हांसी बना हरियाणा का 23वां ज़िला, डबवाली रह गया वंचित
हरियाणा में हांसी को जहां प्रदेश का 23वां जिला बना दिया गया है, वहीं डबवाली जिला बनने से वंचित रह गया है। वैसे डबवाली, हांसी, गोहाना, असंध, नारायणगढ़, पिहोवा, मानेसर, पटौदी, बरवाला व सफीदों सहित करीब एक दर्जन शहर व इलाके जिला बनने के दावेदार थे, लेकिन डबवाली और हांसी की दावेदारी सबसे ज्यादा प्रबल मानी जाती थी। प्रदेश सरकार डबवाली और हांसी को पहले ही पुलिस जिला बना चुकी थी और भाजपा ने अपनी पार्टी की संगठनात्मक इकाई के रूप में भी डबवाली व हांसी को अलग से संगठनात्मक जिला बनाया हुआ है। हांसी के मुकाबले डबवाली की दावेदारी इसलिए भी ज्यादा मजबूत मानी जाती थी क्योंकि डबवाली-सिरसा जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर हैं और डबवाली इलाके के अनेक गांव तेजाखेड़ा, आसाखेड़ा, भारुखेड़ा व चौटाला इत्यादि जिला मुख्यालय सिरसा से औसतन 85 से 90 किलोमीटर दूर हैं। डबवाली जिला बनने के अन्य सभी जरूरी मापदंड भी पूरे करता है और तीन राज्यों व चार जिलों के बीच स्थित होने के कारण सुरक्षा कारणों से भी जिला बनाए जाना बेहद जरूरी समझा जा रहा था। हरियाणा का यह एकमात्र ऐसा इलाका है जो पाकिस्तान सीमा से सबसे नजदीक है।
तीन राज्यों व चार जिलों से लगती हैं सीमाएं
डबवाली उपमंडल के एक तरफ जहां हरियाणा का सिरसा जिला लगता है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला और पंजाब के मुक्तसर व बठिंडा जिले डबवाली के बिल्कुल साथ सटे हुए हैं। दूसरी तरफ हांसी नगर परिषद की सीमा और हिसार नगर निगम की सीमाएं बिल्कुल पास-पास हैं और हांसी की हिसार जिला मुख्यालय से दूरी मात्र 25 किलोमीटर है। इस सबके बावजूद हांसी के लोग व राजनेता भाग्यशाली रहे और उनकी पैरवी से हांसी प्रदेश का 23वां जिला बन गया है। दूसरी तरफ डबवाली जिला बनते-बनते रह गया। डबवाली को जिला बनाने की मांग वैसे तो समय-समय पर सभी राजनीतिक दलों के लोग उठाते रहे हैं और अक्सर विधानसभा में भी सुनाई देती रही है। पिछली विधानसभा में कांग्रेस विधायक अमित सिहाग ने भी सदन में डबवाली को जिला बनाने की मांग कई बार उठाई थी।
विधानसभा में फिर उठी मांग
इस बार हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान डबवाली से इनेलो विधायक आदित्य देवीलाल ने डबवाली को जिला बनाने की मांग फिर से दोहराते हुए सरकार से सवाल भी किया कि आखिर जिला बनाने के लिए ऐसे कौन से मापदंड हैं जो हांसी पूरे करता था और डबवाली उन मापदंडों पर खरा नहीं उतर पाया। विधानसभा में गोहाना और असंध को भी जिला बनाए जाने की मांग सुनाई दी थी। इसी 31 दिसम्बर तक नए जिले बनाए जा सकते हैं। उसके बाद जनवरी 2026 से देशभर में नई जनगणना का कार्य शुरू हो जाएगा और अगले दो सालों के दौरान नए जिले, नए उपमंडल, तहसील, ब्लॉक व उपतहसील नहीं बनाए जा सकेंगे। उसके बाद 2028 में ही कोई नया जिला बनाए जाने की उम्मीद की जा सकती है। एक तरफ जहां हरियाणा के सहकारिता मंत्री और गोहाना से विधायक डॉ. अरविंद शर्मा व बड़ौदा से कांग्रेस विधायक इंदूराज नरवाल ने गोहाना को जिला बनाए जाने की बात रखी, वहीं असंध के विधायक योगेंद्र राणा ने विधानसभा में असंध को जिला बनाए जाने की मांग की।
औंधे मुंह गिरा अविश्वास प्रस्ताव
हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस पार्टी प्रदेश की सत्तारूढ़ नायब सिंह सैनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी, लेकिन कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव न सिर्फ औंधे मुंह गिरा बल्कि कांग्रेस की गुटबाजी और अंदरूनी बिखराव को भी उजागर कर गया। कांग्रेस की तरफ से जो अविश्वास प्रस्ताव दिया गया था, उस पर कांग्रेस के सभी विधायकों द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए गए थे या यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने सभी विधायकों के उस पर हस्ताक्षर नहीं करवाए थे। उस अविश्वास प्रस्ताव पर नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के भी हस्ताक्षर नहीं थे। यह बात लगातार सदन में उठती रही और सत्ता पक्ष के विधायक इसको लेकर निरंतर कांग्रेस पर तंज कसते और राजनीतिक हमले करते रहे, जिसके चलते कांग्रेस को आक्रामक मुद्रा की बजाय बचाव की मुद्रा में आना पड़ा। इतना ही नहीं, अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद जब इस प्रस्ताव को लेकर वोटिंग करवाई जा सकती थी, उससे पहले ही कांग्रेस विधायक सदन से वॉकआउट कर गए और विपक्ष की गैर मौजूदगी में कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिर गया।
क्यों लाए अविश्वास प्रस्ताव?
