नहीं सुधर रही देश की आर्थिक तस्वीर
केंद्र सरकार ने नए साल के पहले दिन वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) कलेक्शन का जो आंकड़ा पेश किया, उसके मुताबिक दिसम्बर में सरकार को 1.77 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला। यह एक महीने पहले यानी नवम्बर के मुकाबले पांच हज़ार करोड़ रुपये कम है। नवम्बर में सरकार को 1.82 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। नवम्बर का आंकड़ा भी उससे पहले के तीन सबसे ज्यादा राजस्व संग्रह के आंकड़े से कम था जबकि वह अक्तूबर के त्योहार वाले महीने का संग्रह था। उससे पहले जुलाई से सितम्बर के दौरान जीएसटी का औसत कलेक्शन 1.77 लाख करोड रुपये रहा था। सरकार ने बताया था कि वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितम्बर में विकास दर सिर्फ 5.4 फीसदी रही। इतना ही नहीं साल के पहले दिन यह आंकड़ा भी आया है कि कारों की बिक्री चार साल में सबसे कम रही है। कारों की बिक्री में भी एक आंकड़ा यह है कि एसयूवी का हिस्सा बढ़ कर 53 फीसदी से ज्यादा हो गया है। यानी बड़ी गाड़ियां ज्यादा बिकी हैं। कुछ समय पहले ही खबर आई थी कि छोटी गाड़ियों की बिक्री लगातार कम हो रही है। मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने कहा था कि एक समय था, जब कारों की बिक्री में 80 फीसदी हिस्सा 10 लाख रुपये से कम कीमत की गाड़ियों का होता था। अब ऐसी कारों की बिक्री कम होती जा रही है। अर्थव्यवस्था की यह रफ्तार नए साल में चिंता का विषय रहेगी।
बीरेन सिंह की माफी
भाजपा का महाबली केंद्रीय नेतृत्व आखिर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का कुछ नहीं बिगाड़ सका। उनसे इस्तीफा लेने या उन्हें हटाने की तमाम कोशिशें नाकाम हो गईं और अंत में उनकी माफी से काम चलाना पड़ा है। पिछले दस साल में यह पहला मौका है जब भाजपा के किसी नेता ने माफी मांगी है, अन्यथा बड़े-बड़े से मामले में न तो किसी भाजपा नेता ने माफी मांगी है और न इस्तीफा दिया है। अब यह तय हो गया है कि मणिपुर में हिंसा थमे या जारी रहे, लेकिन बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने रहेंगे। उन्होंने अपनी ताकत के आगे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को उसकी हैसियत दिखा दी है। वह परोक्ष रूप से भाजपा नेतृत्व को यह समझाने में सफल रहे कि अगर उन्हें हटाया जाता है तो फिर भाजपा सरकार भी नहीं रह पाएगी। बीरेन सिंह को हटाने के अभियान में शामिल लोगों ने जैसे-तैसे 19 विधायकों का समर्थन जुटाया था, लेकिन उनमें से भी कई विधायक वापिस बीरेन सिंह के खेमे में लौट गए। असल में बीरेन सिंह ने बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के अस्तित्व का मामला बना कर उसके साथ अपने को जोड़ दिया। उन्होंने ऐसी तस्वीर पेश की कि कुकी समुदाय और उससे जुड़े उग्रवादी समूहों को बाहरी मदद मिल रही है और ऐसे में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की रक्षा वह ही कर सकते हैं। इसीलिए सभी मैतेई विधायक और कुछ नगा विधायक भी उनके समर्थन में आ गए। उनके खिलाफ चले अभियान की हवा निकल गई। उसके बाद यह रास्ता निकाला गया कि वह माफी मांग ले।
पत्रकारिता खतरे में
छत्तीसगढ़ के बस्तर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या कर दी गई। वह बस्तर में एक सड़क निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट कर रहे थे। सड़क ठेकेदार ने उनकी हत्या करवाई और उनका शव अपने यहां सेप्टिक टैंक में फिंकवा दिया। इस लोमहर्षक हत्याकांड ने बस्तर में पत्रकारिता करने के खतरे को एक बार फिर रेखांकित किया है। साल 2016 में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में इन खतरों का विस्तार से ज़िक्र किया था। वैसे यह खतरा सिर्फ बस्तर तक ही सीमित न होकर देशव्यापी हो चुका है। हरियाणा में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की 22 साल पहले हत्या हुई थी, जिनकी हत्या का दोषी डेरा सिरसा प्रमुख गुरमीत राम रहीम जेल में पिछले पांच साल से उम्र कैद की सज़ा के नाम पर मौज कर रहा है। मध्य प्रदेश में सात साल पहले पत्रकार संदीप शर्मा व उत्तर प्रदेश में पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की हत्या भी रेत माफिया ने की थी। इनके अलावा बिहार के सुभाष कुमार महतो, महाराष्ट्र के शशिकांत वारिसे आदि कई नाम हैं, जिनकी हत्या उनके ड्यूटी निभाते हुए कर दी गई या जिनकी जान पर खतरा मंडरा रहा है या जिन पर अवैध कामों में लिप्त ताकतवर तत्वों ने मानहानि के मुकद्दमे लगा रखे हैं।
अव्यवस्था के लिए कौन ज़िम्मेदार?
कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के दौरान हुई अव्यवस्था का मामला उठाया और केंद्र सरकार पर हमला किया तो जवाब देने की ज़िम्मेदारी भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने उठाई। उनका मकसद सरकार और भाजपा के बड़े नेताओं को बचाना था, लेकिन इस क्रम में उन्होंने केंद्र सरकार की सभी एजेंसियों को कटघरे में खड़ा कर दिया। पवन खेड़ा के उठाए नौ सवालों के जवाब में उन्होंने एक बार नहीं कहा कि वैसा नहीं हुआ है, जैसा खेड़ा कह रहे हैं। उन्होंने हर सवाल के जवाब में किसी न किसी एजेंसी को ज़िम्मेदार बताया। मिसाल के तौर पर पवन खेड़ा ने कहा कि अंतिम संस्कार के समय सारा फोकस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर था। इसका जवाब देते हुए मालवीय ने कहा कि कवरेज का काम दूरदर्शन के ज़िम्मे था। इसी तरह खेड़ा ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह के काफिले की वजह से शव-यात्रा प्रभावित हुई। इसके जवाब में मालवीय ने कहा कि ट्रैफिक पुलिस ने इसकी व्यवस्था की थी। ऐसे ही खेड़ा ने कहा कि परिवार के लोगों के बैठने के लिए सिर्फ तीन कुर्सियां लगाई गई थीं जबकि सबको पता है कि मनमोहन सिंह की पत्नि, उनकी तीन बेटियां और परिवार के अन्य सदस्य भी हैं। इसके जवाब में भी मालवीय ने सीपीडब्ल्यूडी और पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराया। सवाल है कि दूरदर्शन, सीपीडब्ल्यूडी ट्रैफिक पुलिस और दिल्ली पुलिस क्या स्वायत्त अथवा निजी एजेंसियां हैं?
केजरीवाल का हिंदुत्व कार्ड
आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पहले भी हिंदुत्व की राजनीति करते थे। वह भाजपा की तर्ज पर भारत माता की जय के नारे लगाते थे और अपने को हनुमान भक्त बताते थे। इसी कड़ी में केजरीवाल ने दिल्ली के मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रथियों को 18 हज़ार रुपये प्रति माह देने की घोषणा कर दी है। इससे पहले मस्जिदों के इमामों को 17 हज़ार रुपया महीना मिलता है। हालांकि इमामों का कहना है कि उन्हें 17 महीने से वेतन नहीं मिला है। इस सिलसिले में इमामों का एक प्रतिनिधिमंडल पिछले दिनों केजरीवाल से मिलने पहुंचा था लेकिन उन्हाेंने मिलने से इन्कार कर दिया। दरअसल वह नहीं चाहते हैं कि इस समय इमामों के साथ तस्वीर सामने आए।