अग्निपथ योजना अच्छी, लेकिन सुधार की ज़रूरत

लोकसभा चुनाव में अग्निपथ योजना को विपक्ष ने मुद्दा बनाया था और मेरा मानना है कि इसका भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ। वास्तव में इस योजना के विरोध में जो सवाल उठाये जा रहे थे, मोदी सरकार ने उनका समाधान नहीं किया है। विपक्ष के विरोध का आधार कुछ सही और कुछ गलत था, लेकिन सरकार इसके पक्ष में जनता को अपनी बात नहीं समझा पाई। सेना की ज़रूरत को देखते हुए 16 जून, 2022 में इस योजना को लाया गया था। वास्तव में सेना का कहना है उसके जवानों की औसत उम्र 32 साल से ज्यादा हो गई है और सेना की ज़रूरतों के अनुसार यह उम्र बहुत ज्यादा है। इस योजना के माध्यम से सेना अपने सैनिकों की औसत उम्र को 6-7 साल कम करना चाहती है। सेना की ज़रूरतों को कोई भी देश अनदेखा नहीं कर सकता क्योंकि देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सेना पर ही होती है। हमारा देश एक तरफ पाकिस्तान तो दूसरी तरफ चीन जैसे दुश्मन से घिरा हुआ है और हम सेना में किसी भी तरह की कमज़ोरी का जोखिम मोल नहीं ले सकते। 
सेना रोज़गार ज़रूर देती है लेकिन सेना को रोज़गार देने का साधन नहीं मानना चाहिए। इस संगठन में वही लोग आए जिनमें देश के लिए कुछ करने का जज़्बा हो। इस योजना के अंतर्गत भर्ती होने वाले जवानों को अग्निवीर का नाम दिया गया है। इस योजना के लिए भर्ती होने वाले जवानों की भर्ती पुरानी भर्ती प्रक्रिया की तरह ही की जाती है । सेना ने अग्निवीरों की भर्ती के लिए अपने मानदंडों से किसी प्रकार को समझौता नहीं किया है, लेकिन इस योजना में भर्ती होने वाले जवानों में से 75 प्रतिशत जवानों को सिर्फ चार साल की नौकरी के बाद रिटायर कर दिया जाता है। सिर्फ 25 प्रतिशत जवानों को ही नियमित सेवा का अवसर मिलता है। यही सबसे बड़ा सवाल है कि जिन 75 प्रतिशत युवाओं ने सेना में चार साल सेवा की है, उन्हें किसके सहारे छोड़ दिया जाता है। विपक्ष भी यही सवाल उठा रहा है जो कि जनता को उचित लगता है। इस नियम के कारण युवाओं में सेना के प्रति आकर्षण कम हो सकता है। सिर्फ चार साल की सेवा के कारण जवानों को पेंशन की सुविधा भी नहीं है। विपक्ष ने इस योजना के बारे में एक झूठ भी फैलाया है कि अग्निवीर के शहीद होने पर उसके परिवार को अन्य जवानों की तरह आर्थिक लाभ नहीं दिया जायेगा। सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि सेवा के दौरान शहीद होने पर अग्निवीर के परिवार को पेंशन के अतिरिक्त अन्य सभी आर्थिक लाभ दिये जायेंगे ।
अग्निवीर बनने पर होने वाले लाभ को देखा जाये तो सेवा के दौरान बचत के अलावा सैनिक को रिटायर होने के समय 12-13 लाख रुपयेकी पूंजी मिलेगी। इसके अतिरिक्त उसे अपना रोज़गार करने के लिए आसानी से लोन भी मिल जायेगा। मतलब साफ  है कि जिस 22-23 की उम्र में युवा नौकरी ढूंढने निकलते हैं, उस उम्र में अग्निवीर 20 लाख से ज्यादा की रकम लेकर अपने रोज़गार की तलाश में जायेगा। इसके अलावा उसके पास सेना में काम करने का अनुभव होगा और उसे भारतीय सेना का उच्च स्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त होगा। भारत सरकार ने कहा है कि अग्निवीर को एक स्किल सर्टिफिकेट भी दिया जायेगा जिसके कारण उसे अन्य नौकरियों में भी प्राथमिकता मिलेगी। वह भीड़ का हिस्सा नहीं होगा बल्कि उसकी एक पहचान होगी। इसके अलावा भाजपा की कई राज्य सरकारों ने यह आश्वासन दिया है कि अग्निवीरों को वो अपने राज्य की पुलिस भर्तियों में आरक्षण देंगे। केन्द्र सरकार ने केंद्रीय अर्ध-सैनिक बलों और असम राइफल्स में अग्निवीरों को प्राथमिकता देने की बात कही है। दूसरी तरफ निजी क्षेत्र में भी अग्निवीरों के लिए निजी सुरक्षा अधिकारी बनने का मौका मिल सकता है। सरकार ने कहा है कि अग्निवीरों को इंजीनियरिंग और कानून व्यवस्था जैसे क्षेत्रों में काम करने का प्रशिक्षण दिया जायेगा ताकि वे इतने कुशल हो जाये कि उनके लिए आगे का रास्ता आसान हो जाये। उनके प्रशिक्षण को शिक्षा मंत्रालय स्नातक की मान्यता देगा। देखा जाये तो इस योजना से रिटायर युवा के पास अनुशासन, प्रशिक्षण और कुशलता होगी जो कि किसी नये युवा के पास नहीं होगी। यह सब होने के बाद भी सवाल उठता है कि चार साल की सेना की नौकरी के बाद क्या अग्निवीर का भविष्य सुरक्षित हो जाता है? वास्तव में यही सवाल परेशान करने वाला है कि सेना में चार साल की सेवा देने वाले युवक का भविष्य सुरक्षित नहीं है। इसलिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि यह सरकार की ‘यूज एंड थ्रो’ योजना है। यह पूरा सच न भी हो लेकिन आधा सच तो है कि सेना की चार साल की नौकरी के बाद अग्निवीर को अपनी दूसरी नौकरी की चिंता करनी होगी। यह सही नहीं होगा कि देश की सेना में सेवा देने वाला युवा चार साल यही सोचकर निकाल दे कि इसके बाद उसका क्या होगा।इस योजना में सुधार की बहुत ज़रूरत है सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि चार साल बाद रिटायर होने वाले अग्निवीर को अपने भविष्य की कोई चिंता न हो। 
यह दबाव एक सैनिक के लिए ठीक नहीं है कि वह चार साल बाद रिटायर हो सकता है। जैसे-जैसे उसकी नौकरी बढ़ती जायेगी, उस पर बेरोज़गार होने का डर बढ़ता जायेगा। यह सेना के लिए भी ठीक नहीं होगा कि उसके जवान ऐसे किसी डर में अपनी सेवा दें।सरकार को सेना में नियोजित होने वाले अग्निवीरों की संख्या 25 प्रतिशत से ज्यादा करनी चाहिए। इसके अलावा सभी राज्यों की पुलिस में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। सरकार और सेना के लिए यही बेहतर है कि अग्निवीर को अपनी सेवा के दौरान ही पता हो कि वह सेना से रिटायर होगा, लेकिन वह बेरोज़गार नहीं होगा। सरकार और सेना के लिए ज़रूरी हो गया है कि वे अग्निवीरों को चिंतामुक्त करे। (युवराज)