बांग्लादेश-बिगड़ते हालात

भारत के लिए बहुत चिंता की बात है कि बांग्लादेश में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। वहां के भारत विरोधी कई इस्लामिक संगठनों ने अपना ज़हरीला प्रचार और भी तेज़ कर दिया है। विगत दिनों एक विद्यार्थी नेता उस्मान हादी की कुछ नकाबपोशों द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद वहां के हालात और भी खराब हो गए हैं। उस्मान हादी पिछले वर्ष शेख हसीना के प्रशासन विरुद्ध फैली गड़बड़ का नेतृत्व करने वाला बड़ा नेता माना जाता था और वह आंदोलन के दौरान इन्कलाब मंच का प्रवक्ता भी था। आगामी वर्ष फरवरी माह में वहां होने वाले चुनावों के लिए प्रसिद्ध उम्मीदवार नेता था। उसकी हत्या के बाद फैली हिंसा के चलते ही बांग्लादेश के शहर खुलना में विद्यार्थी आंदोलन के एक और नेता मुतालिब सिकदर जो कि नई नैशनल सिटीज़न पार्टी का नेता था, की भी बंदूकधारियों द्वारा हत्या कर दी गई है।
शेख हसीना के देश छोड़कर जाने के बाद भड़के समूहों द्वारा जिनमें इस्लामिक संगठन विद्यार्थी शामिल हैं, ने अस्थाई तौर पर नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को सरकार का काम चलाऊ प्रमुख बना दिया था। मोहम्मद यूनुस ने इस गड़बड़ दौरान मिले अधिकारों का प्रयोग तो क्या करना था बल्कि उसके प्रशासन में एक तरह से कट्टर संगठनों को खुली छूट दे दी गई, जिस कारण पिछले 16 माह से अल्पसंख्यक हिन्दुओं को विशेष तौर पर निशाना बनाया जाता रहा है। इस पूरे समय में अल्पसंख्यक समुदाय वहां बुरी तरह सहमे हुए हैं। 1971 में बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद वहां 18 प्रतिशत के लगभग हिन्दू भाईचारे के लोग रह रहे थे, जिनकी संख्या अब लगभग 8 प्रतिशत ही रह गई है। यदि यह सिलसिला इसी प्रकार चलता रहा तो यहां भी अल्पसंख्यकों का हश्र पाकिस्तान जैसा ही होगा। पिछले दिनों एक हिन्दू युवक दीपू चन्द्र दास को हिंसा का निशाना बनाया और बाद में उसके शव को जला दिया गया था। इसके बाद भारत ने कड़ी आपत्ति जताई और हालात को देखते हुए चटगांव में अपनी वीज़ा सेवाएं भी रोक दी हैं। ऐसे हालात में वहां शांतमयी चुनाव होने की सम्भावना पर भी प्रश्न-चिन्ह लगा दिखाई देता है। 
विगत समय में बांग्लादेश में पाकिस्तान तथा चीन अधिक सक्रिय दिखाई दिए हैं। कई इस्लामिक संगठनों की यह नीयत भी है कि वहां चुनाव होने ही न दिए जाएं। बड़ी पार्टी अवामी लीग को इन चुनावों में भाग लेने से पहले ही रोक दिया गया है और दूसरी बड़ी पार्टी बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी को भी जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। नि:संदेह यह इतिहास को दोहराने के समान है। 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान आज़ाद हुआ था तो पाकिस्तानी सेना ने वहां आज़ादी के लिए संघर्ष करते लाखों व्यक्तियों को मार दिया था। ऐसे समय में भारत ही बांग्लादेश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले लोगों के साथ खड़ा हुआ था, जिस कारण उसे आज़ादी मिली थी। 
पिछले दिनों इन इस्लामिक संगठनों द्वारा पाकिस्तान तथा चीन के इशारे पर यह भी धमकी दी गई थी कि भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र पर कब्ज़ा करके उत्तर-पूर्व राज्यों को इससे अलग कर दिया जाएगा। बांग्लादेश की भारत के  साथ सीमा लगभग 4 हज़ार किलोमीटर लगती है, जहां लगातार शरणार्थियों का, पशुओं का तथा नशों का आना-जाना बना रहता है। ऐसी धमकियों के दृष्टिगत भारत को बेहद सचेत होने की ज़रूरत होगी, क्योंकि पैदा हुए ये हालात जल्द सुधरने वाले नहीं प्रतीत होते। इसलिए भारत के लिए एक और बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। नि:संदेह भारत के पड़ोस में पैदा हो रहे ये हालात चिन्ता का विषय हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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