दिल्ली चुनावों की दिलचस्पी

वर्ष 1991 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा का गठन किया गया था, जिसके बाद भिन्न-भिन्न समय पर हुये विधानसभा चुनावों में राजनीतिक पार्टियों के जीतने के बाद वहां प्रदेश की सरकार बनने का सिलसिला शुरू हुआ था। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी को समाप्त हो रहा है। केन्द्रीय चुनाव आयोग द्वारा मंगलवार को दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी गई है, जिसके तहत 5 फरवरी को वहां मतदान होगा, जिसके परिणामों की घोषणा 8 फरवरी को होगी। देश की आज़ादी के बाद इस राजधानी क्षेत्र के प्रशासन में समय-समय पर बदलाव किये जाते रहे हैं। पहले यहां दिल्ली मैट्रो पुलेटन कौंसिल का गठन हुआ था। उसके बाद समय-समय पर इस संबंध में कानून बना कर प्रशासनिक बदलाव किये जाते रहे। कभी यहां कांग्रेस की तूती बोलती थी। बाद में भारतीय जनता पार्टी यहां पर भारी हो गई तथा पिछले लगभग 10 वर्ष से भी अधिक समय से नई अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी इस राजधानी क्षेत्र का प्रशासन चला रही है। चाहे इस केन्द्र शासित प्रदेश की अन्य प्रदेशों के मुकाबले में राजनीतिक शक्तियां तो सीमित हैं परन्तु देश की राजधानी होने के कारण तथा यहां प्रत्येक क्षेत्र के लोगों के बसे होने के कारण इसके चुनावों में सामान्य से अधिक दिलचस्पी बनी रहती है।
इसके नये प्रशासनिक ढांचे में सबसे अधिक समय कांग्रेस की शीला दीक्षित का शासन रहा है। वह 15 वर्ष वर्ष तक यहां की मुख्यमंत्री रहीं। उसके बाद आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल का बतौर मुख्यमंत्री साढ़े 9 वर्ष से भी अधिक का कार्यकाल रहा। भाजपा के साहिब सिंह वर्मा, मदन लाल खुराना और सुषमा स्वराज ने भी यहां के मुख्यमंत्री के पद को भोगा। इस शहर के मूलभूत ढांचे के विकास में शीला दीक्षित का अधिक योगदान रहा परन्तु इसके साथ-साथ अरविन्द केजरीवाल तथा उनकी शुरू की गईं जन-कल्याणकारी योजनाओं की भी यहां अधिक चर्चा रही है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मतदाताओं का इतना बड़ा समर्थन मिला था कि उस समय दिल्ली की 70 सीटों में से इसने 67 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया था। इसी ही तरह फरवरी 2020 में हुये चुनावों में इस पार्टी के 70 में से 62 विधायक जीते थे। इन पिछले दोनों ही चुनावों में कांग्रेस को एक सीट भी प्राप्त नहीं हुई थी। आज भी चाहे केन्द्र की ओर से अरविन्द केजरीवाल को कुछ मामलों में उलझा कर जेल भेजा गया तथा उनके स्थान पर सितम्बर 2024 से उनकी सहयोगी आतिशी मरलीना मुख्यमंत्री के रूप में प्रशासन चला रही हैं तथा इस पार्टी के नेता इन चुनावों में भी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं।
हालांकि यहां की सात लोकसभा सीटों पर वर्ष 2014 से भाजपा का कब्ज़ा रहा है, परन्तु इसके बावजूद आम आदमी पार्टी की ओर से उसे कड़ी टक्कर दिये जाने की सम्भावना है। जहां चुनावों की घोषणा से पहले ही आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी, वहीं अभी भाजपा तथा कांग्रेस की ओर से ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा करना शेष है। इस तरह अब तक ये तीनों ही मुख्य पार्टियां मैदान में हैं। चाहे बसपा नेता मायावती की ओर से भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की गई है।
‘आप’ की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि उसने अपनी चुनाव तैयारियां पूरी कर ली हैं तथा उसके सभी उम्मीदवार मैदान में उतरे हुए हैं। दिल्ली की जनता एक बार फिर अरविन्द केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने की उत्सुक है। पार्टी की रणनीति अपनी सरकार द्वारा पिछले किये हुए कार्यों के आधार पर लोगों का समर्थन लेने की है। ऐसे काम वह आगे करने के लिए भी वचनबद्धता प्रकट कर रही है। ‘आप’ नेताओं के अनुसार भाजपा आज तक मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं कर सकी तथा न ही उसके पास पेश करने के लिए कोई एजेंडा है।
पिछले चुनावों में भाजपा को सिर्फ 8 सीटों के साथ ही सब्र करना पड़ा था परन्तु वह इस बार प्रत्येक स्तर पर आम आदमी पार्टी को चुनौती देने की तैयारी कर रही है। आगामी दिनों में तीसरे पक्ष के रूप में कांग्रेस कितना सक्रिय होती है, यह देखने वाली बात होगी। आगामी दिनों में यहां राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने से देश भर के लोगों की इन चुनावों में दिलचस्पी इसलिए भी ज़रूर बढ़ेगी, क्योंकि दिल्ली को देश का दिल कहा जाता है। इसलिए चुनावों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। नि:संदेह इन चुनावों के परिणाम देश की राजनीति पर बड़ा प्रभाव डालने वाले सिद्ध होंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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