एक वस्तु से दूसरी वस्तु तक एनर्जी कैसे ट्रांस्फर होती है ?

बच्चो! यह तो आपको मालूम ही है कि कार्य करने की क्षमता को एनर्जी या ऊर्जा कहते हैं। मैं आपको पहले ही पोटेंशियल एनर्जी (वह एनर्जी जो किसी वस्तु में स्टोर रहती है) और काइनेटिक एनर्जी (वह एनर्जी जिससे चीज़ें मूव करती हैं) का अंतर बता चुका हूं। एक टेबल टेनिस बॉल को गुब्बारे से शूट करने से पोटेंशियल व काइनेटिक एनर्जी को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। जब आप एक गुब्बारे को खींचते हैं, तो उसमें पोटेंशियल एनर्जी होती और जब आप गुब्बारे को रिलीज़ कर देते हैं, तो उसमें काइनेटिक एनर्जी होती है, जो गेंद में ट्रांसफर हो जाती है और गेंद कमरे में दूर तक जाती है।
अब मैं आपको एक अन्य प्रयोग से यह समझाता हूं कि एक वस्तु से दूसरी वस्तु तक एनर्जी कैसे ट्रांसफर होती है? इस प्रयोग के लिए आपको कुछ ज्यादा नहीं चाहिए, केवल एक पैमाना (रूलर) जिसके बीच में घाटी जैसा ग्रुव हो यानी वह दोनों साइड से उठा हुआ हो और बीच में से नीचे दबा हुआ हो। इसके अतिरिक्त आपको कुछ कंचों (मार्बल्स) की ज़रूरत पड़ेगी। 
अब आपको करना यह है कि तीन कंचे पैमाने के बीच में रख दें और एक कंचा पैमाने के सिरे पर रखना है। अगर आप सिरे वाले कंचे को कैरम के स्ट्राइकर की तरह फ्लिप करेंगे तो क्या होगा? सभी बच्चों ने एक साथ जवाब दिया, ‘वह पैमाने के बीच में रखे कंचों से टकरायेगा और कंचे रोल करते हुए आगे बढ़ जायेंगे।’
नहीं। आश्चर्य! केवल एक ही कंचा रोल करता हुआ आगे जायेगा। अब आप इस प्रयोग को अलग-अलग संख्या से दोहरायें। मसलन, दो कंचों को तीन कंचों के समूह पर शूट कीजिये। आप देखेंगे कि जल्द ही एक पैटर्न सामने आयेगा- आप जितने कंचों को फ्लिप करेंगे उतने ही कंचे रोल करेंगे। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह हुआ कि रोलिंग कंचे अपनी एनर्जी को उसी कंचे में ट्रांसफर करते हैं जिससे वह टकराते हैं और वह कंचा अगले कंचे को एनर्जी ट्रांसफर करता है और यह सिलसिला चलता रहता है।
इस प्रयोग में आपको अच्छे रिजल्ट्स तब ही मिल सकते हैं जब आप यह सुनिश्चित कर लें कि आप जिस सरफेस (सतह) पर कार्य कर रहे हैं वह लेवल में हो यानी समतल हो। अगर आप ऐसी मेज़ पर कार्य कर रहे हैं, जिसमें हल्का सा झुकाव है यानी वह लेवल में नहीं है तो कंचे अपने आप ही रोल करके आगे बढ़ जायेंगे।
साथ ही बच्चो, आप इस बात का भी ध्यान रखें कि आपको अच्छी, सॉलिड फ्लिक कंचों को देनी है। फ्लिप इतनी ज़ोर से भी न हो कि कंचे कमरे में ही इधर उधर बिखर जायें। फ्लिक इतनी धीमे भी न हो कि कंचा दूसरे कंचों तक ही न पहुंच सके। कहने का अर्थ यह है कि वाइल्ड या कमज़ोर फ्लिप से आप इच्छित नतीजे प्राप्त नहीं कर सकेंगे।  

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर