बाल कहानी-बंदर का बाक्ंिसग स्कूल

आलसी बंदर इस बार शहर से जंगल के जानवरों को बेवकूफ बनाने की एक नई तरकीब सोचकर लौटा था। बात यह थी कि उसने शहर में एक ‘बाक्ंिसग स्कूल’ देख लिया था जिसमें लोग बाक्ंिसग सीखने जाते थे। उसने सोचा कि वह भी जंगल में बाक्ंिसग सिखाने का स्कूल खोल ले।  वह बाक्ंिसग तो जानता नहीं था पर अपनी चालबाजी पर उसे पूरा भरोसा था। दूसरे ही दिन बंदर ने अपने घर के दरवाजे पर एक बोर्ड लगा दिया। उस पर लिखा था, ‘हर छोटे-बड़े जानवर को यहां बाक्ंिसग सिखाई जाती है।’ 
सबसे पहले बोर्ड को एक चूहे ने देखा। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने अपने दोस्तों को जब बताया कि बंदर ने बाक्ंिसग सिखाने का स्कूल खोला है तो वे भी बड़े खुश हुए। उन्होंने सोचा कि अच्छी बाक्ंिसग सीखकर वे बिल्ली से आसानी से निपट लेंगे। जंगल में यह खबर आग की तरह फैल गई। 
जानवरों को बाक्ंिसग सीखने का बड़ा शौक था। जिसने भी सुना, वही बंदर के यहां खिंचा चला आया। बंदर ने भारी भीड़ देखी तो एक पेड़ पर चढ़कर उसने भाषण शुरू कर दिया, ‘दोस्तों, आप सब जानते ही हैं कि बाक्ंिसग सिखाने के लिए मैं शहर से खास ट्रेनिंग लेकर आया हूं।’
‘क्या तुम हमें इस लायक बना दोगे कि हम बिल्ली का मुकाबला का सकें’, एक चूहे ने पूछा। 
‘क्यों नहीं’, बंदर ने तपाक से जवाब दिया। 
दूसरे दिन से ही स्कूल के कामकाज शुरू हो गए। बंदर ने बैल से घास साफ कराई और गैंडे से घर के बाहर की जमीन खुदवाई। बंदर ने बहका कर चूहे और खरगोश से अपने घर की सफाई और पुताई करवा ली। फिर वह बोला, बाक्ंिसग सीखने के लिए सेहत ज़रूरी है और अच्छी सेहत के लिए सफाई। आज सफाई हो गई। अब कल से सेहत बनाने के तरीके, योगासन और कसरत सिखाऊंगा।
सभी जानवर थके-मांदे अपने-अपने घर चले गए। अगले दिन फिर सब जानवर इकट्ठे हुए। बंदर ने सबसे पहले भालू को बुलाया और बोला, तुम्हारा शरीर बहुत भारी हो गया है, पहले इसे कम करो। वह चक्क ी रखी है। पूरे तीन घंटे गेहूं पीसो, फिर आधे घंटे तक दौड़ लगाओ।
भालू जोश में आकर गेहूं पीसने लगा। बंदर ने खरगोश को दौड़ लगाने को कहा और बाजार से बिस्कुट मंगवाए। चूहों को एक जगह पर उछलने को कहा और फिर उनसे सामान वाली अलमारी साफ करवाई। सब जानवर काम करते लेकिन बंदर खुद दिन भर सोता रहता। सेहत बनाने के चक्कर में सभी लगन से काम करते रहे। शाम तक वे थककर चूर हो गए और घर पहुंचे। बंदर भी इसी तरह चकमा देकर कसरत के नाम पर सबसे नौकरों की तरह काम लेने लगा। 
कुछ समय बीतने पर जानवर जिद करने लगे कि अब बहुत दिन बीत गए, बाक्ंिसग कब सीखेंगे। बंदर ने बहाना पहले ही सोच रखा था। वह बोला, भाइयो, मैं तो बाक्ंिसग अच्छी तरह से सीख कर आया हूं मगर यह तुम लोगों के बस की बात नहीं है। पहले लगन के साथ कसरत का कोर्स पूरा करना होगा जो एक साल का है। अब तुम्हीं सोचो, बाक्ंिसग के लिए लोहे जैसे हाथ चाहिए, कलाई में दम होना चाहिए। हां, तुम में से किसी के पांच हाथ-पैर हों तो मैं अभी सिखा दूं पर तुम्हारे चार हाथ- पैर हैं, इसलिए एक साल तक मेहनत करनी होगी। सभी जानवर फिर से कसरत करने में जुट गए पर सियार बंदर की चालाकी ताड़ गया। उसने बंदर को सबक सिखाने का फैसला किया और हाथी के घर की ओर दौड़ पड़ा। 
हाथी ने जब बंदर की चालाकी की बातें सुनीं तो उसका खून खौल उठा। सियार ने हाथी के कान में अपनी तरकीब बताई। सुनकर हाथी बहुत खुश हुआ। वे दोनों फौरन बंदर के घर चल दिए। हाथी ने मुस्कुराकर बंदर को नमस्ते की। बंदर ने भी नमस्ते की और चहककर पूछा, हाथी भाई, तुम भी बाक्ंिसग सीखोगे।
हां, हाथी मुस्कुराकर बोला।
मगर उसके लिए एक साल तक मेहनत और कसरत .....
नहीं, बंदर भाई, सियार ने बीच में ही उसकी बात काटी, हाथी के चार नहीं, पांच हाथ-पैर हैं, उसने सूंड की तरफ इशारा किया। 
बंदर चकराया। बोला, यह हाथ नहीं, सूंड है।
अरे, यह भी तो हाथ है। हाथी इससे हाथों वाले काम ही करता है, सियार ने कहा। बंदर की बोलती बंद हो गई। 
इसे अभी बाक्ंिसग सिखाओ, बंदर भाई, सियार हंसकर बोला, अपनी बात भूल गए क्या?
अब बंदर घबराया। वह इधर-उधर देखकर भागने की सोचने लगा मगर तब तक हाथी ने उसे अपनी सूंड में लपेट लिया और ऊपर उछालते हुए कहा- अब समझ आ गया न कि मेरे पांच हाथ-पैर हैं। (उर्वशी)