जनादेश से पहले ही अरुणाचल ने दे दिए थे भावी के संकेत
पूरे देश में मतगणना बेशक 4 तारीख को होना तय है किन्तु अरुणाचल प्रदेश में मतगणना रविवार को ही हो गई और वहां भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज करके अरुणाचल प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 46 सीटें जीत कर लगातार तीसरी बार सत्ता में हैट्रिक वापसी की है। भाजपा को इस बार 2019 की तुलना में चार अधिक सीटें मिली हैं, वहीं कांग्रेस की बुरी हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसे 41 सीटों पर उम्मीदवार ही नहीं मिले। जी हां, अरुणाचल प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 41 पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। 41 सीटों पर उम्मीदवार न जुटा पाना दर्शाता है कि कांग्रेस की स्थिति कितनी खराब हो चली है। वह भी तब, जब अरुणाचल में तीन दशक से अधिक समय तक कांग्रेस का ही कब्जा था। लोकसभा चुनाव से पहले आए नतीजों में अरुणाचल में भाजपा के विरुद्ध लड़ाई में कांग्रेस को महज एक सीट ही हाथ लगी है।
दरअसल, साल 2019 में चार सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार केवल 19 सीटों पर ही चुनाव लड़ा। इसकी वजह है कि कई सीनियर कांग्रेस नेताओं ने उम्मीदवारों को नॉमिनेट करने के कांग्रेस के फैसले का उल्लंघन किया। वहीं, कई कांग्रेस नेता ऐन वक्त पर मैदान छोड़कर भाग गए। कई तो भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस ने कुमार वाई को पूर्वी कामेंग ज़िले के बामेंग विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा था। कांग्रेस की तरफ से जीत का परचम लहराने वाले वह इकलौते उम्मीदवार हैं। इस तरह से कांग्रेस को अरुणाचल में यही एक सीट हाथ लगी है। समाचारों के अनुसार कांग्रेस ने अरुणाचल प्रदेश चुनाव के लिए 35 उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार की थी। इनमें से 10 ने नामांकन ही दाखिल नहीं किया। बाकी बचे उम्मीदवारों में से पांच ने अपना नाम वापस ले लिया। कानुबारी सीट से एक अन्य उम्मीदवार सोम्फा वांगसा ने नॉमिनेशन पेपर्स की स्क्रूटनी के बाद सीट सरेंडर कर दी और भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा के साथ कथित तौर पर मिलीभगत करने वालों को निशाना बनाकर पार्टी के कई सीनियर नेताओं को पहले ही बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। इनमें 9 लोग ऐसे हैं, जिन्हें चुनाव लड़ने के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था, मगर वे चुनाव नहीं लड़े।
कांग्रेस के एक पदाधिकारी का कहना है कि इन उम्मीदवारों ने पार्टी को यह भी नहीं बताया कि वे चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं। वे आखिरी क्षण तक कांग्रेस के टिकट के लिए लड़ते रहे लेकिन बाद में पीछे हट गए। पीसीसी प्रमुख और अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने चुनावी मैदान से आश्चर्यजनक पलायन के लिए धनबल को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि पार्टी की अनुशासन समिति की सिफारिशों के अनुसार दलबदलुओं को निष्कासित किया जाता रहेगा। हम नि:संदेह निराश हैं, लेकिन हतोत्साहित नहीं हैं। हम हार के कारणों पर आत्मनिरीक्षण करेंगे और आने वाले दिनों में संगठन पर काम करेंगे।
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने 46 सीटों के साथ विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करते हुए विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस का सफाया कर दिया। कांग्रेस के खाते में केवल एक सीट आई और यह एनपीपी (5), राकांपा (3) तथा पीपीए (2) के बाद 5वें स्थान पर खिसक गई। तीन सीट निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गईं। पूर्वोत्तर राज्य में पहली बार चुनाव लड़ने वाले कुल 20 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। उनमें से 11 भाजपा से, चार नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और दो-दो पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) तथा राकांपा से और एक निर्दलीय शामिल है।
अरुणाचल में भाजपा को प्रचंड जीत दिलाने वाले मुख्यमंत्री पेमा खांडू उन 10 उम्मीदवारों में से एक हैं, जिन्होंने बिना किसी मुकाबले के अपनी सीट जीती। इस प्रचंड जीत के साथ खांडू लगातार तीसरी बार राज्य की कमान संभालने के लिए तैयार हैं। बता दें कि पेमा खांडू अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू के बेटे हैं। 2016 में मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाने के बाद वह पूर्वोत्तर में बड़े नेता के रूप में उभरे।
पेमा के पिता दोरजी खांडू की 2011 में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। खांडू ने तब प्रशंसा और पहचान हासिल की, जब उन्हें 2016 में देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। सितम्बर 2016 में खांडू ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए। पिछले साल दिसम्बर महीने में वह भाजपा में शामिल हो गए। चीन की सीमा से लगे तवांग के रहने वाले खांडू ने पहली बार 2011 में अपने पिता के निधन के कारण खाली हुई सीट से अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया था। इससे पहले वह 2000 की शुरुआत में कांग्रेस में शामिल हुए और 2005 में अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव और 2010 में तवांग ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए थे।
मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में खांडू ने अरुणाचल के नागरिकों के लिए कई अभियान चलाए। उन्होंने जमीनी स्तर पर राज्य और केन्द्र के प्रमुख कार्यक्रमों को हाइलाइट करने के लिए ‘अरुणाचल राइजिंग अभियान’ शुरू किया। सार्वजनिक पहुंच और शिकायत निवारण के लिए सरकार की पहल के रूप में उन्होंने राज्य में ‘सरकार आपके द्वार’ पहल शुरू की थी।
कहा जा रहा है कि इतनी बड़ी जीत के बावजूद सिर्फ एक उम्मीदवार की हार भाजपा के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है क्योंकि जिस उम्मीदवार ताबा तेदिर की हार हुई है, वो अरुणाचल सरकार में शिक्षा मंत्री थे और भाजपा के कद्दावर नेताओं में उनकी गिनती होती थी। ताबा तेदिर अरुणाचल प्रदेश की भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री हैं। उन्हें एनसीपी के तोको तातुंग ने कड़ी टक्कर के बाद हरा दिया। उन्होंने 2019 में यहां से पहली बार चुनाव जीता था। रिटायर्ड टेक्नोक्रेट ताबा तेदिर 2019 के विधानसभा चुनाव में याचुली सीट से निर्विरोध जीते थे। लेकिन इस बार उन्हें एनसीपी के तोको तातुंग ने महज 228 वोटों से हरा दिया। चुनाव आयोग के मुताबिक तोको तातुंग को 8 हजार 255 वोट मिले, जबकि भाजपा उम्मीदवार ताबा तेदिर को 8 हजार 27 वोट मिले।
राजीव गांधी यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर डा. नानी बाथ का कहना है कि तेदिर की हार का कारण ईसाई वोटों का उनके खिलाफ होना है। एनसीपी के एक समर्थक ने कहा कि एंटरप्रेन्योर से नेता बने तातुंग ने यह सीट युवाओं के दम और बदलाव के वादे के साथ जीती है। ताको तातुंग एक कारोबारी और एंटरप्रेन्योर हैं। उनकी पत्नी अरुणाचल सरकार में बड़ी अधिकारी हैं। विधानसभा चुनाव के लिए दाखिल हलफनामे के मुताबिक, तातुंग के पास 57.54 करोड़ रुपये की संपत्ति है। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से साल 2000 में बीए की डिग्री हासिल की थी।