इसरो ने दुनिया को आखिर अपनी योजनाएं क्यों बताईं ?
इसरो अगले डेढ़ दशकों में किन योजनाओं पर काम करने जा रहा है? अंतरिक्ष में कौन से मिशन लांच करने की उसकी क्या तैयारी है? जमीन पर क्या-क्या काम करेगा? उसने साल 2040 तक स्पेस मिशन का अपना कैलेंडर और अगले 15 साल तक का पूरा रोडमैप सार्वजनिक कर दिया है। अमूमन सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियां ऐसा नहीं करतीं। कुछ बरस पहले चीन ने अपनी अंतरिक्ष योजनाओं पर एक श्वेतपत्र जारी किया था। वह विस्तृत था, पर उसमें इसरो के रोडमैप सरीखा खुलापन नहीं था। फिलहाल इसरो की यह तैयारी महज डेढ़ दशक या 2040 तक की नहीं बल्कि 2047 तक की है। बेशक अगले दो दशकों में इसरो जो करने जा रहा है, वह उसने बताया पर बहुत से अघोषित कार्यक्रम भी हैं, जो इसरो इस दौरान करेगा जिनको देश और उसकी रक्षा सुरक्षा हित के नाते सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं किया जा सकता।
संसार की सभी सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियां तकनीक प्रौद्योगिकी शोध, अन्वेषण, संवर्धन तथा जन हितकारी कार्यक्रमों की आड़ में सैन्य उद्देश्यों और व्यावसायिक हितों के कार्य कर रही हैं, ऐसे में इसरो का ऐसा करना बहुत बाद में आरंभ की गई एक आवश्यक मजबूरी तथा, राष्ट्रहित में बेहद ज़रूरी कार्य है। इसरो अपने उपग्रहों को इलेक्ट्रॉनिक और भौतिक हमलों से बचाने तौर तरीकों तकनीक पर काम कर रहा है, साथ ही काउंटर-स्पेस डिफेंस से जुड़ी हुई डायरेक्टेड एनर्जी वेपन, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट प्रणालियों को विकसित करने का भी। फिलहाल बात इसरो द्वारा घोषित भविष्य के कार्यक्रमों की सामयिकता, उसके इस उद्घाटन के औचित्य तथा कार्यक्रमों के उद्देश्य और उसकी व्यापक सार्थकता तथा महत्व के बारे में की जानी चाहिये। उन सवालों के जवाब भी लाजिमी हैं कि कहीं यह अंतरिक्ष क्षेत्र में बढ़ते वैश्विक होड़ का नतीजा तो नहीं।
जिस देश की 80 प्रतिशत आबादी सरकारी अन्न पर पलती हो, उसे इस तरह के महंगे अंतरिक्षीय योजनाओं में मोटा धन व्यय करना चाहिये? यह भी कि इस तरह के व्यय और आयोजनों से भारत को वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के शोध एवं अनुप्रयोग के क्षेत्र तथा उसके बाज़ार में क्या हासिल होने वाला है? जो लक्ष्य उसने स्वयं हेतु निर्धारित किए हैं उसकी समयबद्ध सफलता की तैयारी वर्तमान में कितनी है और कृतकार्य की कितनी संभावनाएं हैं।
इसरो अगले तीन महीने में गगनयान मिशन का पहला यात्री रहित मिशन लॉन्च करेगा। इसके बाद दो रोबोटिक गगनयान जाएंगे, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से इंसान जैसा बर्ताव करने वाला ह्यूमनॉइड रोबोट व्योममित्र भेजा जाएगा। साल के आखीर में शुक्र के वातावरण का अध्ययन करने के लिए वीनस ऑर्बिटर मिशन अंतरिक्ष में जाएगा जबकि 2026 की शुरुआत में दो भारतीय एस्ट्रोनॉट्स यानी गगनॉट तीन दिन के लिए पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा करने के लिए भेजे जा सकेंगे। ये चंद्रमा की कक्षा में घूमकर यानी लूनर फ्लाईबाई करके वापस आएंगे। इसकी सफलता का आंकलन करने के बाद 2026-27 में गगनयान की दूसरी ह्यूमन फ्लाइट और 2028-29 में तीसरी ह्यूमन फ्लाइट के भेजेगा, जिसके जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजने की योजना साकार होगी।
