बांग्लादेश-अस्थिरता के दौर में

बांग्लादेश में घटनाक्रम जिस तेज़ी से आश्चर्यजनक ढंग से घटित हो रहा है, उसने जहां उसकी अस्थिरता में और वृद्धि की है, वहीं पड़ोसी देश भारत के साथ भी उसकी टकराव वाली स्थिति बनती दिखाई दे रही है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का पिछले वर्ष अगस्त में तख्तापलट कर दिया गया था। चाहे अवामी लीग पार्टी के नेतृत्व में वह निर्वाचित प्रधानमंत्री थीं परन्तु गहन योजनाबंदी के तहत जमात-ए-इस्लामी पार्टी के नेतृत्व में कट्टपंथियों ने जन-आक्रोश भड़का कर शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए विवश कर दिया था और उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी थी।
उसके बाद अस्थायी सरकार बनाई गई, जिसका मुख्य सलाहकार नोबल पुरस्कार प्राप्त कर चुके मोहम्मद यूनुस को बनाया गया था। यह सरकार देश में फैली गड़बड़ पर काबू पाने में असफल रही। फिर भी काफी हिचकिचाहट के बाद इसने 12 फरवरी को देश में चुनाव करवाने का फैसला किया परन्तु साथ ही इस अस्थायी सरकार ने देश की बड़ी पार्टी अवामी लीग पर चुनावों में हिस्सा लेने हेतु प्रतिबन्ध लगा दिया। बांग्लादेश में अब भी लगातार हिंसा की घटनाएं घटित हो रही हैं। इनमें वहां के अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से हिन्दू समुदाय के लोगों को भीड़ द्वारा निशाना बनाया जाता रहा है। शेख हसीना ने अपनी सरकार के समय सख्ती से जहां कट्टरवादी इस्लामिक तत्वों को दबाये रखा था, वहीं उन्होंने इस बात पर भी पहरा दिया था कि देश के अल्पसंख्यकों को अधिक से अधिक सुरक्षा प्रदान की जाए, परन्तु उसके बाद जो जन-आक्रोश का लावा फूटा, उसमें हिन्दू अल्पसंख्यक लोग अधिक निशाना बने। आज भी वहां लोग बेहद असुरक्षित स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दूसरी तरफ यहां अब दूसरी बड़ी पार्टी बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी का उभार बना दिखाई दे रहा है। इसकी प्रमुख खालिदा ज़िया ने लम्बी अवधि तक यहां शासन किया था। उस समय यह पार्टी जमात-ए-इस्लामी की सहयोगी थी और वर्ष 2001 से 2006 तक इन दोनों पार्टियों की संयुक्त सरकार बनी रही थी, जिसने अक्सर भारत के विरुद्ध कड़ा रवैया धारण किया था। इसी ही समय उस सरकार ने पाकिस्तान और चीन के साथ अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई थी।
इस सरकार ने इस बात को विस्तार दिया था कि 1971 में किस तरह पाकिस्तान की सेना ने लाखों की संख्या में बांग्लादेशियों का रक्त बहाया था। उसके बाद सत्ता में आई शेख हसीना की अवामी लीग की सरकार ने लगातार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने को प्राथमिकता दी। श़ेख हसीना हमेशा इस बात की शुक्रगुज़ार रही हैं कि भारत ने बांग्लादेश की आज़ादी में शेख मुजीब-उर-रहमान की सहायता करके देश को आज़ादी दिलाई थी। बांग्ला बंधू (श़ेख मुजीब-उर-रहमान) सहित उनके ज्यादातर पारिवारिक सदस्यों की हत्या के बाद श़ेख हसीना और उनकी एक बहन ही बच सकी थीं। श़ेख हसीना ने बाद में लम्बी अवधि तक बांग्लादेश की सत्ता सम्भाले रखी। उन्होंने भारत के साथ कई अहम समझौते किए। दोनों देशों में आपसी व्यापार को बड़ी सीमा तक बढ़ाया गया। कुछ समय पहले तक बांग्लादेश के साथ ज़मीनी रास्ते द्वारा बड़ी व्यापारिक हिस्सेदारी बनी रही है। उदाहरण के रूप में बंगाल के साथ लगती पैपरापोल सीमा से ही बांग्लादेश के साथ 60  प्रतिशत आपसी व्यापार हो रहा है। वर्ष 2023-24 में इस मार्ग से 30 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का आपसी व्यापार हुआ था, जिस पर अब काले बादल छाये हुए दिखाई दे रहे हैं। पिछले वर्ष श़ेख हसीना का तख्ता पलटने वाले छात्र नेता शऱीफ उस्मान हादी को विगत दिवस गोलियों से निशाना बनाये जाने के बाद एक बार फिर जगह-जगह हिंसा भड़की थी। इस दौरान मैमन सिंह में 18 दिसम्बर को एक हिन्दू बांग्लादेशी दीपू चन्द्र दास की निर्ममतापूर्वक हत्या करने के बाद उसके शव को जला दिया गया और विगत दिवस एक और हिन्दू बांग्लादेशी अमृत मंडल को भी भीड़ ने अपनी हिंसा का निशाना बनाया।
इस दौरान ही अस्थायी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया के बेटे तारिक रहमान, जो पिछले 17 वर्ष से लंदन में रह रहा था, को ढाका लौटने की इजाज़त दे दी है। उसका उसकी पार्टी द्वारा भव्य स्वागत किया गया। तारिक ने अपनी पार्टी की ओर से फरवरी में आगामी चुनाव लड़ने की घोषणा की है। दूसरी तरफ कभी उसकी पार्टी की सहयोगी रही जमात-ए-इस्लामी पार्टी ने भी चुनाव में उतरने की घोषणा की हुई है, परन्तु अवामी लीग पर चुनाव लड़ने हेतु लगाए गए प्रतिबंध के कारण इन चुनावों द्वारा बनने वाली सरकार की छवि संदेह वाली ही बनी रहेगी और देश में अस्थिरता का दौर भी जारी रह सकता है। इस समय बांग्लादेश में गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी दिखाई देती है, जिसका प्रभाव उसके पड़ोसी देश भारत पर पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि पश्चिम बंगाल की लम्बी सीमाएं बांग्लादेश के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सीमाओं को प्रभावशाली ढंग से बंद कर पाना भी आसान नहीं है। नि:संदेह भारत पर बांग्लादेश में फैली गड़बड़ का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है, जिस कारण भारत की इस देश के साथ लगती सीमा पर तनाव भी बने रहने की सम्भावना है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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