हरियाणा में अभी भी है राजनीतिक परिवारों का बोलबाला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब हरियाणा में चुनाव प्रचार करने जाएंगे तब सबकी नज़र इस बात पर होगी कि वह परिवारवाद को लेकर क्या बोलते हैं। यह उनका सबसे पसंदीदा मुद्दा है। वह इस पर संसद में और लाल किला की प्राचीर से भी कह चुके है कि भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा परिवारवाद है। यह बात वह विदेशों में भी बोलते रहे हैं। हरियाणा इस पर बात करने के लिए और भी खास जगह इसलिए है, क्योंकि कांग्रेस की ओर से भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेन्द्र हुड्डा कमान संभाले हुए हैं, जो एक बड़े राजनीतिक परिवार से आते हैं, तो तीसरा और चौथा मोर्चा चौधरी देवीलाल के बेटे, पोते और परपोते संभाल रहे हैं। ऐसे में मोदी को कायदे से हरियाणा में परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाना चाहिए, लेकिन क्या वह ऐसा करेंगे? यह सवाल इसलिए है क्योंकि भाजपा के 67 उम्मीदवारों की पहली सूची में एक दर्जन ऐसे उम्मीदवार हैं, जो किसी न किसी राजनीतिक परिवार के सदस्य हैं। इतना ही नहीं, इनमें कई उम्मीदवार तो ऐसे हैं, जिनके माता-पिता अब भी सक्रिय हैं और भाजपा ने उनको भी कोई न कोई पद दे रखा है यानी पिता-पुत्र या पिता-पुत्री या मां-बेटी को एक साथ समायोजित किया गया है। यह भी दिलचस्प है कि अपनी पार्टी में राजनीतिक परिवार वाले उम्मीदवार नहीं मिले तो दूसरी पार्टी से लाकर उन्हें टिकट दिया गया है। देखना दिलचस्प होगा कि ऐसे सब लोगों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद पर कितना तीखा हमला करते हैं।
अमित शाह की घटती हनक
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक सितम्बर को हरियाणा के जींद में एक रैली में शामिल होना था। प्रदेश भाजपा की ओर से आयोजित जन आशीर्वाद रैली में शाह मुख्य अतिथि थे, लेकिन एक दिन पहले उनका कार्यक्रम रद्द हो गया। सवाल है कि आखिर वह जींद की रैली में क्यों नहीं गए? जबकि एक सितम्बर को उनका कोई दूसरा कार्यक्रम भी नहीं था। बताया जा रहा है कि दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) के नेताओं और कुछ इधर-उधर के दूसरे नेताओं को भाजपा में शामिल किए जाने से वह खुश नहीं हैं। सूत्रों का कहना है कि जजपा के तीन नेताओं को भाजपा में शामिल करने की खबर मिलने के बाद शाह ने कार्यक्रम रद्द किया। बताया जा रहा है कि शाह ने कहा था कि भाजपा अपने नेताओं के दम पर चुनाव लड़ने में सक्षम है। इसलिए किसी बाहरी नेता को शामिल कराने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की पहल पर सभी नेताओं को भाजपा में शामिल कराया गया। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह रही कि अमित शाह का दौरा रद्द होने के बाद भाजपा की रैली के पोस्टर से उनकी फोटो भी हटा दी गई। प्रदेश भाजपा ने सोशल मीडिया में जो पोस्टर जारी किया उसमें भी नरेंद्र मोदी और जे.पी. नड्डा के साथ प्रदेश के नेताओं की फोटो थी, लेकिन अमित शाह की फोटो नदारद था। यह पूरा वाकया पार्टी में अमित शाह की घटती हनक का संकेत है।
भाजपा ने घाटी में उम्मीद छोड़ी
लगता है कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में सिर्फ जम्मू इलाके में चुनाव जीत कर सरकार बनाने के सपने देख रही है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब भाजपा को 25 सीटें मिली थीं और ये सभी सीटें जम्मू क्षेत्र की थीं। उसके बाद 10 साल में भाजपा ने तरह-तरह के प्रयोग किए। पहले तो वह मुफ्ती मोहम्मद सईद और फिर महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार में रही। उसके बाद पिछले छह साल से राष्ट्रपति शासन में एक तरह से भाजपा का ही राज चल रहा है। राज्य के विभाजन से लेकर परिसीमन और आरक्षण तक अनेक ऐसे काम हुए, जिनसे लगा कि भाजपा इस बार राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ेगी। उसने कश्मीर घाटी की सभी 47 सीटों के लिए उम्मीदवार तैयार किए, लेकिन ऐसा लग रहा है कि उसने कश्मीर घाटी में चुनाव जीतने की उम्मीद छोड़ दी है। इसीलिए पहले चरण में 18 सितम्बर को जिन 16 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से सिर्फ आठ सीटों पर ही भाजपा मैदान में है, वह भी बहुत अनिच्छा से। सवाल है कि अगर घाटी में 47 सीटों पर भाजपा अनिच्छा से लड़ती है तो जम्मू की 43 सीटों पर लड़ कर उसकी सरकार कैसे बनेगी? क्या भाजपा ने चुनाव से पहले ही हार मान ली है और इसलिए उप-राज्यपाल को पहले ही ज्यादा ताकत देकर परोक्ष रूप से सत्ता अपने हाथ में रखने का फैसला किया है या चुनाव बाद गठबंधन की उसकी कोई रणनीति है, जिसे अब कोई समझ नहीं है।
हरियाणा में भाजपा की स्थिति
हरियाणा में भाजपा को किस कदर अपनी ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहले तो उसने अपना मुख्यमंत्री बदला और अब नए मुख्यमंत्री का चुनाव क्षेत्र भी उसे बदलना पड़ गया। महज छह महीने मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी तीन महीने पहले करनाल सीट से उप-चुनाव लड़ कर विधानसभा के सदस्य बने थे, लेकिन अब पार्टी ने उन्हें करनाल की बजाय लाडवा से उम्मीदवार बनाया है। सवाल है कि जिन सैनी के नाम पर भाजपा को चुनाव लड़ना है, उनकी सीट आखिर क्यों बदलनी पड़ी? क्या भाजपा को लग रहा है कि सैनी चुनाव हार सकते हैं? क्या खट्टर सरकार के खिलाफ जिस सत्ता विरोधी लहर की चर्चा चल रही है, उसका नुकसान सैनी को हो सकता है? लेकिन अगर ऐसा होता तो उप-चुनाव में भी दिखता, लेकिन वहां तो सैनी आराम से चुनाव जीत गए। ऐसा लग रहा है कि भाजपा सुरक्षित खेलना चाहती है। उत्तराखंड के अनुभव से उसने यह सबक लिया है। उत्तराखंड में इसी तरह भाजपा ने विधानसभा चुनाव से तीन-चार महीने पहले तीरथ सिंह रावत को हटा कर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया था और वह विधानसभा चुनाव में हार गए थे। हारने के बाद भी उनको मुख्यमंत्री बनाया गया और वह दूसरी सीट से उप-चुनाव लड़ कर जीते। झारखंड में भी पिछली बार भाजपा के मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव हारे थे। ऐसा कुछ हरियाणा में न हो, इसलिए पार्टी सुरक्षित रास्ता अख्तियार कर रही है।
स्मृति की जगह कंगना ने ली
लोकसभा का चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी कुछ-कुछ बदली हुई सी दिख रही हैं। उनकी बातचीत में अब राहुल गांधी को लेकर पहले जैसी तल्खी नहीं है। अब उनकी जगह कंगना रनौत ने ले ली है। लोकसभा चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी की पहली बार एक लम्बी इंटरव्यू आई, जिसमें उन्होंने बहुत वस्तुनिष्ठ तरीके से राहुल गांधी की राजनीति का विश्लेषण किया है। पहली बार दिखा कि उनकी बातों में राहुल गांधी के लिए नफरत नहीं थी, लेकिन उनकी जगह ले रही कंगना रनौत ने हाल ही में अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए कई इंटरव्यू दिए तो सिर्फ नफरत का प्रदर्शन किया है। उन्होंने पहले किसानों के प्रति नफरत ज़ाहिर की और कहा कि किसान आंदोलन में दुष्कर्म हो रहे थे, लाशें लटकी हुई थीं और अगर देश में मजबूत सरकार नहीं होती तो बांग्लादेश जैसी स्थिति बन जाती। इसके बाद उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रति नफरत दिखाते हुए कहा कि जब बांग्लादेश का विभाजन हुआ तब इंदिरा गांधी देश भी बांटना चाहती थीं। उन्होंने राहुल गांधी के प्रति अपनी नफरत ज़ाहिर करते हुए एक न्यूज़ चैनल के एंकर से पूछ लिया कि आखिर राहुल में नेता विपक्ष बनने लायक किया क्या है? जब एंकर ने कांग्रेस 99 सीटों का हवाला दिया तो कंगना एंकर से ही नाराज़ हो गईं। उन्होंने जाति गणना पर भी अपनी राय दी है। पहले इस तरह की बातें स्मृति ईरानी कहा करती थीं। अब ऐसा कहने की ज़िम्मेदारी कंगना रनौत ने संभाल ली है।