ज़रूरी है भूमि की बिगड़ती सेहत का उपचार
दुनिया के अनेक देशों की तरह भारत भी वन क्षरण, अत्याधिक कृषि गतिविधियों से भूमि की नमी घटने और उसकी उर्वरता कम होने की समस्या से जूझ रहा है। इन कारणों के चलते भारत की 30 प्रतिशत से भी ज्यादा भूमि की सेहत बिगड़ गई है। शहरीकरण और औद्योगिक विकास से कृषि भूमि कम हो रही है। वहीं उद्योग, बिजली और सिंचाई व पेयजल के लिए बड़े बांधों के अस्तित्व में आ जाने के कारण दलदली भूमि भी बढ़ रही हैं। यह समस्या मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पंजाब में सर्वाधिक है। क्षरण और भूमि के मरुस्थलीकरण से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 2.5 प्रतिशत और फसल की पैदावार में भी कमी आई है। इधर खेतों में रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और जीएम फसलों की पैदावार ने भी खेतों की सेहत बिगाड़ने का काम व्यापक स्तर में किया है।
नतीजतन जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक प्रभाव भी बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर भूमि क्षरण की समस्या के समाधान के लिए 450 अरब डॉलर का वार्षिक खर्च आएगा। यदि इसमें सुधार जल्दी नहीं किया गया तो विश्व में 3.2 अरब लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है। भारत के लिए यह समस्या इसलिए गम्भीर है, क्योंकि दुनिया की 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में रहती है, जबकि दुनिया की कुल भूमि का भारत के पास महज 2.4 प्रतिशत भू-भाग ही है। साफ है, उपजाऊ ज़मीन का बंजर होना चिंता का विषय है। यह विडंबना ही है कि भारत में आजीविका और रोज़गार का सबसे बड़ा संसाधन भूमि है। इसकी की गुणवत्ता अथवा उसकी बिगड़ती सेहत को जांचने का अब तक कोई राष्ट्रव्यापी पैमाना नहीं है जबकि देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि और प्राकृतिक संपदा से रोज़ी-रोटी जुटाती है। भूमि की उर्वरता और क्षरण को लेकर टुकड़ों में तो आकलन आते रहते हैं, लेकिन इस स्थिति की वास्तविक हालत का खुलासा करने वाला कोई एक मानचित्र देश की जनता के सामने पेश नहीं किया गया। अहमदाबाद की संस्था ‘स्पेस एप्लिकेशन सेंटर’ द्वारा किए शोध के मुताबिक राजस्थान का 21.77 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख का 12.79 और गुजरात में 12.72 प्रतिशत क्षेत्र रेगिस्तान में बदल चुका है। मध्य प्रदेश में चंबल के बीहड़ पिछले 60 साल में 45 प्रतिशत बढ़े हैं। महाराष्ट्र में विदर्भ और उत्तर-प्रदेश व मध्य प्रदेश में बुंदेलखण्ड क्षेत्र की कृषि का अनावृष्टि के कारण तेज़ी से क्षरण हो रहा है। वहीं भू-जल के बेतहाशा दोहन और अल्पवर्षा के चलते खेतों में दस सेंटीमीटर नीचे एक ऐसी कठोर परत बनती जा रही है, जो कालांतर में फसल की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करेगी।
रेगिस्तान के विस्तार की तह में अतिवृष्टि और अनावृष्टि का चक्र तो है ही 1999 के बाद से मानसून की दगाबाजी ने उपजाऊ भूमि को बंजर भूमि में बदलने का काम किया है। इन्हीं वजहों से देश के पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्र भूमिक्षरण के प्रभाव में आए जंगलों का विनाश, चरनोई की भूमि को कृषि व आवासीय भूमि में तब्दील करना और एक तरह की फसल पैदा करने के बढ़ते चलन से भूमि की सेहत बिगड़ी है। कुछ ऐसी ही वजहों के चलते बर्फीली वादियों से लेकर घने वनों वाले क्षेत्र भी फैलते रेगिस्तान की गिरफ्त में आ गए हैं। जिस हरित क्रांति के बूते पंजाब को भारत का अनाज के भंडार का दर्जा हासिल हुआ था, उसी पंजाब में आज रासायनिक खादों का बेतहाशा उपयोग करने के कारण कृषि भूमि की सेहत बिगड़ चुकी है।
कृषि के आधुनिकीकरण व यांत्रिकीकरण ने भी भूमि की सेहत को बिगाड़ने का काम किया है। इस बाबत ग्वालियर चंबल क्षेत्र में किए गए एक शोध के मुताबिक इस अंचल की भूमि में दो तरह के विकार पैदा हुए हैं। एक, कृषि भूमि की सतह में दस सेंटीमीटर नीचे एक कठोर परत बन गई है। दूसरा, भू-गर्भ में करीब एक सौ मीटर की गहराई पर पानी से भरी रहने वाली जगह रिक्त पड़ी है। क्षेत्रीय पर्यावरण में आए ये परिवर्तन भू-गर्भीय अथवा सतह पर भूकम्प जैसी हलचल की वजह भी बन सकते हैं।
इस अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा परम्ंपरागत कृषि को नकारने से हुआ। पहले हलों से खेतों की जुताई होती थी लेकिन अब हैरो, कल्टीवेटर और प्लाऊ जैसे उपकरणों से हो रही है। ये उपकरण ज़मीन को आठ से बारह सेंटीमीटर तक गहरा जोत कर भूमि की ऊपरी परत को उधेड़ कर पलट देते हैं। नतीजतन मिट्टी सूख कर शुष्क होती जा रही है और वहीं इसके नीचे की परत कठोर। यह परत अब इतनी कठोर हो गई है कि खेतों की मिट्टी का आनुपातिक प्राकृतिक जैविक समीकरण ही गड़बड़ा गया है। ज़मीन की सेहत अब प्राकृतिक कारणों की तुलना में मानव उत्सर्जित कारणों से ज्यादा बिगड़ रही है। पहले भूमि का उपयोग आवास और कृषि कार्यों के लिए होता था, लेकिन अब औद्योगीकरण, शहरीकरण, बड़े बांध और बढ़ती आबादी का दबाव भी भूमि को संकट में डाल रहे हैं। ज़मीन का खनन करके जहां उसे छलनी बनाया जा रहा है, वहीं जंगलों का विनाश करके ज़मीन को बंजर बनाए जाने का सिलसिला जारी है। ज़मीन की सतह पर ज्यादा फसल उपजाने का दबाव है तो भू-गर्भ से जल का अंधाधुंध दोहन भी भूमि पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। दरअसल अलग-अलग क्षेत्रों में भूमि की सेहत अलग-अलग कारणों से प्रभावित हो रही है, जिसकी देशव्यापी जांच अब तक नहीं हुई है। भूमि की बिगड़ती सेहत को मानचित्र पर लाना जरुरी है।
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