दिल्ली का चुनाव दंगल

दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा तो नहीं हुई, परन्तु फरवरी मास में चुनाव होने निश्चित हैं। पिछली बार वर्ष 2020 में यहां की विधानसभा के चुनाव हुए थे। आम आदमी पार्टी को एक बार फिर बड़ी जीत प्राप्त हुई थी। विगत 10 वर्ष से यह पार्टी दिल्ली का प्रशासन चला रही है। इससे पहले भी इसने समय-समय पर यहां शासन किया है। अन्ना हज़ारे द्वारा देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी लहर पैदा करने के बाद अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाने की घोषणा की थी। उस समय से ही इसकी व्यापक स्तर पर चर्चा होती रही है। दिल्ली वासियों ने इस पार्टी को समय-समय पर हुए चुनावों में जीत दिला कर इस पर विश्वास प्रकट किया है। इससे पहले कांग्रेस के नेतृत्व में शीला दीक्षित की बनी सरकार ने यहां आधारभूत ढांचे में बड़े बदलाव करके कांग्रेस का सिक्का मनवाया था, परन्तु उसके बाद राजनीतिक तौर पर कांग्रेस यहां पिछड़ गई थी। 
अब विगत कुछ माह से दिल्ली में सभी राजनीतिक पार्टियों की चुनाव गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं। आम आदमी पार्टी के साथ-साथ भाजपा भी अधिक सक्रिय हुई प्रतीत होती है। महाराष्ट्र तथा हरियाणा में हुए चुनावों में इसकी जीत ने इसका हौसला और बढ़ा दिया है। अब यह किसी न किसी तरह ‘आप’ के इस किले को गिराने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है। 
विगत दिवस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों का बिगुल बजाते हुए यहां 4500 करोड़ की परियोजनाओं की घोषणा की है। अशोक विहार क्षेत्र में झुग्गी-झोंपड़ी वालों को 1675 फ्लैटों की चाबियां भी सौंपी गईं। इस समय उन्होंने कड़े शब्दों में केजरीवाल तथा दिल्ली सरकार की आलोचना की।  उससे अगले ही दिन भाजपा की ओर से 29 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटें हैं। आम आदमी पार्टी ने पहले ही इन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी तथा कांग्रेस ने भी अब तक 48 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। जिस तरह इन तीनों ही पार्टियों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली रहे उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है, उससे प्रतीत होता कि आगामी दिनों में चुनावी दंगल पूरी तरह गर्मा जाएगा। आम आदमी पार्टी के लिए केन्द्र सरकार द्वारा विगत लम्बी अवधि से बड़ी मुश्किलें खड़ी की जाती रही हैं। इसके वरिष्ठ नेताओं को भिन्न-भिन्न मामलों में लम्बी अवधि तक जेलों में रखा गया था। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को शर्तों सहित अदालत से मिली ज़मानत के कारण अपनी सरकार की मंत्री आतिशी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन को लम्बी अवधि तक जेल में रहना पड़ा था। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मुनीष सिसोदिया तथा ‘आप’ के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी इसी प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ा था। नि:संदेह दिल्ली के ये चुनाव तीनों पार्टियों के लिए ही प्रतिष्ठा का सवाल बन चुके हैं। इसीलिए  उनकी गतिविधियों में भारी वृद्धि हो गई है। भाजपा कोई न कोई मुद्दा बना कर सरकार के विरुद्ध प्रतिदिन सड़कों पर उतरती रही है।
अब कांग्रेस ने भी ऐसी नीति अपनाई है। विगत दिवस पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने दिल्ली के विजय चौक से प्रदेश सरकार के विरुद्ध मार्च निकाला, जिसमें दिल्ली के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अजय माकन और दविन्द्र यादव भी शामिल हुए। ये दोनों ही पार्टियां सरकार के 10 वर्ष के शासनकाल में रही त्रुटियों को उजागर करने में लगी हुई हैं। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को जहां बचाव की नीति धारण करनी पड़ रही है, वहीं इसने इस अवधि में अपनी ओर से किए गए कार्यों को उजागर करने का भी लगातार यत्न किया है। सरकार विगत लम्बी अवधि से अपनाई गईं कल्याणकारी योजनाओं को पूरे ज़ोर-शोर से प्रचारित कर रही है। विगत दिवस घोषित दो अन्य कल्याणकारी योजनाओं का भी ‘आप’ की ओर से विवरण पेश किया जा रहा है। इन योजनाओं में संजीवनी योजना और मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना आदि शामिल हैं। ‘आप’ लोगों को यह समझा रही है कि यदि वह सत्ता में न आई तो अन्य पार्टियों की ओर से उनकी सुविधाओं में कमी की जाएगी। पार्टी द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि अन्य पार्टियों के पास केजरीवाल जैसा प्रमुख नेता नहीं है। इस पार्टी की ओर से स्वास्थ्य एवं रोज़गार के क्षेत्रों में अपनी सरकार की उपलब्धियों का ज़िक्र भी किया जा रहा है। दिल्ली प्रदेश के इन चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों से भी अधिक स्थानीय मुद्दे भारी हैं, जिन्हें लेकर ये सभी पार्टियां अपने-अपने प्रचार में व्यस्त हुई हैं। इनमें साफ-सफाई, पीने वाला पानी एवं सड़कों की स्थिति आदि मुद्दे मुख्य रूप में उभरे हैं। जहां विपक्षी पार्टियां इन्हें लेकर आलोचना कर रही हैं, वहीं सरकारी पक्ष अपनी उपलब्धियों को अधिक ज़ोर-शोर से पेश कर रहा है। इसीलिए आज देश भर की नज़रें इस चुनाव पर केन्द्रित हैं। इन चुनावों का प्रभाव आगामी मास में गुजरात और कुछ अन्य प्रदेशों के चुनावों पर भी प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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