थोरियम घोटाले को सामने लाने की आवश्यकता 

‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ पर विशेष

11 मई को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भारत का परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी देशों की पांत में आने से ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ की शुरुआत हुई। अटल जी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इतने बड़े समर्थक या कहें कि पुजारी थे कि उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा ‘जय जवान’ के नारे के साथ जोड़ दिया। यह वही प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पोखरण में परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के दबाव के बावजूद वैज्ञानिकों के कंधे पर हाथ रखकर ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि दुनिया देखती रह गई और भारत को परमाणु देशों की पहली पंक्ति में आने का गौरव प्राप्त हुआ।
 जहां तक भारत की वैज्ञानिक क्षमता और प्रौद्योगिकी के विकास का संबंध है, हम दुनिया में किसी से कम नहीं हैं। हमने कृषि, ग्रामीण विकास, पर्यावरण, वन संरक्षण, उद्योगों को नवीनतम प्रौद्योगिकी से सम्पन्न करना, परमाणु शक्ति का जनजीवन बेहतर बनाने के लिए उपयोग, बीमारियों से लड़ने के लिए मैडीकल साइंस का विकास, देश को सशस्त्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान और न जाने कितनी उपलब्धियों को हासिल किया है। दुनिया में अपनी योग्यता और क्षमता का परचम लहराया है।  विज्ञान और प्रौद्योगिकी मेरा पसंदीदा विषय होने से और इस क्षेत्र में लेखन और फिल्म निर्माण करने से सोच का वैज्ञानिक होना स्वाभाविक है। ध्यान आया कि यह भी घोटालों से अछूता नहीं रह पाया। 242 लाख करोड़ का थोरियम घोटाला हो गया और किसी के माथे पर शिकन तक नहीं। सत्य यह है कि अगर यह न हुआ होता तो देश अब तक सुपरपॉवर बन चुका होता। जब डॉक्टर भाभा जैसे वैज्ञानिक की दुर्घटना में मृत्यु नहीं, हत्या हो सकती है तो वैज्ञानिकों की अवहेलना मामूली बात है। 
थोरियम घोटाला 
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार अपने कार्यकाल में घोटालों के नाम से जानी जाती थी। इन्हीं में एक था थोरियम घोटाला। उसे कैसे, किसने और क्यों बाहर नहीं आने दिया, यह जांच का विषय होना चाहिए था। इस तकनीकी विषय को सामान्य नागरिक समझ नहीं पाया और सब कुछ गहरे गर्त में दब गया। इंटरनेट को खंगालने और उस ज़माने के लोगों से बात करने पर बहुत-सी चौंकाने वाली जानकारियां इस घोटाले के बारे में मिल जायेंगी।  पहले बस इतना समझना काफी है कि थोरियम एक ऐसा खनिज भंडार है जो परमाणु संसार की ज़रूरतें पूरी करता है। हमारे सभी रिएक्टर, बिजली संयंत्र, अंतरिक्ष यान और बहुत-से दूसरे कामों में ऊर्जा यानी ईंधन का उपयोग होता है, जो थोरियम से आसानी से मिल जाता है। भारत दुनिया के एक तिहाई से भी अधिक स्रोत का मालिक है। नागरिकों के लाभ की बात करें तो प्रति वर्ष पांच सौ गीगावॉट बिजली अगले चार सौ वर्षों तक पैदा की जा सकती है। इससे संचालित होने वाले प्लांट से निरन्तर बिजली मिल सकती है, चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो। 
समुद्री तटों की बहुमूल्य रेत
