प्रेरक प्रसंग - कालाबाज़ारी

कपिल, सुनील, शशिधर, चेतन व श्याम में गहरी मित्रता थी। वे सभी छुट्टी के दिन धर्मसभा में जाया करते थे और संत महात्माओं के प्रवचन सुना करते थे। उनकी धर्म के प्रति गहरी आस्था की सभी प्रशंसा किया करते थे। चूंकि वे न केवल धर्म के प्रति गहरी आस्था ही रखते थे अपितु धर्म के मार्ग पर जहां एक ओर स्वयं चला करते थे, वही दूसरी ओर दूसरों को भी चलने की प्रेरणा देते थे।
एक दिन श्याम अपने पिता की किराने की दुकान पर बैठा था तभी उसने देखा कि उसके पिता कालाबाजारी कर रहे हैं। एक बार तो उसे विश्वास भी नहीं हुआ। फिर उसने कुछ दिनों तक पिता की कार्यशैली पर नज़र रखी। जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि उसके पिता कालाबाजारी कर रहे है तब उसने यह बात मित्रों को बताई।
एक बार तो उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ, फिर सभी ने मिलकर अपने परिजनों से राय ली। सभी ने पुलिस से संपर्क कर कहा कि श्याम के पिता को कठोर दण्ड दिये बगैर सबक सिखाने के बहाने गिरफ्तार किया जाये और आर्थिक दंड देकर भविष्य में कालाबाजारी न करने की चेतावनी देकर जमानत पर छोड़ दिया जाये ताकि उन्हें सुधरने का मौका मिल जाये।
बच्चों और उनके अभिभावकों की बात सुनकर पुलिस ने वैसा ही किया। श्याम के पिता की दुकान कल्पना किराना स्टोर पर पुलिस ने छापा मार कर श्याम के पिता को गिरफ्तार कर लिया और फिर समझाइश कर व आर्थिक दंड देकर छोड़ दिया। उसके बाद श्याम के पिता ने कालाबाजारी बंद कर दी और ईश्वर भक्ति में लग गये।
आज उनकी ईमानदारी के चलते उनका कारोबार एक बार फिर चल पड़ा। वे कहते हैं कर्मो का फल हमें ही भोगना है तब फिर अच्छे कर्म कीजिए और भक्ति के मार्ग पर चल जीवन को स्वर्णमय बनाइये। (सुमन सागर)