जेलों में बढ़ती हिंसक घटनाएं

पंजाब की जेलों में कुछ ही दिनों के अन्तराल में हिंसा, हत्याओं एवं दंगा-फसाद की एक के बाद एक होती घटनाओं ने न केवल प्रदेश का हित-चिन्तन करने वाले लोगों को चिन्तित किया है, अपितु जेलों के भीतर की कानून-व्यवस्था की निरन्तर बिगड़ती जाती दुर्दशा ने पूरे प्रदेश को चौंकाया भी है। संगरूर की अति सुरक्षित जेल में कैदियों और बंदियों के दो गुटों में गत दिवस हुई लड़ाई ने तो जैसे जेलों के भीतर की अनुशासनहीनता की पोल खोल कर रख दी है। इस घटना में दो कैदियों की मृत्यु हो गई जबकि दो अन्य गम्भीर रूप से घायल हो गये। इससे कुछ ही दिन पूर्व गोइंदवाल साहिब की जेल में भी कैदियों के दो गुटों में हुई ज़बरदस्त मारपीट में दो कैदी मारे गये थे, जबकि दो अन्य घायल हो गये थे। पिछले मास गुरदासपुर जेल के दंगे ने तो सरकार और प्रशासन की चूलें तो हिलाई ही थीं, न्यायपालिका को भी इस मामले को लेकर एक अतीव कड़ी टिप्पणी करने पर विवश होना पड़ा था। पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने प्रदेश की जेलों के भीतर की अनुशासनहीनता और प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर भगवंत मान सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। इस घटना में लगभग आधा दर्जन जेल अधिकारी एवं कर्मचारी घायल हो गये थे। अदालत ने पंजाब सरकार को यहां तक परामर्श दिया है कि पंजाब को अपनी जेलों की दशा सुधारने के लिए हरियाणा सरकार से मदद लेनी चाहिए। प्रदेश सरकार के लिए इससे बड़ी लज्जाजनक बात और क्या हो सकती है, यह तो वही जाने।
पंजाब में सामूहिक रूप से कानून व्यवस्था की स्थिति का विश्लेषण करें, तो बेहद निराशा उपजती है। अपराधी जेलों के बाहर हों या भीतर, खुलेआम दनदनाते फिरते हैं। जेलों के भीतर की दुनिया बाहरी आपराधिक संसार से भी अधिक ़खतरनाक और भयावह हो गई प्रतीत होती है। जेलों के भीतर से अपहरण, फिरौतियां मांगने और धमकियां आदि जारी करने की घटनाएं आम हो गई हैं। गैंगस्टरों के गिरोह भीतर से अपना कारोबार संचालित करते हैं, और भीतरी प्रशासनिक तंत्र या तो जानबूझ कर अनदेखी करता है, अथवा उसकी मंशा सदैव अपराधी तत्वों से मिलीभुगत बनाये रखने की रहती है। एक प्रकार से जेलों के भीतर एक नई आपराधिक दुनिया बसती है। अदालत ने पंजाब सरकार से जेलों के भीतर से अब तक फिरौती एवं उगाही मांगे जाने की काल्स, और जेलों के भीतर से बरामद हुए मोबाइल फोन एवं अन्य प्रकार की आपराधिक घटनाओं की रिपोर्ट आगामी 30 अप्रैल तक मांगी है।
अदालत पंजाब सरकार के इस अवज्ञापूर्ण व्यवहार और उसकी ओर से बार-बार समय मांगे जाने से भी ़ख़फा नज़र आई कि उसके आदेशों-निर्देशों की अवहेलना की जा रही है। स्थितियों की गम्भीरता का पता इस तथ्य से भी चलता है कि स्वयं अदालत को सरकार से यह पूछना पड़ा कि जेलों से नशा, मोबाइल सैट, अवैध काल्स होने और उगाही एवं फिरौती मांगे जाने की घटनाओं में बार-बार के निर्देशों के बावजूद कमी क्यों नहीं हो रही? क्या जेलों के भीतर कोई समानान्तर रैकेट चल रहा है? अदालत द्वारा इसे सुरक्षा के धरातल पर एक बड़ी चूक करार देना भी मामले की गम्भीरता को बताने के लिए काफी है। किन्तु पंजाब सरकार की ओर से इतना कुछ हो जाने पर भी कोई ठोस जवाब न दे पाना प्रदेश के तमाम हित-चिन्तक लोगों को चौंकाने के लिए काफी है। बहुत स्वाभाविक है कि ऐसा करके प्रदेश सरकार प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपनी कमज़ोरियों एवं त्रुटियों को स्वीकार करती है। उच्च न्यायालय द्वारा पंजाब की जेलों के भीतर की तमामतर स्थितियों/परिस्थितियों को लेकर आगामी तिथि पर पूरी रिपोर्ट पेश करने के लिए कहना भी अदालत की मंशा को प्रकट करने के लिए काफी है।
हम समझते हैं कि पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय की इतनी बेबाक टिप्पणियां पंजाब की सरकार को सही रास्ते पर लाने के लिए काफी होनी चाहिएं, किन्तु पंजाब सरकार की अब तक की उपेक्षाओं के दृष्टिगत उससे होने वाली अपेक्षाएं और बढ़ती जाती हैं। नतीजतन ऐसा कोई एहसास नहीं होता कि निकट भविष्य में पंजाब में आपराधिक धरातल पर अथवा जेलों के भीतर की दुरावस्था को लेकर सुधार की आस की कोई एक किरण दिखाई दे जाए। मुख्यमंत्री भगवंत मान स्वयं आजकल लोकसभा की चुनावी गतिविधियों को लेकर देश के दूरवर्ती राज्यों तक उड़न-खटोलों में बैठ कर सैर करने की मुहिम पर निकले हुए हैं। सरकार के आधे मंत्री, अधिकतर विधायक और उनके साथ सम्बद्ध अमला भी इसी मुहिम पर है। उनके पीछे पंजाब की पूरी सरकार और सरकार का पूरा प्रशासन राम के भरोसे पर चल रहा है। पंजाब के प्रशासन की क्या स्थिति है, इसका पता भी प्रदेश के उच्च न्यायालय की इसी मामले पर की गई अन्य टिप्पणियों से चल जाता है। अदालत द्वारा इस अवसर पर बार-बार जारी किये गये नोटिसों से भी यह पता चलता है कि प्रदेश सरकार और खुद मुख्यमंत्री के पास पंजाब अथवा पंजाब के लोगों की खबर-सार लेने का समय ही शेष नहीं बचता है। उनकी प्राथमिकताओं में लोकसभा चुनाव हेतु अपनी पार्टी  के प्रचार रथ को दौड़ाना प्रमुख है, और इसी हेतु वह चुनावी दौरों पर निकले रहते हैं। पंजाब के लोगों का भविष्य, पंजाब का प्रशासन और प्रदेश की पूरी कानून व्यवस्था भगवान के भरोसे पर अटकी है।