आसान नहीं होता, क्योंकि इन पर क्रियान्वयन के लिए बेहद चुस्त एवं दुरुस्त पहरेदारी की ज़रूरत होती है। इसके अतिरिक्त चुनाव मुकाबले में हर पार्टी दूसरी पार्टी से बड़ी छलांग मारने का यत्न करती है। कई बार वायदों की व्यवहारिकता नहीं देखी जाती। कांग्रेस पार्टी ने आज़ादी के बाद के समय में कम से कम छ: दशकों तक सत्ता सम्भाले रखी है। इतनी लम्बी अवधि में उसकी ओर से की गईं उपलब्धियों के सन्दर्भ में भी अब जारी किये गये  घोषणा-पत्र को देखा जाना स्वाभाविक है। ऐसा इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि पिछले 10 वर्ष से भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार देश में सत्तारूढ़ है। इस बात की भी सम्भावना प्रकट की जा रही है कि शायद आगामी पांच वर्ष के लिए भी इसे ही देश में शासन चलाने का अवसर और मिल जाये। कांग्रेस एवं देश की कुछ अन्य पार्टियों ने एकजुट  होकर ‘इंडिया’ गठबंधन बना कर चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने का यत्न किया था, जो ज्यादा सफल होता दिखाई नहीं देता। कांग्रेस के समक्ष यह भी चुनौती खड़ी है कि उसने पूर्व सरकारों की उपलब्धियों के दृष्टिगत कैसे आगे बढ़ना है? कैसे मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करना है? इसमें सन्देह नहीं कि मोदी के शासन के समय देश की आर्थिकता को बड़ा समर्थन मिला है। इसी आधार पर प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बार-बार यह दावा किया जा रहा है कि भारत विश्व की तीसरी बड़ी शक्ति बनने के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है, परन्तु इसके साथ ही यह सोचने की भी बड़ी ज़रूरत होगी कि इस बढ़ रही आर्थिकता का लाभ सभी देशवासियों को किस तरह मिल सकता है। यदि बड़ी एवं मज़बूत होती आर्थिकता में अमीरों एवं ़गरीबों में संतुलन न बनाया जा सका तो आर्थिक विकास का यह नमूना सफल नहीं माना जाएगा।
इसके साथ ही निचले स्तर पर मूलभूत सुविधाओं को हर हाल में मज़बूत किये जाने की भी ज़रूरत है। आजकल वोटों के लिए साम्प्रदायिक को भी उत्साहित किया जा रहा है। इसके मुकाबले जातिवाद को बराबर खड़ा करने का यत्न भी हो रहा है। यह सब कुछ देश में नकारात्मक रुझानों का परिचायक बनेगा तथा देश के समूचे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाला होगा। आज हर पार्टी का यह कर्त्तव्य बन जाता है कि वह अपनी विकास नीतियों में देश के समूचे नागरिकों को भागीदार बनाने का यत्न करे तथा उनके जीवन-स्तर को ऊंचा उठाने के लिए प्रतिबद्धता का प्रकटावा करे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द