चुनाव जीतने के लिए गढ़े जाते हैं नये-नये नारे
चुनावी नारे मतदाताओं में जोश और उत्साह भरने का काम करते है। देश में किसी भी राज्य में चुनाव की रणभेरी बजते ही सियासी जुमलों और नारेबाज़ी की बाढ़ आ जाती है। चुनावी नारों की देश की राजनीति में बड़ी भूमिका रही है। इस समय महाराष्ट्र व झारखण्ड के विधानसभा चुनावों और विभिन्न राज्यों में हो रहे उप-चुनावों में नेताओं के सियासी जुमलों, नारों और बयानों ने देश की राजधानी से लेकर पंचायत तक पूरे भारत में चुनावी गर्माहट पैदा कर दी है। इस दौरान जुमले और नारे अपने परवान पर है। महाराष्ट्र व झारखण्ड के विधानसभा चुनावों में मुख्यत: राजग और ‘इंडिया’ गठबंधन में चुनाव जीतने के लिए जोर-अज़माइस हो रही है और दोनों तरफ से तरह-तरह की जुमलेबाजी और नारेबाजी गढ़ कर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के हर संभव प्रयास किये जा रहे है। यह सर्वविदित है नारे कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भरपूर जोश का संचार तो करते ही हैं, अपितु मुद्दों को चुनाव में स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाज़ी के बीच प्रचार के लिए नारे सबसे बड़े चुनावी हथियार बने हैं। चुनावी मैदान में नारों की गूंज जितनी बलवती और ऊंची होती है, राजनीतिक दलों और नेताओं का जोश उतना ही अधिक होता है। भारतीय राजनीति में नारों और जुमलों ने अच्छी खासी सुर्खियां बटोरी हैं। इस समय सबसे चर्चित नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ गूंज रहा है। हरियाणा विधानसभा चुनाव जीतने के बाद योगी के इस बहुचर्चित नारे ने जोर पकड़ लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस नारे का पहली बार इस्तेमाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा की पृष्ठभूमि में आगरा में एक रैली में किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा भी मतदाताओं में बुलंद हो रहा है। इसके जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा से योगी आदित्यनाथ के विभाजनकारी नारे और प्रधानमंत्री मोदी के एकता संदेश के बीच फैसला करने को कहा। उन्होंने कहा कि पहले आप आपस में तय कर लें कि किसका नारा अपनाना है—योगी जी का या मोदी जी का। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नारा उछाला है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 9 सीटों पर उप-चुनाव होने जा रहे हैं, जहां भाजपा और सपा में नारों का पोस्टर वार चरम पर है।
आज़ादी के बाद कांग्रेस ने नारा लगाया था ‘खरो रुपयो चांदी को, राज महात्मा गांधी को’ जो बाद में जुमला बनकर रह गया। यथार्थ में महात्मा गांधी के रामराज का सपना कभी पूरा नहीं हुआ। नारों की चर्चा के बिना चुनाव की बात अधूरी लगती है। चुनावों के दौरान गरीबी हटाओ से लेकर इंदिरा हटाओ, देश बचाओ जैसे नारे खासे चर्चित रहे हैं। देश में चुनावी मौसम में नारों की सियासत कोई नई नहीं है। 1971 में इंदिरा गांधी ने, ‘वे कहते हैं, इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ’ का नारा बुलंद किया था। यह नारा उस दौरान लोगों के सिर चढ़ कर बोला और इंदिरा गांधी अपनी पार्टी कांग्रेस को भारी बहुमत से जिताने में सफल हुई थीं। यह अलग बात है कि ‘गरीबी हटाओ’ सिर्फ नारे और जुमले तक सिमटकर रह गया और गरीबी उन्मूलन नहीं हुआ।
आज़ादी के बाद कुछ नारे बहुतायत से जनता के बीच उछाले गए, इनमें धन और धरती बंट के रहेगी, भूखी जनता चुप न रहेगी, देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन पी गई तेल, बेटा कार बनाता है मां बेकार बनाती है, देश की जनता भूखी है यह आज़ादी झूठी है, जात पर न पात पर इंदिरा जी की बात पर, आदि अनेक नारो के बाद ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ आदि आदि नारे खूब प्रचलित हुए। इसी तज़र् पर 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह नारा खूब प्रचलित हुआ जिसमें मोदी ने कहा ‘अब की बार 400 पार’। 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’ नारा खूब गूंजा। इनमें से कुछ नारे चुनाव जिताने में सफल हुए और कुछ असफल। फिर भी नारों की अपनी महत्ता है। नेताओं ने इन नारों के ज़रिये मतदाताओं को लुभाने के खूब प्रयास किये और अब भी कर रहे हैं। मतदाता भी तालियों की गड़गड़ाहट और हर्ष ध्वनि के साथ नारों का स्वागत करते हैं।