अधीर रंजन चौधरी के बाद - कांग्रेस पश्चिम बंगाल में चुनेगी अपना नया अध्यक्ष

पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से अधीर रंजन चौधरी के हटने के बाद उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर कयास तेज़ हो गए हैं। चौधरी ने 25 वर्ष तक लोकसभा में बहिरामपुर लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया और 2019 से 2024 के बीच लोकसभा में कांग्रेस के नेता भी रहे हैं। कांग्रेस के आंतरिक सूत्रों में गुप्त बातचीत से पता चलता है कि चौधरी स्वयं के लिए एक नये भविष्य की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के प्रति पार्टी की नरमी की आलोचना की थी। 2024 के लोकसभा चुनावों में अपना गढ़ गंवाने वाले चौधरी ने पार्टी के भीतरी फैसलों तथा पश्चिम बंगाल में आने वाले नेतृत्व परिवर्तन पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। हालांकि पार्टी ने नये प्रदेश नेतृत्व को चुनने के लिए बंगाल के लगभग दो दर्जन नेताओं से चर्चा शुरू कर दी है, परन्तु चौधरी के बाहर होने के बाद पार्टी टी.एम.सी. के साथ अपने संबंधों पर पुन: विचार करेगी। चर्चा है कि मालदा दक्षिण से सांसद ईशा खान चौधरी या दीपा दासमुंशी पश्चिम बंगाल कांग्रेस इकाई के प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो सकते हैं।
कांग्रेस द्वारा जल्द होगी अल्पसंख्यक सैल के नये अध्यक्ष की नियुक्ति
कांग्रेस में संगठनात्मक फेरबदल जल्द होने की उम्मीद है। पार्टी ए.आई.सी.सी. में नई नियुक्तियों के दौर की तलाश कर रही है। कांग्रेस में चल रही चर्चा से पता चला है कि पार्टी में अल्पसंख्यक विभाग के लिए एक नया अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा। वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं तथा कार्यकर्ताओं का दावा है कि राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी, जिन्होंने सुशायरों (कविता सत्रों) में अपने कट्टर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ रवैये के कारण मुस्लिम नौजवानों के बीच लोकप्रियता हासिल की है, परन्तु पार्टी के मामलों के लिए पूरा समय नहीं दे सके, को अवसर मिल सकता है जबकि पार्टी नेताओं का एक वर्ग चाहता है कि प्रतापगढ़ी को विभाग का पूरा कार्यभार दिया जाना चाहिए, अन्य नामों में कुंवर दानिश अलवी तथा राशिद अलवी के नाम भी शामिल हैं। 
मायावती ने भी की जनगणना की मांग 
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी और उसके मुख्य दलित वोट दूसरी पार्टियों के पाले में चले गए, ऐसे में अब बसपा सुप्रीमो मायावती मूल मामलों पर वापिस जाकर पार्टी की बहुजन रणनीति को नए सिरे से तैयार करने की कोशिश कर रही हैं। बहन जी ने अब केन्द्र सरकार से जाति आधारित जनगणना करवाने की मांग की है। हालांकि पार्टी से समक्ष चुनौती न सिर्फ ब्राह्मण, मुस्लिम तथा गैर-यादव पिछड़े वर्ग के वोट को वापिस जीतने की है (जिसमें रणनीति के कारण 2007 में पार्टी सत्ता में आई थी), अपितु लगभग 21 प्रतिशत दलित वोट को भी वापिस जीतने की है जिसमें 12 प्रतिशत जाटव हैं, जो मायावती की जाति है। इसके अतिरिक्त मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में एक ब्राह्मण विधायक को नियुक्त करने के फैसले को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) पर भी निशाना साधा। मायावती ने दावा किया कि सपा ने पी.डी.ए. (पिछड़ा, दलित तथा अल्पसंख्यक) भाईचारे को गुमराह करके लोकसभा में बड़ी संख्या में सीटें जीतने के लिए उनके वोट हासिल कर लिए, परन्तु उत्तर प्रदेश में विपक्ष का नेता नियुक्त करते समय इस वर्ग को दृष्टिविगत किया गया। 
कांग्रेस की हरियाणा इकाई में पुन: हलचल
हरियाणा में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिस कारण राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है। हरियाणा कांग्रेस में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा तथा सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा, राज्यसभा सांसद रणदीप सूरजेवाल तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह गुट के बीच मतभेद एक बार फिर उभर कर सामने आए हैं। कांग्रेस मुख्य रूप में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व पर निर्भर है, जिन्होंने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अपने बेटे तथा लोकसभा सांसद दीपेन्द्र हुड्डा के साथ ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान चलाया है। कुमारी शैलजा ने हरियाणा के शहरी मतदाताओं से जुड़ने के लिए अपनी संदेश यात्रा पर ज़ोर दिया है। शैलजा गुट ने अपनी बैठक में उन्हें मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश किया है। हालांकि कांग्रेस किसी को भी अपना मुख्यमंत्री चेहरा पेश नहीं करेगी। यात्रा के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तथा विपक्ष के नेता राहुल गांधी का संदेश प्रत्येक मतदाता तक पहुंचाया जाएगा और उन्हें गत 10 वर्षों में भाजपा के कुशासन बारे विस्तार से बताया जाएगा। (आई.पी.ए.)

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