इस बीच मार्स ऑर्बिटर मिशन भी 2026 के आखीर तक भेजा जाएगा। मिशन मंगल-तीन भारत का दूसरा अंतरग्रहीय मिशन होगा। मतलब यह कि 2029 तक इसरो तीन मानवयुक्त यान भेजेगा। इनकी सफलता के आंकलन तथा सुधार पश्चात संभव है कि आखिरी गगनयान मिशन-5 यानी ल्यूपेक्स को लांच करते करते 2030 बीत जाए। इस बीच 2028 में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का मॉड्यूल-1 अंतरिक्ष में भेजा जाएगा फिर अंतरिक्ष में पहुंचे दो यानों को आपस में जोड़ा जा सके इस प्रविधि के लिये स्वदेशी स्पेसक्त्राफ्ट डॉकिंग एक्सपेरिमेंट यानी स्पाडैक्स का परीक्षण होगा। गगनयान के आखिरी प्रक्षेपण के बाद 2031 में जब चंद्रमा पर ह्यूमनॉइड मिशन भेजा जाएगा, तब भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का कार्य प्रगति पर होगा जिसे 2035 में स्थापित कर लेने का संकल्प है। इसकी स्थापना के पश्चात 2037-38 में चंद्रमा की सतह पर भारतीय रोबोटिक ह्यूमनॉइड उतारने की योजना तैयार है।
साल 2040 में धरती से 400 किलोमीटर से ज्यादा दूर अंतरिक्ष में चंद्रमा पर मानव सहित यान भेजने, चंद्रमा की सतह पर पहला भारतीय कदम रखने और इसके बाद क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से समुद्र में लैंड कराने की अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना में इसरो प्राण प्रण से लगा हुआ है। वह अपने मिशन में कामयाब रहा तो अमेरिका, चीन और रूस के बाद ऐसा करने वाला चौथा देश बनेगा। वह 2047 से पहले रीयूजेबल रॉकेट भी बना लेना चाहता है। अंतरिक्ष, समर्थ सक्षम देशों की वैश्विक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का नया क्षेत्र है। अंतरिक्ष में प्रतिद्वंदिता लगातार बढ़ती जा रही है, इस तीव्र प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता के माहौल में उसी होड़ के अनुपात में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास भी बढ़ता जा रहा है, जबकि यह क्षेत्र खुलेपन और आपसी सहयोग का है। मौजूदा स्थिति में यहां अनिश्चितता, संदेह और आक्रामकता का माहौल है।
पिछले बरस घोषित भारतीय अंतरिक्ष नीति का उद्देश्य इस तरफ निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना और गैर-सरकारी संस्थाओं को अंतरिक्ष क्षमताएं देने के अलावा अंतरिक्ष क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करना है। सरकार द्वारा भारतीय अंतरिक्ष संघ का गठन करने के साथ ही इसरो ने इस क्षेत्र में निजी भागीदारी जमकर बढ़ाई है, तो कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय और सहयोग भी।
देश को अंतरिक्ष तकनीक के तमाम क्षेत्रों में तमाम नए उद्यमियों के आवश्यकता थी, जिससे होड़ और विविधता, शोध, बढ़े लागत घटे। आज उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण से लेकर प्रणोदन प्रौद्योगिकी तक हर क्षेत्र में निजी कंपनियां आगे आयी हैं। इसरो के इस कदम से उन्हें भविष्य की दिशा और आश्वस्ति मिली हैं, इससे और भी उद्यम इससे जुड़ेगे उन्हें अवसर प्राप्त होगा। इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है पर अंतरिक्ष के वैश्विक बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी बमुश्किल दो प्रतिशत है, निजी क्षेत्रों में उछाल आया तो 2030 तक इसको दस प्रतिशत तक पहुंचाने में सहूलित होगी। सरकार को इस क्षेत्र में बजट आवंटन बढ़ाना चाहिये और देश समाज, भविष्य में मानवता के लिये इसके आवश्यकता के देखते हुये इसमें आने वाले खर्चों पर उंगली नहीं उठाया जाना चाहिये।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर