पाकिस्तान की शह से फिर सक्रिय हो रहे आतंकवादी 

धारा 370 हटने के बाद जम्मू में कुछ समय शांति रही थी। यहां छुटपुट घटनाओं के अलावा कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ था लेकिन अचानक साल 2023 में यहां आतंकी घटनाएं बढ़ गई और 43 आतंकी हमले हुए, जिनमें 16 से ज्यादा जवान शहीद हो गए। अगर पिछले 3 साल की बात करें तो 43 जवान शहीद हुए और 23 से ज्यादा नागरिक इन आतंकी घटनाओं में मारे गए। इस इलाके में आतंकवाद पुन: आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तान से आए आतंकवादियों का पता लगाने के लिए इलाके में लगभग 500 पैरा स्पेशल फोर्स कमांडो को तैनात किया गया है। 
आंकड़ें बताते हैं कि आतंकवाद अब जम्मू में अपने पैर पसार रहा है। जम्मू में पिछले कुछ महीने में 9-10 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें सबसे बड़ा हमला 9 जून को रियासी में हुआ था, जहां तीर्थयात्रियों से भरी एक बस को आतंकियों ने निशाना बनाया, और बस खाई में जा गिरी, जिस कारण 9 लोगों की मौत हो गई थी। फिर 8 जुलाई को दहशतगर्दों ने घात लगाकर सेना के काफिले पर हमला किया, जिसमें 5 जवान शहीद हुए। अप्रैल 2024 से अब तक आतंकियों के हमले में 24 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, इनमें सेना के जवान भी शामिल हैं। जानकारों का मानना है कि बीते कुछ सालों में ऑपरेशन ‘ऑल आऊट’ के तहत सेना ने कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़कर रख दी। इस दौरान भारी तादाद में आतंकी और उनके सरगना मारे गए। घाटी में लगभग हर बड़े नेटवर्क का सफाया कर दिया गया। सेना ने नियंत्रण रेखा से पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ पर काफी हद तक रोक लगा दी। ऐसे में आतंक के आकाओं ने अपनी रणनीति और पैटर्न को बदलते हुए जम्मू को निशाना बनाना शुरु कर दिया। 
पिछले कुछ महीने से जम्मू में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं। माना जा रहा है कि कश्मीर में मुंह की खाने के बाद आतंकियों ने नई रणनीति और पैटर्न के तहत जम्मू को नया निशाना बना लिया है। जम्मू क्षेत्र में पहाड़ी गुफाओं व जंगल का बड़ा क्षेत्र आतंकियों के छिपने के लिए काफी सुरक्षित स्थान साबित हो रहा है। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष दर्जे ने यहां अलगावादी ताकतों को सिर उठाने का मौका दिया। ये ताकतें लम्बे समय से आतंक मचा रही हैं जिसे पड़ोसी देश पाकिस्तान का खुला समर्थन हासिल है। 
दरअसल 1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने से घायल पाकिस्तान फन कुचले सांप जैसा हो गया। इसलिए उसने भारत के खिलाफ साज़िश करने की शुरुआत की और अलगावादियों को शह देना शुरू कर दिया। 1990 के दशक में आतंकवादी घाटी में अत्यधिक सक्रिय हो गए और भारत सरकार के सामने चुनौती बन कर खड़े हो गए थे। जिहाद के नाम पर भी जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया गया। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की स्थिति धारा 370 हटने के बाद बिलकुल अलग है। अब आतंकी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हमले कर रहे हैं। वे नहीं चाहते हैं कि प्रदेश में शांति हो और जम्मू-कश्मीर विकास की ओर बढ़े।
अलगाववादियों ने कश्मीर से गैर-मुसलमानों को खदेड़ा जिसकी वजह से लगभग तीन लाख हिन्दुओं ने कश्मीर छोड़ दिया था। पहले कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम लागू था जिसके अंतर्गत सेना को विशेष शक्तियां प्राप्त थी। इसमें सेना स्वयं संबंधित क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए कई निर्णय ले सकती थीं, जिसमें आतंकियों की तलाश करना और उन्हें खत्म करना था। लेकिन बाद में अफ स्पा लागू करके सेना की शक्तियां सीमित कर दी गई। परिणाम स्वरूप कश्मीरी पंडितों पर हमले बढ़ गये और उन्हें अपना घर-बार छोड़कर शरणार्थी बनना पड़ा। बांग्लादेश बनने के बाद पाकिस्तान की मंशा हमेशा यह रही कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग कर हिसाब चुकता कर दे जबकि भारत ने हमेशा ही जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानकर इसके विकास और शांति के लिए कार्य किया  है। यही वजह है कि जब भी पाकिस्तान ने विदेशी मंचों पर जम्मू-कश्मीर का मसला उठाने की कोशिश की, भारत ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया और कश्मीर से धारा 370 हटा कर जम्मू-कश्मीर को अपनी प्राथमिकता का विश्व को संदेश दिया। 
2024 के लोकसभा चुनाव के समय से आतंकी घटनाएं पुन: बढ़ी हैं, जो यह साफ  बताती हैं कि आतंकवादियों की मंशा क्या है। दरअसल आगामी समय में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं। आतंकी ताकतें चुनाव को बाधित करना चाहती हैं। पाकिस्तान समर्थित आतंकी यह नहीं चाहते कि जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण मतदान हो। धार-370 हटाए जाने के बाद सरकार गांव-गांव तक पहुंची है, कम्युनिकेशन बढ़ा है। लोगों को रोज़गार मिल रहा है। स्कूलों में छात्र लौटे हैं, देश-विरोधी नारे नहीं लग रहे, पथराव की घटनाएं नहीं हो रही। केन्द्र सरकार ने अब अलगाववादियों पर नकेल कस दी है। अब कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में फिर से बसाया जा रहा है और उन्हें नौकरी दी जा रही है। अभी इस दिशा में काम कम हुआ है, लेकिन सरकार प्रयासरत है। इस बात से आतंकी बौखलाए हुए हैं और इस प्रक्रिया को बाधित करना चाहते हैं। भारत सरकार आतंक को नेस्तनाबूद करने के लिए दृढ़ संकल्प लिए है और जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद का नामोनिशान मिटा कर रहेगी।