श्रीलंका—बदलते हालात

श्रीलंका में आये भारी बदलाव में अनुरा कुमारा दिसानायके ने देश के नौवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की है। दिसानायके मार्क्सवादी जनता विमुक्ति पैरामुना पार्टी के नेता हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी की ओर से एक संयुक्त संगठन नैशनल पीपुल्स पावर बना कर श्रीलंका में एक ऐसी जन-पक्षीय लहर चलाई, जिसने उस समय की सरकार को पूरी तरह से हिला कर रख दिया था तथा तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ने हेतु विवश कर दिया था। वर्ष 2022 में श्रीलंका बड़े आर्थिक संकट में फंस गया था, जिससे उभरना उसके लिए कठिन हो गया था। इसी संकट को लेकर बड़ी जन-लहर उठी थी, जिसके होते राष्ट्रपति गोटाबाया के बाद रानिल विक्रमसिंघे को प्रशासन चलाने का अवसर दिया गया था, क्योंकि वह राजपक्षे परिवार के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य थे तथा प्रशासन चलाने में उन्हें बड़ा अनुभव था।
राजपक्षे परिवार ने प्रशासन में होते हुए लिट्टे को हरा दिया था, जिसके बाद उनके पक्ष में भारी जन-उभार आया था, परन्तु कुछ वर्ष के बाद देश में आर्थिक संकट बढ़ने के कारण लोग उनसे नाराज़ होकर सड़कों पर उतर आये थे। उस समय भारत ने कंगाल हुए श्रीलंका की प्रत्येक स्तर पर बड़ी सहायता की थी तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानिटर फंड से अरबों रुपये की सहायता दिलाने में भी भारत का योगदान था। श्रीलंका के पास विदेशी धन का भंडार खत्म हो चुका था। देश को तेल एवं गैस सहित अन्य कई आवश्यक वस्तुओं का आयात करने में बेहद मुश्किल आ रही थी। भारत ने उस समय उसका हाथ थामा था। पिछले दो वर्ष में रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति होते हुए देश की नियति को संवारने का यत्न ज़रूर किया था परन्तु लोगों का असन्तोष बरकरार रहा था। इसी कारण अब चुनावों में लोगों ने राजनीतिक बाज़ी पलट दी है एवं वामपंथी झुकाव रखने वाले अनुरा को प्रशासन चलाने का अवसर दिया है। श्रीलंका में बहुसंख्या सिंहली मूल के लोगों की है। उनके अतिरिक्त यहां तमिल मूल के तथा मुस्लिम समुदाय के लोग भी बसे हुए हैं। चाहे नये राष्ट्रपति पहले बड़ी सीमा तक सिंहलियों का पक्ष ही लेते रहे हैं परन्तु अब देश को सही मार्ग पर डालने के लिए उन्हें अल्पसंख्यकों का भी ध्यान रखना पड़ेगा। चाहे उनकी पार्टी का झुकाव चीन-पक्षीय रहा है परन्तु भारत के साथ भी उन्हें मेल-मिलाप तथा सहयोग बढ़ाना पड़ेगा। उनकी संतुलन वाली नीति ही श्रीलंका को पुन: मार्ग पर लाने में सहायक हो सकेगी। नये राष्ट्रपति ने भ्रष्टाचार को खत्म करने एवं देश की आर्थिकता को हर यत्न संबल देने की बात कही है। चुनावों से पहले इसी वर्ष फरवरी में वह भारत आये थे तथा उन्होंने विदेश मंत्री सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं तथा पदाधिकारियों के साथ विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श भी किया था।
पिछले सालों में भारत को अपने कई पड़ोसी देशों से तरह-तरह की चुनौतियां मिलती रही हैं। पाकिस्तान के साथ उसकी पुरानी दुश्मनी है। बांग्लादेश में हुये भारी राजनीतिक बदलाव ने भी इसके लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी की हुई है। एक छोटे पड़ोसी देश मालदीव में भी चीन-पक्षीय सरकार बनने से इसका टकराव बढ़ता दिखाई दिया था परन्तु वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़ू की भारत यात्रा के बाद काफी सीमा तक इन उलझनों को सुलझा लिया गया है। एक अन्य पड़ोसी देश म्यांमार के हालात भी भारत के लिए चिन्ताजनक बने हुए हैं। इन सभी पड़ोसी देशों से पहले की भांति सहयोग एवं भ्रातृत्व भावना के साथ चलने की ज़रूरत होगी, क्योंकि इस क्षेत्र का बड़ा एवं प्रभावशाली देश होने के कारण भारत का ऐसी नीति धारण करना एक बड़ा फज़र् भी बन जाता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द