मेरी दस्तार वाला पाकिस्तानी पंजाबी शायर अमानत अली

लाहौर वाला अमानत अली गिल मेरा मुंह बोला बेटा है। वह पंजाबी अध्यापक भी है और पंजाबी शायर भी। उसका काविक नाम अमानत अली मुसाफर है। इस सादी पेशकारी वाला कवि। ‘पींघां सोच दीआं साहित्यिक संस्था’ (अमृतसर) प्रत्येक माह भारत-पाक की संयुक्त शायिरी गूगल पर पेश करती है। अभी-अभी लोकार्पित हुआ ‘सोचां दी परवाज़’ नामक काव्य संग्रह ध्यान मांगता है। मुख्य पृष्ठ पर रचयिताओं की तस्वीरें हैं। अमानत अली मुसाफर (गिल) की दस्तार वाली तस्वीर सहित।
अमानत अली के माता-पिता विभाजन के समय अमृतसर से विस्थापित होकर उधर चले गए थे। वे इस तरफ के पंजाब के साथ साझ बनाएं रखता है, इधर से दस्तारें मांग कर तथा काव्य आदान-प्रदान करके, मेरी ओर से भेजी गई दस्तार सहित। हो सकता है ‘सोचां दी परवाज़’ वाली दस्तार मेरी हो। मुझे उसकी उस समय की कविता आज भी याद है। 
एह पग्ग वी ए भगवान वी ए
मेरे दिल दा खास अरमान वी ए,
चैन करार ते इज़्ज़त शोहरत
मेरी श्रद्धा सोच ते शान वी ए,
साडे मुस्लिम सिख भरप्पण दा
एक-दूजे लई सनमान वी ए,
एह यार मुसाफर रूह मेरी
मेरे जीवन दी प्रधान वी ए। 
‘सोचां दी परवाज़’ का स्वागत करते हुए मुझे एक पुरानी बात याद आ गई है। मेरे मेहरबान मित्र खुशवंत सिंह गर्मी के मौसम में अपने कसौली स्थित आवास में आकर लिखना-पढ़ना जारी रखते थे। चंडीगढ़ के लेखक तथा पत्रकार उन्हें चंडीगढ़ प्रैस क्लब में मिलना चाहते थे। मेरे कहने पर वह मान तो गए, परन्तु इस शर्त पर कि वह कसौली से चंडीगढ़ आकर बैठक से पहले किसी होटल में आराम करेंगे। होटल से क्लब लाने की ज़िम्मेदारी मेरी थी। 
मैंने अपने घर से चलने से पहले उनकी सुविधा जानने के लिए टैलीफोन किया तो वह हंस कर बोले कि कसौली वाले आवास में कोई दस्तार नहीं थी। मैं एक दस्तार लेकर गया। उन्होंने क्लब वाली बैठक में मेरी दस्तार के साथ हाज़िरी लगवाई। मुझे अपने कालम के लिए मसाला मिल गया, जिसे मैंने ‘मेरी पग्ग वाला खुशवंत सिंह’ नाम दिया। मेरी दस्तार भारत में ही नहीं इस्तेमाल की जाती, अपितु इसे पाकिस्तान वाले भी इस्तेमाल करते हैं। पंजाबी शायर अमानत अली मुसाफर तो एक उदाहरण मात्र है। मेरी दस्तार के क्या कहने। 
कुछ निर्मल सिंह भंगू बारे
आजकल ज़िला रूपनगर का निर्मल सिंह भंगू खबरों में है। उसका गत सप्ताह निधन हो गया। निधन के समय वह तथा उसकी पत्नी दोनों जेल में थे। वह पौने दो लाख करोड़ी की पर्ल ग्रुप कम्पनियों का संस्थापक था। उसने भंगू चिट फंड संस्थाओं के माध्यम से साढ़े पांच करोड़ लोगों के 45,000 करोड़ रुपये डकार लिए थे। भारत सरकार द्वारा जस्टिस लोढा समिति की जांच-पड़ताल से पता चला कि उसकी घपलेबाजी का शिकार हुए करोड़ों लोगों में से सिर्फ 21 लाख निवेशकों को बनती राशि मिली है। शेष सभी ने मिल कर एक सुरक्षा संगठन बनाया है और लगातार धरने दे रहे हैं। हासिल कुछ नहीं हो रहा। 
