क्या सरकार को घेरने हेतु राहुल बना रहे हैं शैडो कैबिनेट ?

18वीं लोकसभा का पहला सत्र में राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष के विस्फोटक नेता में रूप में उभरने के साथ समाप्त हो चुका है। मोदी सरकार 3.0 में मंत्रिमंडल गठन के दौरान मंत्रियों के रूप में पिछली सरकारों की जो निरन्तरता दिखी थी, जिसके बाद राजनीतिक विश्लेषक नई सरकार में किसी बदलाव को लेकर मायूस हो गये थे, संसद के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी का विस्फोटक रूप देखकर चौंक गये हैं। सिर्फ राजनीतिक विश्लेषक ही नहीं लम्बे समय से राजनीतिक पत्रकारिता कर रहे पत्रकार तक राहुल का यह अंदाज देखकर भौंचक रहे गये हैं। जो राहुल गांधी पिछले 20 सालों में बमुश्किल 20 बार ही संसद में बोले होंगे, वह राहुल इस लोकसभा की शुरुआत में ही तेज़-तर्रार अंदाज़ में पहली बार में ही इतना बोल चुके हैं कि अब उनसे न सिर्फ नई-नई तरह की उम्मीदें लगायी जा रही हैं बल्कि उनकी आगामी रणनीतिय का भी अनुमान लगाया जा रहा है। 
आमतौर पर राहुल गांधी चुनावी जनसभाओं में भी 30-35 मिनट से ज्यादा नहीं बोलते, लेकिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उन्होंने अपना पहला ज़ोरदार भाषण ही 90 मिनट से ज्यादा का दिया और इसमें 20 मुद्दों को छुआ। नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने पहले भाषण में ही राहुल गांधी इस कदर मूसलाधार बरसे कि शायद संसदीय इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री सहित पांच वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों और दूसरे नेताओं को उनके भाषण पर हस्तक्षेप करना पड़ा। सदन के अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला को उनके पूरे भाषण के दौरान व्यवस्था बनाये रखने की मशक्कत करनी पड़ी। संसद की रिपोर्टिंग करने वाले पुराने से पुराने पत्रकारों को नहीं याद कि कभी किसी प्रधानमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष के भाषण पर हस्तक्षेप किया हो, लेकिन क्या करें राहुल गांधी का भाषण ही ऐसा था, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर तो शायद ही कुछ बोला हो, लेकिन अपने इस भाषण में उन्होंने उन सभी मुद्दों को ज़ोरदार तरीके से उठाया, जिन्हें पिछले पांच सालों से छुआ नहीं जा रहा था।   
सवाल है क्या राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के रूप में जो अपनी आतिशी झलकी दिखायी है, वह आगे भी बरकरार रहेगी? क्या वाकई उनका पूरी तरह से कायांतरण हो चुका है? लगता तो कुछ ऐसा ही है। क्योंकि उनके इस रूप को देखने के बाद अब मोदी 3.0 सरकार न सिर्फ  उन्हें गंभीरता से ले रही है, बल्कि अगर राजधानी के सियासी गलियारों में हो रही कानाफूसी पर ध्यान दें, तो पता चल रहा है कि सरकार ने आगामी मानसून सत्र को  लेकर अपनी अब तक की रणनीति को बदल दिया है और नये तरीके से प्लानिंग कर रही है।
राहुल गांधी ने जिस तरीके से संसद के शुरुआती सत्र में अपना तेवर दिखाया है, उससे साफ है कि वित्तमंत्री कम से कम इस बजट में तो बड़े और कड़े कदम उठाने से सर्वथा हिचकेंगी, क्योंकि जिस तरह से राहुल गांधी ने बेरोज़गारी और महंगाई के मुद्दे पर सरकार को संसद के प्रारंभिक सत्र में घेरा है, अगर बजट में ज़रा भी महंगाई बढ़ाने वाला कोई निर्णय दिखेगा तो राहुल गांधी की पूरी योजना है कि आगामी झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मोदी सरकार के न चाहने के बावजूद महंगाई को मुख्य चुनावी मुद्दा बना देंगे। 
पहले जैसा न चलने का अंदेशा इस बात को लेकर भी है कि सुनने को मिल रहा है कि राहुल गांधी संसद के मानसून सत्र में विपक्ष का अपना एक शैडो कैबिनेट बनाने की सोच रहे हैं और अपने इस कैबिनेट में फायर ब्रांड महुआ मोइत्रा से लेकर चुन चुनकर और सही ठिकाने पर हमला करने वाले अखिलेश यादव तक को शामिल कर रहे हैं और उनका यह शैडो कैबिनेट मोदी सरकार के अलग-अलग मंत्रियों पर अपने आपको फोकस करेगा और राहुल गांधी विपक्ष में रहते हुए भी एक ऐसी सामानंतर छाया सरकार चलाने कोशिश करेंगे, जो हर कदम पर मोदी सरकार को घेरेगी। अगर इस 18वीं लोकसभा के प्रारंभिक सत्र में ही हम देखें तो इस बार संसद के भीतर विपक्ष ने एक एकजुट और मज़बूत ईकाई के रूप में पेश आया है। इस बार विपक्ष के अलग अलग राजनेता संसद में अपनी अपनी डफलियों में अपने अलग अलग राग नहीं अलापे बल्कि एक व्यवस्थित क्रम में मोदी सरकार के विरुद्ध इस क्रम में पेश आये हैं कि जहां से राहुल गांधी ने अपनी बात छोड़ी थी, वहीं से आगे तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा और सीपीआई के डी. राजा ने बात आगे बढ़ायी। बहुत सधे हुए राजनेता के तौर पर अखिलेश यादव ने संसद के इस परिचय सत्र में सरकार पर ऐसे चुन चुनकर वार किए हैं कि बिना ऊंचा बोले भी उन्होंने मोदी सरकार को तिलमिला दिया है। जबसे राजधानी के सियासी गलियारे में मोदी सरकार के बरक्स राहुल के शैडो कैबिनेट की बात सामने आयी है, तब से सरकार में हड़कंप मचा हुआ है और मानसून सत्र के तूफानी होने की पूरी भूमिका बन चुकी है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर