देश के चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पर संकट ! 

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतवर्ष में दुनिया की सबसे जटिल समझी जाने वाली चुनावी प्रक्रिया को अपनाने व इसे पूरा कराने को लेकर जिस केंद्रीय चुनाव आयोग की पीठ पूरी दुनिया थपथपाया करती थी व दुनिया के विभिन्न देशों के संसदीय प्रतिनिधिमंडल व चुनाव विशेषज्ञ जिस भारतीय चुनाव संचालन को देखने व समझने के लिये अब भी भारत आते रहते हैं वही चुनाव व चुनाव आयोग इन दिनों विपक्षी दलों के अति गंभीर आरोपों से जूझ रहा है। चुनाव आयोग व इस तरह के कई अन्य केंद्रीय संस्थानों पर सत्ता का पक्षपात करने के आरोप तो पहले भी लगते रहे हैं, परन्तु वर्तमानों चुनाव आयोग जिस तरह सत्ता को फायदा पहुंचाने वाले नए-नए चुनावी नियम बना रहा है, विपक्ष की प्रमाण सहित दी जाने वाली शिकयतों की अनसुनी कर रहा है, सत्ता द्वारा चुनाव आचार संहिता की कधित धज्जियां उड़ाने के बावजूद आंखें मूंदे बैठा रहता है और अब एसआईआर के बहाने कथित तौर पर जहां करोड़ों फर्जी मतों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है वहीं संभावित रूप से विपक्ष की ओर जाने वाले मतों को चिन्हित कर उन्हें किसी न किसी बहाने से मतदाता सूची से हटाने का काम किया जा रहा है यानी स्पष्ट रूप से लोकतंत्र में लोगों के मताधिकार पर ‘डाका’ डाला जा रहा है।
वैसे तो पूरा विपक्ष ही चुनाव आयोग को केवल संदेह नहीं बल्कि सत्ता से मिल कर संविधान के साथ विश्वासघात किये जाने की दृष्टि से देख रहा है। लोकसभा व राज्यसभा के सर्वोच्च सदनों में चुनाव आयोग को निशाना बनाया जा रहा है, परन्तु नेता विपक्ष राहुल गांधी ने तो चुनाव आयोग द्वारा कथित तौर पर की और करवायी जाने वाली धांधली पर तो बाकायदा शोध कर डाला है। वे अपने इस चुनाव धांधली सम्बन्धी शोध परिणाम को प्रैस कॉन्फ्रैंस में प्रदर्शित करने से लेकर जनता जनार्दन के बीच सड़कों व गलियों तक पहुंच रहे हैं। इस संबंधी वे अब तक 4 प्रैस कॉन्फ्रैंस कर ‘वोट चोरी’ के पूरे सबूत पेश कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त वे अगस्त-सितम्बर 2025 के बीच बिहार में 16 दिनों की 1,300 किलोमीटर लंबी वोटर अधिकार यात्रा भी एसआईआर के विरुद्ध निकाल चुके हैं। इसके अलावा 200 से अधिक सांसदों व विधायकों के साथ वे 11 अगस्त, 2025 को दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त मुख्यालय तक एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन रूपी पैदल मार्च भी कर चुके हैं। एक ओर तो राहुल चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराये गये डेटा के अनुसार ही आयोग द्वारा बरती गयी अनियमितताओं संबंधी साक्ष्य पेश करते हैं, तो दूसरी ओर चुनाव आयोग कभी इन आरोपों को बेबुनियाद बता कर अपना पल्ला झाड़ लेता है तो कभी उल्टे राहुल से ही शपथ-पत्र मांगने लगता है। गत 14 दिसम्बर को दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने एक विशाल रैली आयोजित की। ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ के शीर्षक से किये गये इस आयोजन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देशभर से लाखों कार्यकर्ता जुटाये। इस रैली का भी मुख्य उद्देश्य हरियाणा, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में हाल के विधानसभा चुनावों में कथित ‘वोट चोरी’ और मतदाता सूची में हेराफेरी के आरोप लगाना था। इस विशाल रैली में भी कांग्रेस ने भाजपा और चुनाव आयोग पर मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाते हुए लोकतंत्र तथा संविधान की रक्षा का संकल्प लिया। इस तरह की किसी रैली में यह पहला मौका था जब कि सीधे तौर पर सबसे तीखा हमला मुख्य चुनाव आयुक्त और उसके दो आयुक्तों पर बोला गया। सांसद प्रियंका गांधी ने एक बार और राहुल गांधी ने तो दो बार अपने भाषण में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार तथा चुनाव आयुक्तों सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी का नाम लेकर उनपर सीधे निशाना साधा। इन नेताओं ने उनका नाम लेते हुये आरोप लगाया कि ‘चुनाव आयोग भाजपा सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है, वोट चोरी को संरक्षण दे रहा है तथा आयोग निष्पक्ष नहीं है।
 यहां भी राहुल ने दोहराया कि चुनाव आयोग असत्य के साथ खड़ा नज़र आ रहा है। उन्होंने बताया कि कैसे हरियाणा में चुनाव चोरी हुआ, किस तरह कर्नाटक में लाखों वोट काटे गए और महाराष्ट्र में फज़र्ी वोट जोड़े गए, परन्तु चुनाव आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया। यहां भी राहुल ने चुनावी धांधलियों के कई और उदाहरण पेश किये। यही नहीं राहुल गांधी द्वारा देश भर से चुनाव आयोग के विरुद्ध लगभग 6 करोड़ हस्ताक्षर कराए गए हैं। यह अभियान कथित वोट चोरी के आरोपों के खिलाफ चलाया गया था और इन हस्ताक्षरों को राष्ट्रपति को सौंपने की योजना है। इन 6 करोड़ हस्ताक्षर को भी दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित रैली के दौरान प्रदर्शित किया गया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह रैली कांग्रेस की ओर से चुनावी अनियमितताओं के खिलाफ अब तक का एक सबसे बड़ा शक्ति प्रदर्शन थी, जिसमें चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सार्वजनिक रूप से खुलकर गंभीर सवाल उठाए गए। साथ ही यह भी सच है कि चुनाव आयोग पर प्रमाण सहित लगने वाले इस तरह के आरोपों और आयोग द्वारा इन आरोपों को नज़रअंदाज़ करने से भी स्वतंत्र भारत के इतिहास में चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा यहां पर भी सबसे बड़ा संकट सामने आ खड़ा हुआ है।

#देश के चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा पर संकट !