यह बात भी नोट करने वाली है कि निर्मल सिंह अपने बचपन में रोपड़-नंगल मार्ग पर स्थित गांव में दूध बेचने वाला था। बड़ा होकर कोलकाता गया तो वहा पीयरलैस चिट फंड कम्पनी में काम करते समय चिट फंड की जुगतों का माहिर हो गया। अंत में नियति ने ऐसा घेरा कि 2011 में उसके बेटे की दुर्घटना में मौत हो गई और सुरक्षा संगठन के धरनों ने उसे तथा उसकी पत्नी को जेल का दरवाज़ा दिखा दिया। अब जंतर-मंतर, दिल्ली में छह सितम्बर को दिए जाने वाले धरने से पहले ही उसका निधन हो गया।
 जस्टिस लोढा समिति या अन्य कोई अदालत लोगों के नुकसान की भरपाई करवा सकेगी या नहीं, यह समय ही बताएगा।
बहुविध अनुवादिका प्रकाश कौर संधू
प्रकाश कौर संधू मेरे दिल्ली समय के लेखक मित्र शिवदेव संधावालिया की बेटी है। वहां उसकी आटो वर्कशाप थी और पत्नी तथा बच्चे करनाल में रहते थे। इससे पहले वह इंडियन आर्मी में मोटर ड्राइविंग तथा मोटर मशीन इंस्ट्रकटर रह चुका था और स्वतंत्रा सैनानी होने के नाते 1942-45 में जापानियों की कैद में भी रहा। 
प्रकाश कौर की बहुविध रुचियों की नींव उसके बचपन में ही रखी गई थी। उसका मेरे साथ मुलाकात का कारण उसकी हिन्दी कविताओं एवं ़गज़लों की पुस्तक ‘यादों के मौसम’ बनी। पिछले दिनों वह मुझे ढूंढ कर यह पुस्तक भेंट करने आईं तो पता चला कि शिवदेव जब भी दिल्ली से करनाल आता तो भांति-भांति की पुस्तकों एवं पत्रिकाओं गठरी बांध कर लाता था, जिनमें से बहुत-सी हिन्दी भाषी होती थीं। 
प्रकाश कौर की शिक्षा कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की भी है और पंजाब यूनिवर्सिटी की भी। कुरुक्षेत्र ने उसे हिन्दी एवं संस्कृत सिखाई तथा चंडीगढ़ ने पंजाबी एवं अंग्रेज़ी। वह पंजाब यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी एम.ए. है और शिवदेव के कारण उर्दू भी पढ़ी है। 
पंजाबी तथा हिन्दी मूल की रचनाकारी के अतिरिक्त उसने एक दर्जन विश्व प्रसिद्ध पुस्तकों का हिन्दी एवं पंजाबी में अनुवाद किया है। दास्तोवस्की की ‘दोष ते डंन’ सहित। उनमें अल्कसांदर कुपरिन की रचना भी शामिल है। इसके अतिरिक्त आधा दर्जन पुस्कतें नर्सिंग के कारोबार से संबंधित हैं। उसकी हिन्दी व पंजाबी पर समान पकड़ है। अंग्रेज़ी तथा उर्दू भाषा के अनुवाद सहित। उसका प्रकाशक भी मेरे वाला ही है। यूनिस्टार बुक्स तथा लोकगीत वाला। उसको मिलना बहुत अच्छा लगा। 
अंतिका
(प्रकाश कौर संधू)
दिल तो रहा खामोश नज़र बोलती रही,
मस्ती के रंग ही फिज़ा में घोलती रही।
कांटों से अपना दामन उसने बचा लिया,
तितली हसीं फूलों में मगर डोलती रही।
शायद कफस से प्यार परिंदों को था बहुत,
निकले न बाहर मैं कफस को खोलती रही।
आई न मेरे हाथ में शुआए रौशनी,
मैं जुगनुयों के पंध टटोलती रही।