नाकाफी हैं बाढ़ रोकने के प्रबन्ध

पंजाब में मौनसून की आशंकित बाढ़ों का खतरा सिर पर है, और प्रदेश की सरकार को इस विभीषिका से बचने हेतु ज़रूरी कार्यों अथवा ज़रूरी साज-सामान की खरीद हेतु अब जाकर टैंडर जारी करने की सूझी है यानि बूहे आई जन्न, विन्नो कुड़ी दे कन्न। कहीं तो योजना की मंजूरी के बावजूद फंड नहीं मिले, कहीं करोड़ों रुपये के टैंडर अभी भी दफ्तरों की रैकों की धूल फांक रहे हैं। स्वयं मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री भगवंत मान के नाम पर जारी निर्देश के अनुसार अब जाकर 252 करोड़ रुपये बाढ़-बचाव राशि हेतु जारी करने का दावा किया गया है। कब डिप्टी कमिश्नरों को यह राशि जारी होगी, कब सामान आदि की खरीद होगी और कब बचाव कार्य सम्पन्न होंगे। दरियाओं में बाढ़ से बचाव हेतु नावों आदि की खरीद हेतु भी टैंडर अभी तक जारी नहीं किये गये इससे स्पष्ट तौर पर चलता है कि मौनसून अब जब सिर पर आ सवार हुआ है, तो भी पंजाब की भगवंत मान सरकार की कुम्भकर्णी निद्रा की तंद्रा भंग नहीं हुई है। पंजाब के पर्वतीय क्षेत्र के प्रवेश-द्वार ज़िला नवांशहर में बरसी मानसून-पूर्व की पहली वर्षा से उपजी बाढ़ के स्वरूप और इस कारण उपजे विनाश को देख कर स्थितियों की गम्भीरता का पता साफ तौर पर लगाया जा सकता है। पंजाब के प्राय: सभी ज़िलों में अक्सर मौनसून के दौरान बड़े स्तर पर उपजी बाढ़ों की विभीषिका का सामना करना पड़ता है। इस दौरान एक ओर जहां छोटी नदियां-नहरें उफनने लगती हैं, वहीं प्रदेश में शेष बची दो-अढ़ाई बड़ी नदियां सतलुज और ब्यास भी अपने किनारों के ऊपर से होकर बहने लगती हैं। इन दोनों नदियों पर बने बाढ़ रोकने वाले अस्थायी बांध खास तौर पर धुस्सी बांध हर वर्ष टूटते हैं। ऐसा पूर्व की सरकारों के समय भी होता आया है, और मौजूदा भगवंत मान सरकार के सम्पूर्ण प्रशासनिक तंत्र की ज़ाहिरा तौर पर की गई घोषणाओं एवं दावों के बावजूद स्थितियों की तस्वीर पहले से बदरंग ही हुई लगती है। इसमें इस सरकार के अब तक के यत्नों और प्रयासों के बावजूद रत्ती भर सुधार हुआ दिखाई नहीं दिया है। इसका साक्षात प्रमाण तब देखने को मिला जब पंजाब में मौनसून की पहली बरसात के बाद छोटे-छोटे अनेकानेक चोओं-नहरों में न केवल बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हुई, अपितु कई छोटे-बड़े पुल भी ध्वस्त हुए। नहरों के किनारे टूट गये, और कई जगह खेतों में पानी भर गया। नि:संदेह यदि आ़गाज़ में ऐसी विनाशक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, तो अंजाम की तस्वीर की कल्पना कोई भी, बहुत सहज तरीके से कर सकता है।
