पुल नहीं गिरे, नैतिक चरित्र गिर गया है

इन दिनों देश के अनेक भागों से विशेषकर बिहार राज्य से नदियों पर बने हुए या बन रहे पुल गिरने के समाचार आ रहे हैं। कुछ पुल शहर को गांवों तक जोड़ने वाले भी हैं, परन्तु जिस गति से ये पुल गिरे और दो दिन पहले एक ही दिन में पांच पुल गिरने का जो लज्जाजनक रिकार्ड बना वह भी बिहार का ही है। वास्तव में यह ईंट रेत और लोहे के पुल नहीं गिरे, बल्कि यह राष्ट्रीय चरित्र की गिरावट है। बहुत पहले से चला आ रहा एक शाश्वत सत्य वाक्य यह है कि अगर धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, परन्तु जब चरित्र चला गया तो सब कुछ चला गया। बिहार में इसी वर्ष मार्च के महीने में सुपोल जिले में कोसी नदी पर बन रहे पुल का एक हिस्सा गिर गया था। दस किलोमीटर लम्बाई वाला बन रहा यह पुल बहुत महत्वपूर्ण था। इस हादसे में एक मजदूर की मौत और लगभग दस लोग घायल हो गए। बिहार में पुलों का गिरना पांच जुलाई तक भी जारी रहा। तीन जून को तो पांच पुल ही गिर गए। गंडकी नदी पर बने दो पुल नदी में ही गिर गए और बड़ी संख्या में लोग इससे प्रभावित हुए। सिवान में भी नदी पर पुल गिरा। यद्यपि यह कहा जा रहा है कि वह एक सूखी नदी पर बनाया गया पुल था। पुल चंपारण में भी गिरा, अररिया में भी, सिवान में भी और कई जगहों पर भी। अब सरकार ने नाक बचाने के लिए 16 इंजीनियर्स को निलंबित किया है, यह समाचार मिला है। राजनीति पुल गिरने की गति से भी तेज़ चल रही है। आरजेडी नितीश कुमार पर दोष लगा रही है और मुख्यमंत्री नितीश पुल बनने के दिनों में आरजेडी का राज्य था, ऐसा कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। सत्य तो यह है कि पुल गिरे हैं। जनता प्रभावित हुई है। जो मार्ग टूट गए, न जाने कब दोबारा बनेंगे। भारत की राजधानी दिल्ली में मौजूद सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीच्यूट के ब्रिज इंजीनियरिंग एंड स्ट्रक्चर डिवीजन के चीफ साइंटिस्ट डा. राजीव कुमार ने पुलों का विस्तृत अध्ययन करने के बाद यह पाया कि भारत में बाढ़ की वजह से लगभग 52 फीसदी पुल गिरते हैं, पर इसका कारण सीमा से अधिक रेत का खनन है, जिससे पुल की जड़ें कमज़ोर हो जाती हैं। उनके अध्ययन के मुताबिक भारत में पुल टूटने की दूसरी बड़ी वजह निर्माण में इस्तेमाल होने वाला खराब सामान है। इसके कारण दस प्रतिशत से ज्यादा पुल समय से पहले गिर जाते हैं जबकि डिजाइन और निर्माण की विसंगतियां भी पुल गिरने का एक बड़ा कारण है। आज देश के सामने प्रश्न यह है कि आखिर इतने पुल क्यों गिर रहे हैं? देश में नैतिक चरित्र का जो हृस हो गया है वह पुलों के गिरने का एक बड़ा कारण है। 
अभी पिछले महीने की एक ही वर्षा से दिल्ली में हवाई अड्डे के टर्मिनल एक की निर्माणाधीन छत गिर गई। पूरी दुनिया ने सुना। सड़कें भी टूटीं। इसी वर्ष बंगाल में भी एक पुल टूटा। मुझे ऐसा लगता है कि अगर खनन का अवैध धंधा चलता है। अगर ठेकेदारों, इंजीनियरों और राजनेताओं की कथित मिलीभगत से निर्माण कार्य में लगने वाला धन कुछ लोगों के पेट में चला जाता है। अगर ठेकेदारों से कथित मोटी कमीशन ली जाती है तो फिर पुल तो गिरेंगे ही। 
चिंता पूरे देश को बिहार के पुल गिरने की है। दिल्ली के हवाई अड्डे के टर्मिनल एक की छत गिरने की भी है। सड़कें एक ही बारिश से रेत बन जाने की भी चिंता है। भरी बारिश में तारकोल सड़कों पर बिछाकर विकास का नाटक करने की भी है। और सबसे बड़ी चिंता यह है कि जहां विद्यार्थियों को शिक्षा ही कथित तौर पर रिश्वत से मिलेगी, शिक्षा रिश्वत के बल से पाए हुए परीक्षा से पहले के प्रश्न पत्र से मिलेगी, नौकरी सिफारिश या नोटों के बंडल दिलवाएंगे और विदेश भी जाना होगा तो लाखों की रकम खर्च करनी होगी, तो राष्ट्र का निर्माण कहां होगा। कौन नहीं जानता जहां धन की मान्यता होती है, वहां हर प्रकार के अपराध की छूट रहती है। मुझे लगता है कि आज वह पुराना वाक्य असत्य सिद्ध होता जा रहा है। अब तो यह हालत है कि धन गया तो सब कुछ गया। याद रखना होगा कि राष्ट्र निर्माण चरित्रवान नागरिक ही कर सकते हैं। ऐसे नागरिक जो बिना भय और लालच के देश के लिए प्राण भी देते हैं, साधना करते हैं। श्री लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल और अटल बिहारी की तरह सत्ता के शिखर पर पहुंचकर भी किसी भी आकर्षण से आकर्षित नहीं होते, उनका धर्म राष्ट्र धर्म ही होता है। आज के राजनेता, सत्ता के शिखर पर बैठे लोग जब तक चरित्रवान लोगों को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करेंगे, जब तक ‘आया राम, गया राम’ की संस्कृति को तिलांजलि नहीं देंग,े तब तक देश के चरित्र का निर्माण अर्थात नई पीढ़ी का आदर्शमय जीवन बन ही नहीं सकता।