इस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर वरिष्ठ पत्रकार, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और बुद्धिजीवी वर्ग बार-बार यह चर्चा कर रहा था कि आखिर यह अविश्वास प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा लाया ही क्यों गया। हरियाणा विधानसभा में भाजपा के पास अपने 48 विधायक हैं और 3 निर्दलीय विधायकों का भी भाजपा को समर्थन हासिल होने के चलते कुल 51 विधायकों का सर्मथन हासिल है। प्रदेश में दूसरी बार नायब सरकार बने करीब एक साल हुआ है और इस एक साल के दौरान न तो किसी भाजपा विधायक ने और न ही किसी निर्दलीय विधायक ने सरकार के प्रति कोई नाराजगी जताई है। दूसरी तरफ विपक्ष में कांग्रेस के पास 37 विधायक हैं और इनेलो के पास 2 विधायक हैं। सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव सदन में लाने से पहले कांग्रेस ने न तो इनेलो विधायकों को भरोसे में लिया और न ही किसी निर्दलीय विधायक को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया। विपक्ष में आपसी कोई फलोर कोर्डिनेशन भी नहीं था। सदन में यह साफ नजर आ रहा था कि जहां सत्ता पक्ष पूरी तरह से एकजुट था वहीं स्वयं कांग्रेस पार्टी में भी एकजुटता का अभाव था। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव का जो हश्र होना था, वही हुआ और वोटिंग का सामना किए बगैर ही कांग्रेस विधायक सदन से वॉकआउट कर गए और सत्तापक्ष के लिए मैदान खुला छोड़ दिया गया।
हावी रही सरकार
विधानसभा का शीतकालीन सत्र चाहे बेहद छोटा था और मात्र तीन दिन ही चला लेकिन इस सत्र में सरकार अपना मनचाहा एजेंडा पास करवाने और विपक्ष को निरंतर रक्षात्मक रवैया अपनाने के लिए मजबूर करने में सफल रही। सत्र के पहले दिन श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस बारे चर्चा करवा के सरकार ने प्रदेश में इस संबंध में आयोजित कार्यक्रमों का ब्योरा दिया और एक प्रस्ताव पारित किया गया। वहीं दूसरे दिन वंदे मातरम पर करवाई चर्चा के दौरान भी सरकार ने घुमा-फिरा कर कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया। जब मुख्यमंत्री ने वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किए तो कांग्रेस विधायकों ने स्पीकर के आसन के सामने आकर न सिर्फ नारेबाजी शुरू की बल्कि जमकर हंगामा किया। इसी हंगामे के चलते स्पीकर हरविंद्र कल्याण ने पहले कांग्रेस विधायकों को चेतावनी दी और फिर 9 विधायकों को नेम करके मार्शलों के जरिए सदन से बाहर निकलवा दिया। जिसके चलते सदन में काफी हंगामा हुआ और मार्शलों को बल प्रयोग करना पड़ा। इन 9 विधायकों को सदन से बाहर निकालने के बाद नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा और मुख्यमंत्री नायब सैनी ने स्पीकर से इन विधायकों को वापस बुलाए जाने की मांग की और मामले को किसी तरह से शांत किया गया।
इसी तरह सत्र के अंतिम दिन 22 दिसम्बर को सत्तापक्ष के विधायक रामकुमार कश्यप द्वारा चुनाव सुधारों पर चर्चा के लिए एक प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव पर भी कांग्रेस विधायकों ने ऐतराज किया और सदन से वॉकआउट भी किया। कांग्रेस के इस वॉकआउट से नाराज होकर सत्तापक्ष द्वारा कांगे्रस के खिलाफ एक निंदा प्रस्ताव भी लाया गया। तीन दिनों में 23 घंटे चले शीतकालीन सत्र के दौरान 16 विधेयकों को पारित किया गया। कुल मिलाकर हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र जहां खट्टे-मीठे अनुभव छोड़ गया, वहीं सरकार के चक्रव्यूह में फंसकर विपक्षी दल सरकार को घेर नहीं पाए।
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