स्कूली बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने की ज़रूरत

आए दिन स्कूल बसों में मासूम छात्र जान गंवा रहे हैं। हर दुर्घटना के बाद स्कूली परिवहन में हो रही हद दर्जे की लापरवाही सामने आती है। मामले दर्ज हो जाते हैं, फाइलें अदालतों में धूल फांकती रहती हैं, अपने परिवार के बच्चे को एक स्कूल प्रबंधन की धन कमाऊ नीति-रीति के कारण गंवा चुके अभिभावक कानून की लम्बी परक्रिया में थक हार जाते हैं और फिर एक नयी दुर्घटना घटित हो जाती है। यह सिलसिला जारी रहता है क्योंकि नियमों का पालन करना स्कूल प्रबंधन की फितरत नहीं है। हाल ही में 11 अप्रैल को हरियाणा के महेंद्रगढ़ स्थित कनीना में ड्राइवर की लापरवाही से एक निजी स्कूल की बस के पेड़ से टकराने के बाद हुई दुर्घटना में छह मासूम छात्रों की जान चली गई।
एक अन्य घटना 5 अप्रैल की है। अजमेर राजस्थान में एक 8 साल का स्कूली छात्र अपनी स्कूल बस से उतरकर सड़क पार कर रहा था। इसी दौरान वह उसी बस की चपेट में आ गया जिससे कुछ सैकेंड पहले ही उतरा था। वहीं 6 अप्रैल को हरियाणा के यमुनानगर ज़िले के प्रतापनगर में निजी स्कूल की एक बस ने इसी स्कूल में पढ़ने वाली 3 साल की मिस्टी को कुचल दिया। मासूम की मौके पर ही मौत हो गई। बताया गया कि इसमें स्कूली बस ड्राइवर की बड़ी लापरवाही रही। बस ड्राइवर ने छोटे बच्चों को नीचे उतार कर बैक गियर लगा दिया जिससे तीन बच्चे बस के नीचे आ गए। जिसमें से दो बच्चों को एक महिला ने खींच लिया जबकि एक छोटी बच्ची टायर के नीचे आ गई। मासूम का पांच दिन पहले ही दाखिला हुआ था। 
ये घटनाएं तो सिर्फ  बानगी हैं। यह बताती हैं कि स्कूलों के बस चालक कितना लापरवाह व्यवहार कर मासूमों की जान से आए दिन खिलवाड़ कर रहे हैं। हरियाणा के महेंद्रगढ़ की दुर्घटना को लेकर खुलासा हुआ है कि ग्रामीणों ने ड्राइवर को नशे में देख बस रोक कर चाबी छीन ली थी। इसके बाद स्कूल प्रबंधन से जब ग्रामीणों ने बात की तो उन्होंने कहा था कि आज चाबी दे दो, हम इस ड्राइवर को हटा देंगे। अगर स्कूल प्रबंधन ग्रामीणों की बात मान लेता तो छह मासूम बच्चों की जान बच जाती। मृतकों में दो मासूम एक ही परिवार के सगे भाई थे। दो मासूमों की मौत से उनके परिवार पर क्या गुजर रही होगी, महसूस करना कठिन नहीं है। इस तरह के हादसे हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोरते हैं। इसे एक दुर्घटना कहने की बजाय आपराधिक कृत्य कहना उचित होगा। जिसमें स्कूल प्रबंधन व चालक बराबर के ज़िम्मेदार हैं। एक खटारा बस को शराबी चालक द्वारा बेलगाम रफ्तार से दौड़ाना एक आपराधिक कृत्य ही कहा जाएगा। सवाल उठाये जा रहे हैं कि जब ईद पर राष्ट्रीय अवकाश था तो स्कूल क्यों खोला गया था? सार्वजनिक अवकाश के दिन स्कूल खोलने पर प्रबंधकों की जवाबदेही तय की जानी चहिए। 
ग्रामीणों के अनुसार कई साल पहले इस बस के फिटनेस प्रमाण-पत्र की अवधि खत्म हो चुकी थी। इसके बावजूद स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों के जीवन से खिलवाड़ करते हुए इसे सड़कों पर चलाया जा रहा था। स्कूल प्रबंधन मोटी फीस वसूलने में तो लगा रहता है लेकिन उसे ख्याल क्यों नहीं आया कि बस का फिटनेस प्रमाण-पत्र छह साल पहले खत्म हो चुका है। क्यों नहीं देखा कि ऐसे वाहन से बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है? सवाल उठना लाज़िमी है कि बस की हालत और चालक की आदतों को देखते हुए इन मासूमों के जीवन को खतरे में डालने की स्थिति क्यों पैदा होने दी गई? सवाल पुलिस प्रशासन पर भी है कि क्यों बेलगाम गति से चलने वाले वाहनों की निगरानी का कोई तंत्र काम नहीं कर रहा है? विडम्बना है कि हर हादसे के बाद शासन-प्रशासन सक्रियता दिखाता है और कुछ समय बाद सब ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
बेरोज़गारी का आलम यह है कि कम वेतन व असुरक्षित सेवाओं के बावजूद शिक्षक व अन्य कर्मचारी मिल जाते हैं। कमोबेश यही स्थिति चालकों की भी है। इतना वेतन भी नहीं होता कि प्रशिक्षित व अनुभवी चालक इन बसों में तैनात किये जा सकें, जिसका नतीजा महेंद्रगढ़ के कनीना में हुआ हादसा है। चालक पर आरोप है कि वह ड्यूटी के दौरान नशे में बस को दौड़ा रहा था। ऐसी लापरवाहियां ही दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। हमेशा की तरह शासन-प्रशासन ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाता है, परिवहन विभाग के किसी कनिष्ठ कर्मी को निलम्बित कर दिया जाता है। कुछ दिनों मामले के गर्म रहने तक नई सुरक्षा घोषणाएं कर दी जाती हैं। नेताओं की तरफ से संवेदनाएं व्यक्त की जाती रहेंगी। कुछ दिनों बाद फिर पहले जैसी स्थिति लौट आएगी। ऐसे हादसों को टालने के लिये अभिभावकों की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। उन्हें अभिभावक-शिक्षक बैठकों में बच्चों की सुरक्षा व बसों की आवागमन स्थिति को लेकर स्कूल प्रशासन पर निरन्तर दबाव बनाना चाहिए। प्रशासन को भी स्कूल बसों की फिटनेट व बस चालकों की शारीरिक व मानसिक स्थिति की जांच समय-समय पर करनी चाहिए। 
बसों की फिटनेस की निगरानी करने वाले विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। बसों में फर्स्ट एड बॉक्स व आपातकालीन सुरक्षा सेवाओं के नम्बर लिखे होने चाहिएं। अन्यथा हादसों का यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। मासूमों की जान से खिलवाड़ कब तक होता रहेगा? ज़रूरत इस बात की है कि स्कूल प्रबंधन की ज़िम्मेदारी तय कर सख्त कार्रवाई की जाए।  
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