बांग्लादेश की नई चुनौती

वर्ष 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश के रूप में अपना अस्तित्व स्थापित करके उसने बंगबंधू श़ेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में एक नई अंगड़ाई भरी थी। मुजीबुर उस समय लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने इस नए देश को लोकतांत्रिक मार्ग पर लाने का प्रण किया था। भारत ने इसकी आज़ादी में अपना बड़ा योगदान डाला था। इसके लिए मुजीबुर रहमान भारत के धन्यवादी भी थे और आगामी समय में भारत के साथ मेल-मिलाप और मित्रता के संबंध बनाए रखने के भी इच्छुक थे, परन्तु कुछ सैन्य प्रमुखों द्वारा उनकी और उनके परिवार की निर्मम हत्या के बाद इस देश का तख्ता एकाएक पलट गया। उस समय विदेश में होने के कारण मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना और उनकी बहन बच गई थीं। इसके बाद लम्बा समय वहां राजनीतिक अस्थिरता भी बनी रही। इस्लामिक विचारधारा की समर्थक कहलाती पार्टियों का वहां शासन भी रहा परन्तु बाद में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग सत्ता में आ गई। वह बड़ी ही दृढ़ इच्छा-शक्ति वाली महिला हैं।
उन्होंने अपने पिता की अवामी लीग जिसने देश को स्वतंत्र करवाने में अहम भूमिका निभाई थी, को  मज़बूत करते हुए लोकतांत्रिक ढंग से देश का शासन सम्भाला और लगातार चुनाव जीत कर तीन कार्यकाल तक शासन चलाया। उन्होंने देश की कट्टर इस्लामिक पार्टियों का भी कड़ा मुकाबला किया और भारत के साथ भी अपने मज़बूत संबंध बनाए रखे। श़ेख हसीना के कार्यकाल में आर्थिक पक्ष से बांग्लादेश मज़बूत होना शुरू हो गया था, परन्तु इसी दौरान कट्टर इस्लामिक पार्टियों ने पाकिस्तान और चीन की सहायता से वहां ज़ोर पकड़ लिया। भारी संख्या में विद्यार्थी संगठनों ने उनके खिलाफ विद्रोह का ध्वज उठा लिया और पिछले वर्ष 2024 के विद्यार्थी आन्दोलन के कारण फरवरी महीने में श़ेख हसीना को देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। उन्होंने भारत में शरण ले ली। पैदा हुए गड़बड़ी वाले हालात में नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया परन्तु यूनुस पैदा हुई गड़बड़ वाली स्थिति को सम्भालने में असमर्थ रहे, और आज भी वहां गड़बड़ वाले हालात बने हुए हैं। अंतरिम सरकार द्वारा बड़ी हिचकिचाहट के बाद आगामी वर्ष फरवरी महीने में वहां चुनाव करवाने की घोषणा की गई परन्तु अवामी लीग पार्टी को इन चुनावों में भाग लेने से रोकने के लिए निर्देश जारी कर दिए गए।
अवामी लीग पार्टी का देश में बड़ा आधार रहा है। उसकी शमूलियत के बिना किसी भी हालात में करवाए गए चुनावों को जहां उचित नहीं ठहराया जा सकेगा, वहीं ऐसे चुनावों में कट्टरपंथी इस्लामिक तत्वों के हावी रहने के स्पष्ट संकेत भी मिलते हैं। चल रहे ऐसे अस्थिर समय में विगत दिवस हुई गड़बड़ के दौरान बड़े विद्यार्थी नेता उसमान हादी जिसने 2024 के आन्दोलन में अहम भूमिका निभाई थी, की नकाबपोशों द्वारा गोलियां मार कर हत्या कर दी गई, इसके बाद हालात फिर पूरी तरह तनावपूर्ण बन गए हैं। हादी विद्यार्थी आन्दोलन का प्रवक्ता था और भारत के विरुद्ध लगातार आग उगलने के कारण कट्टरपंथियों में लोकप्रिय था। उसकी मौत के बाद एक बार फिर यह देश हिंसा की लपटों में घिर चुका है। विगत दिवस भड़की भीड़ द्वारा तीन समाचार पत्र प्रोथोम आलो, द डेली स्टार और न्यू ऐज के कार्यालयों को इसलिए आग लगा दी गई, क्योंकि उनके बारे में यह प्रभाव था कि वह श़ेख हसीना का दम भरते हैं। एक और शहर मैमन सिंह में एक हिन्दू युवक दीपू चंद्र दास पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर उसे पीट-पीट कर मार दिया गया और फिर उसके शव को जला दिया गया।
इस समय वहां की यूनुस सरकार पूरी तरह बेबस हुई दिखाई दे रही है और वहां फरवरी में होने वाले चुनावों संबंधी भी अनिश्चितता बनती दिखाई दे रही है। इस्लामिक संगठनों द्वारा भारत के विरुद्ध प्रचार और भी तीव्र कर दिया गया है, जिससे भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है। पड़ोसी देश में पैदा हुए ऐसे हालात का किसी न किसी रूप में भारत पर प्रभाव पड़ता रहेगा, जो भारत के लिए हमेशा एक चुनौती वाली स्थिति होगी। पहले ही अनेक चुनौतियों के सिलसिले में यह एक और नई कड़ी जुड़ जाएगी, जिसके लिए भारत को आगामी समय में प्रत्येक पक्ष से सुचेत रहने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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