महोगनी का पेड़ - जिससे पत्ते नहीं, ‘नोट’ झड़ते हैं!

जी हां, यह महज मुहावरा नहीं है। वाकई अमरीकी मूल के इस ऊष्णकटिबंधीय पेड़ की पत्तियां पूरी तरह से कभी नहीं झरतीं। जिन पेड़ों की पत्तियां पूरी तरह से कभी नहीं झरतीं, उन्हें सदाबहार पेड़ कहते हैं, इनमें एबोनी, महोगनी, शीशम और आबनूस जैसे पेड़ आते हैं। महोगनी चूंकि मूलत: अमरीका का पेड़ है, इसलिए यह भारत में आमतौर पर लाल और काली मिट्टी के क्षेत्र में सबसे अच्छी तरह से विकसित होता है। हालांकि जहां पानी रूके नहीं और जहां की मिट्टी चिकनी न हो, ऐसी सभी जगहों पर भी न सिर्फ महोगनी का पेड़ आसानी से उग आता है बल्कि इसकी शानदार कॉमर्शियल खेती भी होती है। इसलिए सिर्फ पहाड़ी इलाकों और बहुत पथरीली मिट्टी वाले क्षेत्रों को छोड़कर भारत में करीब-करीब हर जगह महोगनी का पेड़ उगाया जा सकता है और यह कैश क्रॉप के रूप में उगाया भी जा रहा है, क्योंकि इस पेड़ की लकड़ी ही नहीं बल्कि इसके विभिन्न अवयवों की भी बाज़ार में भारी मांग है। इसकी पत्तियां, इसके बीज और इसकी लकड़ी की ब्राजील, कनाडा और अमरीका में बहुत मांग है।
मांग हो भी क्यों न महोगनी के पेड़ से पानी के जहाज, टिकाऊ फर्नीचर, लकड़ी की मूर्तियां, सजावटी सामान, वाद्ययंत्र आदि चीजें जो बनाये जाती हैं। जबकि इसके बीज और इसकी पत्तियों का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवाओं के बनाने में होता है। इसकी पत्तियों से कृषि के लिए कीटनाशक भी तैयार होते हैं और इसकी पत्तियों से निकले तेल से साबुन, पेंट और वार्निश भी बनते हैं। महोगनी के पेड़ की पत्तियां, कैंसर, अस्थमा, ब्लड प्रेशर तथा शुगर में भी कई तरह से उपयोगी होती हैं। हाल के सालों में महोगनी का पेड़ भारत में नगदी फसल उगाने वाले किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ है, क्योंकि इसकी खेती उन्हें बहुत अच्छा मुनाफा देती है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि महोगनी के पेड़ की खेती करने में ज्यादा लागत भी नहीं आती। दो सालों के बाद तो इसकी देखरेख की भी ज्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती। इसलिए कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, उड़ीसा, मैसूर आदि इलाकों में जहां लाल मिट्टी बहुतायत में पायी जाती है, वहां आजकल किसान महोगनी के पेड़ की खेती, नकदी फसल के रूप में करना पसंद कर रहे हैं।
महोगनी का पौधा 10 से 12 सालों में 60 से 80 फुट ऊंचाई तक का घना पेड़ बन जाता है। ऐसे में एक पेड़ से लगभग 40 घन फुट लकड़ी मिल जाती है। जबकि इसकी एक घन फुट लकड़ी 1300 से 2500 रुपये में बिकती है। अगर औसतन 1500 रुपये प्रति घन फुट के हिसाब से भी लकड़ी की बिक्री की जाती है तो एक पेड़ लगभग 60,000 रुपये में बिक जाता है। वहीं इसके एक पौधे से लगभग 5 किलोग्राम बीज हासिल होते हैं और बाज़ार में महोगनी के बीज की कीमत 1,000 रुपये प्रति कि.ग्रा. तक मिल जाती है। इस तरह इसके कई पेड़ लगाकर किसान तगड़ी कमाई कर सकते हैं। महोगनी की कॉमर्शियल खेती करने के लिए पहले खेत की गहरी जुताई करके उसे समतल कर दिया जाता है, फिर 5 से 7 फीट की दूरी पर 3.2 फुट का गड्ढ़ा तैयार कर लिया जाता है और इन गड्ढों में मिट्टी के साथ गोबर और रासायनिक खाद मिलाकर भर दिया जाता है। इस मिट्टी में महोगनी की बेड़ यानी नर्सरी लगाकर इसमें पानी डाल दिया जाता है और अगले 20 से 25 दिनों में महोगनी के पेड़ लग जाते हैं। एक बार जब पेड़ लग जाए तो फिर उन्हें हर दूसरे तीसरे दिन साफ-सफाई और पानी की ज़रूरत होती है। महोगनी की नर्सरी बाज़ार में बहुत आराम से 100 से 150 रुपये में प्रति पेड़ मिल जाती है। अगर ज्यादा पेड़ लेते है, तो कुछ डिस्काउंट भी मिल जाता है। एक एकड़ में महोगनी के पेड़ लगा दिए जाएं और इसकी सही से देखभाल हो जाये तो करीब 10 साल बाद ये पेड़ 1 करोड़ रुपये के आसपास बिक जाएंगे। 
अब चूंकि महोगनी के पेड़ की दो कतारों के बीच अच्छी खासी जमीन खाली पड़ी होती है तो यहां ऐसी खेती कर ली जाती है, जो किसी भी तरह से महोगनी के लिए नुकसानदायक नहीं होती और अच्छी खासी अतिरिक्त फसल देती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा मैसूर के कुछ इलाकों में महोगनी की खेती के साथ बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती की जाती है, जिससे टमाटर या दूसरी सब्जियों वाली नगदी फसलें तात्कालिक रूप से आर्थिक लाभ देती है। 
इसलिए भारत के आधुनिक किसान महोगनी की खेती करके ठीक-ठाक कमाई कर रहे हैं। लेकिन महोगनी के एक एकड़ में खेती करने के लिए कम से कम दो से ढाई सालों के बीच ढाई से तीन लाख रुपये की न्यूनतम ज़रूरत होती है। इसलिए महोगनी की कॉमर्शियल खेती आम किसान नहीं कर पाता, उसके पास नगद पूंजी का अभाव होता है। लेकिन अगर एक बार हिम्मत करके कोई किसान यह खेती कर ले, तो फिर उसकी हमेशा हमेशा के लिए आर्थिक रूप से किस्मत बदल जाती है। क्योंकि भारत से हर साल 8 से 10 अरब रुपये की जो लकड़ियां विदेश भेजी जाती हैं, उनमें बड़ा हिस्सा महोगनी की लकड़ी का भी होता है। लब्बोलुआब यह है कि अगर किसान गंभीरता से इस इमारती लकड़ी वाले पेड़ की खेती करें तो वे आर्थिक रूप से काफी मज़बूत हो सकते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर