लीकेज से कैसे रहित होंगी प्रतियोगी परीक्षाएं ?

हर वर्ष कहीं न कहीं प्रतियोगी एवं प्रवेश परीक्षा के पर्चे लीक होने की खबरे आती रही है। इसके चलते कई बार शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश प्रक्रिया में विलंब होता है। लम्बे अरसे से बेरोज़गारों की उम्र अर्हता समाप्त होने जैसी तमाम समस्याएं सामने आ रही है। बीते वर्ष नीट को लेकर पैदा हुआ विवाद अब तक का सबसे लंबा चला विवाद था। पिछले कुछ समय से प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्चालीक, धांधली और अपारदर्शिता के आरोप लगातार लगते रहे हैं। इसे लेकर छात्र आंदोलन पर उतरते, अदालतों के दरवाजे खटखटाते देखे जाते हैं। बीता वर्ष शिक्षा के मामले में सबसे अधिक इसीलिए सुर्खियों में रहा कि उस दौरान लगातार परीक्षाओं पर विवाद उठते रहे। चाक-चौबंद माने जाने वाले राज्य सेवा आयोगों की परीक्षाओं में भी पर्चालीक की घटनाएं हुईं। इंजीनियरिंग और मैडीकल कालेजों में दाखिले के लिए कराई जाने वाली प्रवेश परीक्षाओं पर गंभीर आरोप लगे। कर्मचारी चयन आयोग, पुलिस भर्ती परीक्षा, यूजीसी की पात्रता परीक्षा आदि में पर्चाफोड़ के मामले सामने आए। कई परीक्षाएं दोबारा करानी पड़ीं। कई पर्चो लीक करने वाले गिरोह पकड़े गए। उत्तर प्रदेश राज्य सेवा आयोग की परीक्षा में सामान्यीकरण के प्रावधान पर उठा विवाद के बीच बिहार राज्य लोक सेवा आयोग ने भी ऐसा ही फैसला सुना दिया, जिसे लेकर छात्र आंदोलन पर उतर आए। फिर बिहार राज्य लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में पर्चालीक के तथ्य उजागर हो गए। इसे लेकर कुछ केंद्रों पर फिर से परीक्षा कराने का फैसला किया गया। मगर छात्रों ने मांग उठा दी कि पूरी परीक्षा दोबारा कराई जाए, ताकि परीक्षा में पारदर्शिता बनी रहे। इस जायज मांग को रोकने के लिए बिहार सरकार ने छात्रों के खिलाफ दमन का रास्ता अख्तियार किया। इस तरह की घटनाओं से प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित कराने वाले संस्थानों और उनकी पूरी परीक्षा प्रक्रिया पर से युवाओं का भरोसा कमजोर हो चुका है। शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराने के मकसद से राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यानी एनटीए का गठन किया गया। दावा किया गया कि प्रवेश परीक्षाओं में होने वाली धांधली को रोका जा सकेगा। मगर अपने गठन के शुरूआती चरण से ही यह एजेंसी लगातार विवादों के घेरे में बनी हुई है।
बहरहाल बीते वर्ष नीट परीक्षा का मामला उजागर होने के बाद भारत सरकार ने सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम 2024 को अधिसूचित कर कानून को  21 जून, 2024 से लागू कर दिया है। कानून का उद्देश्य विभिन्न सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में कदाचार और अनियमितताओं के खतरे को रोकना है। इस अधिनियम के तहत सभी अपराधों को संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनीय बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत अनुचित साधनों और अपराधों का सहारा लेने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम तीन साल की कैद की सजा , जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है का प्रावधान है। इसके अलावा दस लाख रुपये तक के आर्थिक दंड का भी प्रावधान है। जुर्माने का भुगतान न करने की स्थिति में, भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के अनुसार अभियुक्त कारावास की अतिरिक्त सजा दी जा सकती है। कानून यह भी प्रावधान करता है कि जब तक भारतीय न्याय संहिता, 2023 को लागू किया नहीं किया जाता तब तक भारतीय दंड संहिता के प्रावधान लागू होंगे। इस कानून के अनुसार सेवा प्रदाता को एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाकर दंडित किया जा सकता है और परीक्षा की अनुपातिक लागत भी ऐसे सेवा प्रदाता से वसूली जाएगी। इसके अलावा सेवा प्रदाता को अगले 4 साल की अवधि तक किसी भी सार्वजनिक परीक्षा को आयोजित करने पर रोक होगा। यदि निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधन या सेवा प्रदाता फर्म के प्रभारी व्यक्ति कदाचार के दोषी हैं तो उन्हें कम से कम तीन साल की कैद की सजा होगी, जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और एक करोड़ तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
ऐसे में, जो भर्ती प्रक्रिया शुरू भी होती है, उसमें पारदर्शिता न होने के कारण लाखों युवाओं का भविष्य अंधकारमय बना रहता है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए युवा बरसों बरस मेहनत करके तैयारी करते हैं, मगर कुछ चालबाज और शातिर सेंधमारी कर उनमें अयोग्य अभ्यर्थियों को प्रवेश कराने का प्रयास करते हैं, तो योग्य युवाओं की सारी मेहनत बर्बाद चली जाती है। इसमें धन और समय की बर्बादी के साथ-साथ बहुत सारे युवाओं का पूरा जीवन ही अंधकारमय हो जाता है। परीक्षाओं के टलते रहने या देर से भर्तियां निकलने के कारण जिन युवाओं की अधिकतम आयु सीमा पार हो जाती है, उनके दर्द को कौन महसूस करेगा। यह समझ से परे है कि प्रतियोगी परीक्षाओं पर इतने विवाद के बावजूद सरकारें इनमें पारदर्शिता लाने का कोई भरोसेमंद उपाय क्यों नहीं जुटा पा रही हैं? यही नहीं जब पर्चे लीक के बाद छात्र या प्रतिभागी अपना विरोध दर्ज कराते है तो उन पर लाठी डंडे, पानी की बौछार, मारपीट इस बात का प्रमाण होता है कि जिम्मेदारी अपनी अक्षमता को छूपाने के लिए दमन पर उतारू है। अगर 21 जून, 2024 को लागू हुए कानून का शतप्रतिशत पालन नहीं होगा तो निश्चित तौर से देश में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं अविश्वास के घेरे में बरकरार रहेगी।

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