संसद में वायु प्रदूषण पर गम्भीर चर्चा होनी चाहिए थी
अगर आप दिल्ली के ज़हरीले वायु प्रदूषण से बचने के लिए देहरादून जाने की योजना बना रहे हैं, तो दो बार सोच लीजिये। अब उत्तराखंड की राजधानी की वायु गुणवत्ता भी चिंताजनक है। देहरादून का भी एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) लगभग 300 हो गया है। अगले कुछ दिनों के दौरान घने कोहरे की वजह से स्थिति बद से बदतर होने का अनुमान मौसम वैज्ञानिकों को है। दरअसल बात सिर्फ दिल्ली या देहरादून की ही नहीं है, देश के जिन क्षेत्रों में एक्यूआई बर्दाश्त की हदों में रहता था, वहां भी हवा का मिज़ाज अच्छा नहीं है। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि दैनिक अख़बार कोहरे के कारण हो रही दुर्घटनाओं की खबरों से भरे हुए हैं। यमुना एक्सप्रेस वे पर तो कुछ दिन पहले शून्य दृश्यता की वजह से 19 वाहन आपस में टकराये, भीषण आग लगी और 16 व्यक्तियों की इस दुर्घटना मौत हो गई।
संक्षेप में बात इतनी सी है कि ‘फॉग’ (कोहरा) व ‘स्मोग’ (धुंधभरी ज़हरीली हवा) देश के अधिकतर हिस्से पर छाया हुआ है और जीवन को अस्त-व्यस्त किये हुए है। ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट-2025’ के अनुसार भारत में पीएम 2.5 (खराब या ज़हरीले वायु प्रदूषण) और घरेलू प्रदूषण के कारण सालाना 20 लाख से अधिक समय-पूर्व मौतें होती हैं, जोकि भारत में कोविड-19 से भी घातक है। चिंताजनक एक्यूआई की वजह से हृदय रोग, स्ट्रोक्स, श्वास संबंधी बीमारियां और फेफड़ों के कैंसर में भयावह वृद्धि हो रही है यानी एक्यूआई जब 300-400 या उससे ऊपर हो जाता है, जैसा कि इस समय दिल्ली के लक्ष्मी नगर, आनंद विहार आदि क्षेत्रों में है, तो हर किसी को प्रभावित करने लगता है, लेकिन गरीबों पर इसका अत्यधिक कुप्रभाव पड़ता है।
वायु प्रदूषण कम करने के लिए अक्सर सुझाव दिया जाता है कि चीन का अनुसरण किया जाना चाहिए। यह सही है कि चीन ने शहरी वायु प्रदूषण पर ज़बरदस्त नियंत्रण स्थापित किया है, उसकी कुछ योजनाएं अध्ययन योग्य भी हैं, लेकिन एक तानाशाह सरकार वह परिवर्तन लागू कर सकती है, जो लोकतंत्र नहीं कर सकता और साथ ही भारत चीन जितना पैसा खर्च करने की स्थिति में भी नहीं है। इसलिए बीजिंग नई दिल्ली के लिए मॉडल नहीं हो सकता। हमें अपने ही मॉडल तलाश करने होंगे। इसलिए संसद में इस विषय पर चर्चा होनी ज़रूरी थी ताकि कुछ अच्छे सुझाव सामने आते, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे जन-प्रतिनिधियों ने सोच लिया है कि वायु प्रदूषण का कोई हल नहीं है, यह मौसमी समस्या है। अत: वह गैर-ज़रूरी मुद्दों पर बहस में संसद का शीतकालीन सत्र का समय बर्बाद करते रहे, जिसकी अवधि मात्र 1 से 19 दिसम्बर, 2025 तक रही। ज्ञात रहे कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का समाधान रॉकेट साइंस नहीं है, बस ज़रूरत प्रशासनिक इच्छा-शक्ति की है।बहरहाल भारत में स्मोग की समस्या इतनी कड़वी सच्चाई है कि इसके अस्तित्व को स्थापित करने के लिए आपको लोकसभा में बहस की आवश्यकता नहीं है। यह तो स्पेस से भी दिखायी देती है। इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस विषय पर लोकसभा में जो बहस 18 दिसम्बर, 2025 को होनी थी, जिसकी लम्बे समय से प्रतीक्षा थी, वह हुई ही नहीं। दरअसल, हमें बहस नहीं, समाधान चाहिए ताकि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद, देहरादून, छोटे शहर, बड़े शहर, गांव व कस्बे ज़हरीली हवा से घुटकर मरने से बच जाएं। सेंटर फार रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर का अनुमान है कि अकेले दिल्ली में 2023 में वायु प्रदूषण के कारण 17,200 व्यक्तियों की जानें गई थीं। कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण हर साल 4.9 लाख स्वस्थ लोगों को बीमार कर देता है। इसलिए ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट-2025’ का यह डाटा सही प्रतीत होता है कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष 20 लाख से अधिक लोग अपनी मौत से पहले ही मर जाते हैं। लम्बे समय तक यह बात दोहरायी जाती रही है कि ज़हरीली हवा विकास का दुष्प्रभाव है।
दिल्ली से दो दशक पहले बीजिंग के सिर पर प्रदूषित राजधानी का ताज था और ज़हरीली हवा हर साल 20 लाख चीनियों की जान ले लेती थी। ये सब बातें सच हैं। लेकिन अमरीका, इंग्लैंड, चीन व अन्य देशों ने दिखाया है कि वायु प्रदूषण का होना लाज़िमी नहीं है। उसे नियंत्रित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ दिन पहले ही दुनिया के सबसे गरीब मुल्कों में से एक इथोपिया में थे, जिसकी राजधानी अदीस अबाबा की आबोहवा इतनी स्वच्छ है कि दमे का मरीज़ भी खुलकर सांस ले सकता है व सीधा नल या तालाब से पानी पी सकता है। अगर बीजिंग में नीला आसमान दिखायी दे सकता है तो दिल्ली में क्यों नहीं? तानाशाही बनाम लोकतंत्र का बहाना नहीं दिया जा सकता; क्योंकि लंदन ने शत-प्रतिशत लोकतंत्र के साथ अपनी हवा को 70 प्रतिशत स्वच्छ कर दिया है। हां, लोकतंत्र को अपने समाधान खुद तलाश करने होते हैं जोकि तानाशाही से अलग होते हैं। किसी भी समस्या का समाधान उसकी गंभीरता को समझने के बाद ही निकाला जा सकता है, जिसके लिए ठोस व विश्वसनीय डाटा की आवश्यकता हो सकती है। डाटा में हाथ की सफाई दिखाने से हेडलाइंस तो हासिल की जा सकती हैं, लेकिन ज़मीनी स्थिति को नहीं बदला जा सकता।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



