कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनते पित्रोदा के ज़ुबानी बम

अपनी पीक पर आ पहुंचे 18वीं लोकसभा चुनावों में, 82 वर्षीय सैम पित्रोदा अपने मुंह से निकली बातें के चलते कांग्रेस के लिए ज़ुबानी पेट्रोल बम बन चुके हैं। एक पखवाड़े के भीतर दूसरी बार अपनी एक टिप्पणी से उन्होंने कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। चुनावों के दौरान हर राजनीतिक पार्टी, दूसरी पार्टी की ऐसी किसी गलती का बगुले की तरह एक टांग में खड़े होकर इंतज़ार करती है, जो गलती  उसे पिछले पैरों पर जाने के लिए मजबूर कर दे। सैम पित्रोदा यूं तो पिछले कई दशकों में बार बार अपनी अटपटी हिंदी और बिना आगे-पीछे सोचे व्यक्त की गयी टिप्पणियों से कांग्रेस के लिए संकट खड़े करते रहे हैं, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने पिछले एक पखवाड़े के भीतर दूसरी बार ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि कांग्रेस से कोई जवाब देते नहीं बन रहा। शायद यही कारण है कि पित्रोदा द्वारा बार-बार की जा रही लड़खड़ाती ज़ुबान वाली इन टिप्पणियों से कुछ कांग्रेसी इतने खफा हैं कि इस वरिष्ठ नेता को जूते मारने तक की बातों पर उतर आये हैं । ऐसा होना भी स्वाभाविक भी है।
बेहद संवेदनशील हो चुकी इस चुनावी राजनीति में महज एक बोगस टिप्पणी, आपको अर्श से फर्श पर ला पटकती है। पिछले पखवाड़े जब सैम पित्रोदा ने कहा कि अमरीका में विरासत कर है, जिसकी वजह से अगर यहां कोई व्यक्ति 10 करोड़ डॉलर की सम्पत्ति छोड़कर मर जाता है, तो उसके मरने के बाद उसके बच्चों को सिर्फ 45 फीसदी ही सम्पत्ति मिलती है, बाकी 55 फीसदी सम्पत्ति सरकार ले लेती है। इस पर आगे उनका कहना था, ‘भारत में आप ऐसा नहीं कर सकते, अगर किसी की सम्पत्ति 10 अरब रुपये है तो और वह दुनिया में न रहे तो उसकी संतानों को ही वह 10 अरब रुपये मिलेंगे, जनता को कुछ नहीं मिलेगा। ..तो ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर बहस और चर्चा होनी चाहिए, मैं नहीं जानता कि इसका नतीजा क्या निकलेगा? लेकिन जब हम (शायद कांग्रेस) सम्पत्ति की बात करते हैं तो हम नीतियों और नई प्रोग्राम की बात भी करते हैं, जो कि जनता के हित में होती है, न कि किसी अन्य लोगों की।’
इसमें कोई दो राय नहीं कि सैम पित्रोदा के इनहेरिटेंस वाले बयान में एक इशारा ऐसी नीतियों की तरफ  तो है कि जनता के हित में ऐसी नीतियां होनी चाहिए, जैसी अमरीका में विरासत कर जैसी हैं, लेकिन सैम पित्रोदा ने अपनी जुबान से कोई ऐसी बात नहीं कही कि इसे कांग्रेस को सरकार बनाने पर लागू करना चाहिए आदि आदि। पित्रोदा का तो बस इतना कहना था कि हमें इस तरह की नई नीतियों के बारे में भी सोचना चाहिए। भाजपा ने न केवल पित्रोदा के बहाने कांग्रेस की मंशा पर सवाल खड़ा किये बल्कि सीधे आरोप लगाया कि वह लोगों की विरासत को बांटना चाहती है। यह अलग बात है कि न तो ऐसी कोई बात कांग्रेस के घोषणा में है, न ही भारत में किसी कांग्रेसी ने ऐसी कोई बात कही। बावजूद इसके कांग्रेस पिछले एक पखवाड़े से इस सब पर सफाई दे ही रही थी कि तभी भारत में संचार क्रांति करने वाले 82 वर्षीय सैम पित्रोदा ने एक बार फिर से अपने बेतुके बयान से देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
