भारत तथा कनाडा के कटु होते संबंध

यह बात अफसोस से ही कही जा सकती है कि भारत तथा कनाडा के संबंध लगातार बिगड़ते ही जा रहे हैं। विगत लम्बी अवधि से बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग कनाडा जाकर रह रहे हैं। विगत एक दशक में भारत से लाखों और युवा पढ़ाई के वीज़ा पर या किसी अन्य ढंग-तरीके से रोज़ी-रोटी कमाने के लिए कनाडा प्रवास कर चुके हैं। यह सिलसिला अभी भी लगातार जारी है। जहां तक दोनों देशों के संबंधों की बात है, यह सौ वर्ष से भी अधिक समय से सुखद बने रहे हैं, चाहे कि इसके साथ स्वतंत्रता संग्राम के समय की कामागाटामारू जहाज़ की दुखद घटना भी जुड़ी हुई है। उपनिवेशवादी युग में अंग्रेज़ों ने अफ्रीका तथा एशिया के साथ-साथ दक्षिणी प्रशांत सागर में रहते आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा अमरीका के साथ लगते विशाल क्षेत्र वाले कनाडा पर भी अपनी प्रभुसत्ता कायम की हुई थी। अपनी निर्धारित नीति के तहत अक्सर अंग्रेज़ शासक अपनी बसाई हुई दूसरी बस्तियों में भारतीय लोगों को मज़दूरी तथा अन्य भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए भेजते रहते थे। इसीलिए ही आज भारतीय मूल के लोग अफ्रीका के बहुत-से देशों में भी रह रहे हैं। 
देश के स्वतंत्र होने के बाद कनाडा के साथ भारत के संबंध और भी गहरे होते गये। कनाडा के पास विशाल धरती है। वहां की जनसंख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है। इसलिए वह अपनी सरकारी नीति के तहत भी अन्य देशों के साथ-साथ भारतीय नागरिकों को भी अपने देश में आकर रहने के लिए उत्साहित करने हेतु खुली तथा आसान प्रवासी नीति धारण करता आया है। इसी ही समय में दोनों देशों का व्यापार भी व्यापक स्तर पर बढ़ा तथा दोनों के संबंध भी मज़बूत होते रहे हैं, परन्तु पिछले कुछ दशकों के दौरान पंजाब में रहे गड़बड़ वाले हालात के कारण किसी न किसी तरह भारी संख्या में केन्द्र से नाराज़ पंजाबी अपना भविष्य बनाने के लिए कनाडा में जाकर बसते रहे हैं। वहां वे भारतीय सरकारों के प्रति अपनी नाराज़गी व्यक्त करने के लिए लगातार यत्नशील रहे हैं। कनाडा में लिखने तथा बोलने की काफी सीमा तक आज़ादी है। इसका लाभ वह लगातार उठाते रहे हैं। वहां के कुछ एक प्रदेशों में पंजाबी भारी संख्या में जा बसे हैं। इनमें भारत से नाराज़ चल रहे अलगाववादी विचारों के कुछ लोग अक्सर अलग-अलग संगठन बना कर भारत के विरुद्ध तथा ़खालिस्तान के मुद्दे पर अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे हैं।
चाहे आज पंजाब में ़खालिस्तान का कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। इस विचारधारा के लोग जहां बहुत कम संख्या में हैं परन्तु विदेश में बैठे ऐसे संगठनों ने लगातार इस मुद्दे को उभार कर रखा है तथा वे धार्मिक दीवानों या धार्मिक समूहों के अतिरिक्त अलग-अलग स्थानों पर भारी संख्या में नगर कीर्तन में शामिल हो कर अपनी आवाज़ उठाने का यत्न लगातार करते रहे हैं। अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वह भारत में भी कुछ लोगों को हर ढंग-तरीके से उत्साहित करते रहे हैं तथा किसी न किसी रूप में उन्हें आर्थिक और अन्य सहायता भी पहुंचाते रहे हैं। ऐसी गतिविधियों में वे भारत के विरोधी देश पाकिस्तान के साथ भी सम्पर्क में रहते रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ऐसी गतिविधियों के प्रति नरम ही रहे हैं। यहां तक कि अब जब उनके द्वारा किसी धार्मिक समारोह में भाग लिया जाता है तो वहां अलगाववादी विचारों के लोगों की ओर से भारत विरोधी नारे भी लगाये जाते हैं। इस संबंध में भारत की ओर से भेजे जाते लगातार विवरणों के बाद भी कनाडा सरकार ने ऐसे लोगों को निरुत्साहित करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाये। 23 जून, 1985 में कनिष्क विमान के भयावह हादसे, जिसमें 329 लोग मारे गये थे, के संबंध में भी कनाडा सरकार ने गम्भीरता नहीं दिखाई थी। ऐसा सिलसिला दशकों से जारी है।
पिछले वर्ष जून के महीने में कनाडा के शहर सरी में भारत से पलायन करके गया एक खालिस्तानी नेता जो वहां लगातार ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है, की कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने गोलियां मार कर हत्या कर दी थी। उसके बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस मामले पर अपनी संसद में भारत पर आरोप लगाते हुए कहा था कि  हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंटों का हाथ है। भारत सरकार की ओर से लगातार इन आरोपों को खारिज करते हुए इस संबंध में कनाडा सरकार को कोई ठोस प्रमाण पेश करने के लिए कहा जाता रहा है। पिछले दिनों इस हत्या के संबंध में कनाडा में तीन पंजाबियों को गिरफ्तार किया गया है, जो पढ़ाई के वीज़े पर अलग-अलग समय में वहां गये थे। इस संबंध में कनाडा सरकार ने भारत सरकार को इन युवकों की गिरफ्तारी संबंधी सूचना तो दी है परन्तु भारतीय उच्चायोग द्वारा यह फिर दोहराया गया है कि कनाडा सरकार ने अभी तक भी भारत सरकार के साथ इस संबंध में कोई ठोस प्रमाण साझे नहीं किये, अपितु बिना प्रमाणों के ही वह भारत की ओर उंगली उठा रहा है।
हम महसूस करते हैं कि यदि जस्टिन ट्रूडो का भारत के प्रति ऐसा रवैया जारी रहा तो जहां दोनों देशों में कड़वाहट और बढ़ेगी, वहीं दोनों देशों के व्यापार तथा आपसी संबंधों पर भी और अधिक विपरीत प्रभाव पड़ेगा। कनाडा गये लाखों भारतीय परिवार भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए दोनों देशों, विशेष तौर पर कनाडा को द्विपक्षीय रिश्ते सुधारने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिएं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द