थोरियम कहां मिलता है? दरअसल यह कहीं और नहीं, हमारे जो समुद्री तट हैं, बीच हैं, जहां हम सैर-सपाटे के लिए जाते रहते हैं, वहां जो रेत है, यह उसमें से निकलता है। हरेक जगह नहीं, तमिलनाडु और केरल में सबसे अधिक और उसके बाद आंध्र, कर्नाटक और ओड़िसा में मिलता है। दूसरे देशों में भी मिलता है लेकिन बहुत ही कम और वह भी चट्टानों में, जिनमें से निकालना बहुत खर्चीला और मेहनत का काम है। ब्राज़ील और भारत में सबसे अधिक मिलता है। इसका नियंत्रण भारत सरकार का संस्थान परमाणु ऊर्जा विभाग करता है। इसकी रखवाली और प्राप्त करने की व्यवस्था करता है। निजी कम्पनियों से करार होता है कि वे इस रेत को इस विभाग के पास जमा करायेंगी, वे न इसे बेच सकती हैं, न कहीं किसी और को दे सकती हैं और दूसरे देशों को तो किसी भी कीमत पर नहीं। 
अब शुरू होता है घोटाला। तमिलनाडु के शहर तिरुनेलवेली के एक व्यापारी और उससे जुड़े लोगों को यह ठेका दिया जाता है। इस कम्पनी ने एक कण जितना भी थोरियम मिला रेत विभाग में जमा नहीं कराया और बंदरगाहों, विशेषकर, तूतीकोरिन से विदेशों को तस्करी कर भेज दिया। इसके अतिरिक्त केरल से तस्करी करके 2002-2012 के बीच 2.1 मिलियन टन मोनटाइज़्र नामक खनिज गायब हो जाता है, जिसमें से थोरियम निकलता है। यह 2,35,000 टन थोरियम के बराबर है। परमाणु ऊर्जा विभाग ने आंखें बंद कर लेता और खरबों रुपये का भंडार तस्करी के ज़रिये चीन, जापान, कोरिया, फ्रांस पहुंच जाता है। तस्कर अरबपति और देश कंगाल, नागरिक उज्जवल भविष्य की आस लगाये बैठे रह जाते हैं। थोरियम विशुद्ध परमाणु ईंधन है, उसका सामयिक और सामरिक महत्व है, परमाणु ऊर्जा तैयार करने और भारत के मिसाइल सिस्टम को संचालित करने का अद्भुत स्रोत है। वैज्ञानिक उपलब्धियों का जनक और देश को दुनिया का सिरमौर बना सकता है। 
उल्लेखनीय है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जो देश को विज्ञान के आधार पर विकसित करना चाहते थे, जिन्होंने औद्योगिक प्रगति के लिए सीएसआईआर तथा अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं का गठन किया और जो भारत की खनिज सम्पदा के बारे में जानते थे, उन्होंने इस खनिज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। विडम्बना देखिए केंद्र की संप्रग (यूपीए) सरकार और कांग्रेस नेतृत्व ने इस खनिज के निर्यात से पाबंदी हटा देती है। सीएसआईआर के कहने पर भाभा परमाणु संस्थान के निदेशक इस तस्करी के बारे में पता करने व्यापारी के ठिकानों पर जाते हैं तो उन्हें अंदर घुसने तक नहीं दिया जाता, क्योंकि उसका वैश्विक नेटवर्क था। उस तक पहुंचना असंभव, राज्यों की सरकारों का वरदहस्त और केंद्र की संप्रग से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) तक की सरकारें अपने हाथ सेंकती रहती हैं। राजग की सरकार ने व्यापारी और उसके एक साथी तथा पर्यावरण मंत्रालय के एक भ्रष्ट अधिकारी पर मुकद्दमा चला सकी है। जिन लोगों को देशद्रोह के जुर्म में फांसी होनी चाहिए थी, उन्हें तीन वर्ष और सरकारी अफसर को पांच वर्ष की जेल होती है। यह अवधि भी पूरी हो चुकी होगी और अब वे फिर से अपने काले धंधे में आ ही गए होंगे। यह घोटाला रहस्य बना रहेगा या इस पर से कभी पर्दा हटेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता? राजनीति में चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं। भ्रष्टाचारी एक दूसरे की पीठ सहलाते हैं और राजनीतिज्ञ अभय दान देते हैं। दल-बदल मामूली बात है। निष्ठा हो तो ईमानदारी तेल लेने चली जाती है। वास्तविकता यह कि यदि यही थोरियम देश में होता तो न ऊर्जा की कमी होती, न औद्योगिक क्षेत्र में देश पिछड़ता, शिक्षा संस्थान आधुनिक होते, किसान और कारीगर, मतलब सभी का जीवन संवर जाता। राष्ट्रीय टेक्नोलॉजी दिवस के सरकारी आयोजनों के बीच इस घोटाले पर भी नज़र पड़ जाये तो देश कृतज्ञ होगा।