हालांकि इस बार हंगामा होते ही सैम पित्रोदा ने ओवरसीज कांग्रेस से अपना इस्तीफा दे दिया है और करीब-करीब हर बड़े कांग्रेसी न सिर्फ  पित्रोदा के विचार का खंडन ही नहीं किया है बल्कि उसकी जमकर लालन, मलानत भी की है। वैसे अपने जिस बयान के चलते वह दूसरी बार इन अठारहवीं लोकसभा चुनावों की सुर्खियों में उभरे हैं, वह बयान यह है कि उनके मुताबिक उत्तर भारत के लोग पश्चिमी लोगाें के जैसे, उत्तर पूर्व के लोग चीनियों जैसे, दक्षिण के लोग अफ्रीकियों जैसे और पश्चिम भारत के लोग अरबों जैसे दिखते हैं। वैसे इस तरह की तुलना के पीछे उनका मकसद भारतीय लोकतंत्र की महानता को दर्शना था कि इसे कमतर बताना था। पित्रोदा कहना चाह रहे थे कि इतने अलग-अलग होते हुए भी हम भारतीय कैसे मिलकर साथ साथ रहते हैं। लेकिन यह कहने के लिए उन्होंने जो बेतुकी तुलना का सहारा लिया, उससे विपक्ष को मौका मिल गया। वह कहना चाहते थे कि बोली, भाषा, रंग रूप और खानपान की भिन्नता के बावजूद भारतीय मजबूती के साथ मिलकर रहते हैं।
लेकिन उनकी मंशा भले इतनी साफगोई वाली रही हो, लेकिन यह माहौल इतना ज्वलनशील है कि एक बार धोखे से भी कोई बात ऐसी मुंह से निकल जाए जिसका दोहरा इस्तेमाल हो सकता हो, तो फिर इसका फायदा उठाने वाले इस बात के पूरी तरह से व्यक्त हो जाने का भी इंतजार नहीं करते। जबकि अगर गहराई से देखा जाए तो सैम पित्रोदा इस बयान में भारत की महानता, विविधता पर हमारी आस्था और लोकतंत्र की गहरी जड़ों को प्रदर्शित करती हैं, लेकिन लोग जब सोचें तब न। ऐसा नहीं है कि राजनेता सोच नहीं सकते। कोई भी राजनेता तो छोड़िये आम आदमी भी अगर सैम पित्रोदा के इस स्टेटमेंट को ध्यान से पूरा सुन लेगा और स्टेटमेंट पूरी होने के पहले प्रतिक्त्रिया व्यक्त करने के लिए उतावला नहीं होगा, तो वह भी कहेगा कि सैम पित्रोदा की मंशा भारत पर उंगुली उठाना या हमारे लोकतंत्र को कमज़ोर बताने का इरादा कतई नहीं लगता था। वह तो सिर्फ उस व्यवहारिक स्थिति का बयान कर रहे थे, जिसे अकसर लोगों को झेलना पड़ता है, खास तौर पर आज के युवाओं को लेकिन संवेदनशील राजनीति ने इसके लिए उन्हें मौका नहीं दिया, उनके इंटरव्यू के छपते ही हंगाम खड़ा हो गया और देखते ही देखते कांग्रेस पित्रोदा के बयान के कट्टर विरोध के कारण सकते में आ गई है।
यह अकारण नहीं है कि जयराम रमेश से लेकर कांग्रेस के सारे प्रवक्ता और छोटे-बड़े नेता भी पित्रोदा की आलोचना करने लगे। वैसे रुकना संभव भी नहीं था, प्रधानमंत्री मोदी जैसे राजनेता ऐसी बात को सुनते हुए क्या एक क्षण को भी देर लगा सकते थे? आज कांग्रेस को पित्रोदा ने बैकफुट पर ला खड़ा किया है, उसे लेकर लोगों में गुस्सा है। यह गुस्सा इसलिए भी आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में ज्यादा है, क्योंकि सैम पित्रोदा ने जो कुछ कहा, इसके बाद उन्हें यह कभी मौका नहीं मिलेगा कि वह लोगों को समझा सकें कि उनके इस बयान के पीछे उनकी सहज दृष्टि और भारत की सम्माननीय विविधता का आंकलन था।
बहरहाल सैम पित्रोदा भी इसलिए कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है क्याेंकि पिछले कुछ सालाें में बार-बार अपने ऊबड़-खाबड़ बयानों के जरिये कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी करते रहे हैं। चाहे पिछले पुलवामा अटैक में शहीद हुए सैनिकों को लेकर उनका बयान रहा हो या इस बार के ये दो बयान। भाजपा को इस बयान का फायदा उठाना ही था।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर