देश में बढ़ रही निजी स्कूलों की संख्या

निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या और सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर को लेकर चल रही चर्चा के बीच अहम तथ्य सामने आए हैं। विगत पांच वर्षों में देश में 24 हज़ार से ज़्यादा निजी स्कूल खुले हैं जबकि सरकारी स्कूलों की संख्या कम होकर 10 हज़ार रह गई है। इससे पता चलता है कि शिक्षा भी निजी घरानों के हाथों में जा रही है और सरकारें भी धीरे-धीरे शिक्षा के निजीकरण की ओर बढ़ रही हैं। यूडीआईएसई 2023-24 रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019-20 और 2023-24 के बीच देश में कुल 33,869 नए स्कूल खोले गए हैं। इनमें से 24,403 स्कूल निजी गैर-सहायता प्राप्त कैटेगरी में हैं। इस बीच शिक्षा मंत्रालय ने ज़ोर देकर कहा है कि इतनी बड़ी संख्या में निजी स्कूल खुलने के बावजूद सरकारी स्कूलों का नेटवर्क देश में सबसे बड़ा है। सूत्रों के अनुसार देश भर में स्कूलों की संख्या करीब 15 लाख है, जिनमें से 10 लाख 22 हज़ार से ज्यादा सरकारी, 82,400 से ज्यादा सरकारी सहायता प्राप्त और करीब 3 लाख 40 हज़ार निजी मान्यता प्राप्त स्कूल हैं, इसके अलावा 48 हज़ार से ज्यादा दूसरे स्कूल भी बताए जा रहे हैं। इन स्कूलों में एक करोड़ से ज्यादा अध्यापक करोड़ों विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं। अगर पंजाब की बात करें तो पंजाब में करीब 19,262 स्कूल हैं, जिनमें से 12,880 प्राइमरी स्कूल, 2,670 मिडिल स्कूल, 1,740 हाई स्कूल और 1,972 सीनियर सैकेंडरी स्कूल हैं, इसके अलावा 1,525 सरकारी सहायता प्राप्त और 8,500 निजी स्कूल हैं। सरकारी स्कूलों में करीब 28 लाख बच्चों को एक लाख 21 हज़ार अध्यापकों द्वारा शिक्षा दी जा रही है। दूसरी ओर एक रिपोर्ट में निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस में भारी बढ़ोतरी के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री ने संवैधानिक स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में आती है, जिसके कारण स्कूलों को खोलना, बंद करना और उन्हें तर्कसंगत बनाना संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिए निजी स्कूलों की फीस को रेगुलेट करने का काम राज्य सरकारों के नियमों और निर्देशों के अनुसार किया जाता है।
हालांकि केंद्र ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 का हवाला देते हुए कहा कि धारा-13 के तहत किसी भी तरह की कैपिटेशन फीस लेना पूरी तरह से मना है। इसके साथ ही धारा-12 (1)(ब) के तहत निजी स्कूलों में दाखिले के स्तर पर कमज़ोर वर्गों और पिछड़े समूहों के बच्चों के लिए कम से कम 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना अनिवार्य है ताकि उन्हें मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दी जा सके। सरकार ने दावा किया है कि सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने और अच्छी शिक्षा देने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं। ‘समग्र शिक्षा’ अभियान के तहत राज्यों को नए स्कूल खोलने, स्कूलों को अपग्रेड करने, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय और नेताजी सुभाष चंद्र बोस आवासीय विद्यालय चलाने के लिए वित्तीय सहायता दी जा रही है। इसके अलावा प्रधानमंत्री स्कूल फार राइजिंग इंडिया योजना के तहत देश भर में 14,500 से ज़्यादा स्कूलों को ‘एग्ज़ेम्प्लर स्कूल’ के तौर पर विकसित किया जा रहा है। इन स्कूलों को ‘चैलेंज मोड’ के ज़रिए चुना जा रहा है। इस योजना का मकसद विद्यार्थियों के सीखने के नतीजों में सुधार लाना है, जिसके लिए स्मार्ट क्लास रूम, साइंस लैब, लाइब्रेरियां और आईसीटी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, परन्तु शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है और शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में बच्चों को गुणात्मक शिक्षा देने में विफल हो रहा है। 
 -मो. 98148-22922

#देश में बढ़ रही निजी स्कूलों की संख्या