पूर्व की सरकारों की ही भांति, मौजूदा भगवंत मान सरकार भी मौनसून की आहट के साथ ही, बाढ़ नियंत्रण हेतु व्यवस्था करने के दावे और दमगजे तो बहुत मारती रही, किन्तु उसका प्रशासनिक तंत्र पूरे वर्ष भर में अढ़ाई कोस भी नहीं चला, और कि बाढ़ का वैताल अतीत के अन्धेरे की दीवार को फलांग कर फिर सामने आ खड़ा हुआ है। सामाजिक संगठनों, जागरूक संस्थाओं और समाचार-पत्रों द्वारा भी, बार-बार की चेतावनियों और गुहारों के बावजूद मुख्यमंत्री तो चुनावी उड़न-खटोलों की उड़ानों का आनन्द मानते रहे, और उनका प्रशासनिक तंत्र येन-केन-प्रकारेण समय व्यतीत करने में ही मशगूल रहा। मौजूदा सूरते-हाल यह है कि प्रदेश के नदी-नालों की सफाई की ओर पूरा वर्ष भर ध्यान नहीं दिया गया। इनके किनारों पर झाड़-झंखाड़ और तलहटी में गाद जमी है। अकारण और अनियोजित रेत खनन से जगह-जगह टीले-टिब्बे और खड्डे बन चुके हैं जो थोड़ी-सी बरसात में भी किनारों की तोड़-फोड़ करके और बाढ़ों का रूप धारण करके आस-पास के इलाकों के लिए भारी विनाश का कारण बन सकते हैं। नवांशहर, रोपड़, गुरदासपुर, अमृतसर, पठानकोट, तरनतारन, होशियारपुर, लुधियाना और जालन्धर ज़िलों के लोग आशंकित बाढ़ की विभीषिका के संबंध में सोच-सोच कर ही चिन्तित हुए जा रहे हैं। पूरे प्रदेश के सभी ज़िलों खास तौर पर सीमांत क्षेत्रों के जौहड़-तालाब भी झाड़ियों आदि से अटे पड़े हैं। ये क्षेत्र मौजूदा हालत में बाढ़ के एक हल्के-से झटके को भी सहन करने हेतु सक्षम प्रतीत नहीं होते। प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा की चेतावनी से स्थितियों की गम्भीरता को भली-भांति समझा जा सकता है कि प्रदेश सरकार द्वारा आगामी मौनसून मौसम की आशंकित बाढ़ की स्थिति से निपटने के प्रबन्ध पूर्णतया नाकाफी हैं। पंजाब के मुख्य सचिव द्वारा अब ड्रेनों की सफाई हेतु दिये गये निर्देशों से भी प्रदेश सरकार की मंशा और निष्क्रियता को भली-भांति समझा जा सकता है। ड्रेनेज विभाग की ओर से बड़ी नदियों और बरनाला क्षेत्र के रजवाहों की सफाई हेतु अब जाकर निर्देश देना भी भगवंत मान सरकार की कोताहियों की ओर ही संकेत करता है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह पंजाब की मौजूदा सरकार के प्रबन्ध नदी-नालों में उपजने वाली मौनसून की बाढ़ की गम्भीर स्थितियों से निपटने में सचमुच नाकाफी हैं। स्थिति यह है कि ‘बूहे आई जंज विन्नो कुड़ी दे कन्न’ जैसी कहावत के अनुरूप अब भी बाढ़ की रोकथाम के सिर्फ निर्देश भर ही दिये जा रहे हैं। इन पर अमल कब होगा, यह किसी को इल्म नहीं। मुख्यमंत्री स्वयं एक बार फिर चुनावी रंग में रंगे गये हैं, और प्रदेश भर का सरकारी लाव-लश्कर उनकी आवभगत में व्यस्त है। ऐसे में पंजाब और खासकर इसके सीमांत क्षेत्र के लोग, और जहां-जहां से बरसाती पानी को समेटे नदी-नाले गुजरते हैं, वहां के लोग पूरी तरह से राम जी के भरोसे निर्भर होकर रह गये हैं। बाढ़ के विनाश की ये लहरें कितना ऊंचा उठती हैं, यह आगामी होने वाली बरसातों के दौरान ही पता चलेगा।